कैबिनेट मिशन

भारत की एकता को संरक्षित और आजादी देने के उद्देश्य से ब्रिटिश सरकार से भारतीय नेतृत्व का एक मिशन

वर्ष 1946 में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री एटली ने भारत में एक तीन सदस्यीय उच्च-स्तरीय शिष्टमंडल भेजने की घोषणा की। इस शिष्टमंडल में ब्रिटिश कैबिनेट के तीन सदस्य- लार्ड पैथिक लारेंस (भारत सचिव), सर स्टेफर्ड क्रिप्स (व्यापार बोर्ड के अध्यक्ष) तथा ए.वी. अलेक्जेंडर (एडमिरैलिटी के प्रथम लार्ड या नौसेना मंत्री) थे। इस मिशन को विशिष्ट अधिकार दिये गये थे तथा इसका कार्य भारत को शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण के लिये, उपायों एवं संभावनाओं को तलाशना था।


उद्देश्य और प्रस्ताव

संपादित करें

कैबिनेट मिशन अपने प्रस्ताव को प्रस्तुत किया 16 मई 1946

  • संविधान निर्माण के तरीकों पर आम सहमति के लिए ब्रिटिश भारत के चुने प्रतिनिधियों और भारतीय राज्यों से बातचीत करना

1. संविधान सभा का गठन करना यह- मुख्य उद्देश्य था

  • संविधान निर्मात्री सभा का गठन करना
  • देश के मुख्य दलों की मदद से कार्यकारी परिषद का गठन





मिशन ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और ऑल इंडिया मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों के बातचीत की। मिशन ने सांप्रदायिक दंगों को रोकने के लिए हिंदु-मुस्लिम के बीच सत्ता साझेदारी की योजना बनाई। उधर, कांग्रेस पार्टी ने अंग्रेजों के चले जाने पर मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम जनता से स्वयं बातचीत कर उन्हें निर्णय लेने के लिए राजी करना चाहते थे। अखिल भारतीय मुस्लिम लीग के नेता जिन्ना भारत के साथ रहना चाहते थे लेकिन वह संविधान में मुसलमानों को विशेष राजनीतिक संरक्षण की गारंटी भी चाहते थे। मुस्लिम लीग ने तर्क दिया की अंग्रेजों के चले जाने के बाद भारत हिंदू राष्ट्र में बदल जाएगा। मुस्लिम लीग के इस तर्क का अंग्रेजों ने समर्थन किया। आरंभिक बातचीत के बाद मिशन ने 16 मई 1946 को नई सरकार के गठन का प्रस्ताव रखा।

संविधान सभा के सन्दर्भ में कैबिनेट मिशन योजना क्या महत्वपूर्ण सुझाव दिया है

संपादित करें