केल्विन-हेल्महोल्ट्ज़ तंत्र

केल्विन-हेल्महोल्ट्ज़ तंत्र (Kelvin–Helmholtz mechanism), एक खगोलीय प्रक्रिया है। यह तब पाई जाती है जब किसी तारे या ग्रह की सतह ठंडी होती है। यह ठंडापन, दाब के पतन का कारण बनता है, परिणामस्वरूप तारा या ग्रह सिकुड़ता है। यह संपीड़न, अगले चरण में, तारा/ग्रह के कोर को तप्त कर देता है। यह तंत्र बृहस्पति शनि और भूरे बौनों पर प्रमाणित हुए, जिनके केंद्रीय तापमान नाभिकीय संलयन अंतर्गत गुजरने के लिए पर्याप्त ऊंचे नहीं हैं | ऐसा अनुमान है कि इस तंत्र के माध्यम से बृहस्पति सूर्य से प्राप्त ऊर्जा की तुलना में अधिक छोड़ता है, पर शनि कदाचित नहीं।[1]

चित्र:Kelvin-helmholtz mechanism.png
केल्विन , हेल्महोल्ट्ज़ और अपने तंत्र

यह तंत्र सूर्य की ऊर्जा के स्रोत की व्याख्या करने के लिए 19 वीं सदी में मूल रूप से केल्विन और हेल्महोल्ट्ज़ द्वारा प्रस्तावित हुआ था। मध्य 19 वीं शताब्दी तक, ऊर्जा का संरक्षण स्वीकार कर लिया गया था और भौतिकी के इस सिद्धांत का एक परिणाम यह है कि सूर्य के पास अपनी चमक को जारी रखने के लिए कुछ ऊर्जा स्रोत अवश्य होने चाहिए | चुंकि परमाणु अभिक्रिया अज्ञात थी, सौर ऊर्जा के स्रोत के लिए मुख्य उम्मीदवार गुरुत्वीय संकुचन था |

हालांकि, इसे सर आर्थर एडिंगटन और दूसरों के द्वारा शीघ्र मान्यता दी गई कि इस तंत्र के माध्यम से उपलब्ध ऊर्जा की कुल राशि ने सूर्य को अरबों वर्षों के बजाय केवल लाखों वर्षों के लिए ही चमकने की अनुमति दी थी, जिसे कि भूवैज्ञानिक और जैविक प्रमाण ने पृथ्वी की आयु के लिए सुझाया हुआ था। (केल्विन ने खुद तर्क दिया था कि पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी है, न कि अरबों वर्ष) सूर्य की ऊर्जा का वास्तविक स्रोत 1930 के दशक तक, नाभिकीय संलयन होने के लिए इसे हैंस बेथे द्वारा दिखाए जाने तक, अनिश्चित बना रहा था।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. Patrick G. J. Irwin (2003). Giant Planets of Our Solar System: Atmospheres, Composition, and Structure. Springer. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 3-540-00681-8.