जब फिल्म कैमरा या विडियो कैमरा से एक शॉट या फोटोग्राफ लेने के लिए कैमरा को किसी विशिष्ट स्थान पर रखा जाता है उसे कैमरा एंगल कहते हैं। एक शॉट, एक साथ, एक समय पर कई एंगल्स से लिया जा सकता है। इस से अलग अनुभवों या कभी-कभी अलग भावनाएं दिखाई जा सकती हैं। हर कैमरा एंगल से दर्शकों पर एक अलग प्रभाव पैदा किया जा सकता है। इसके अलावा भी कुछ और रस्ते होते हैं जिनसे कैमरा संचालक ऐसे प्रभाव पैदा कर सकता है।

कोई भी आधुनिक, एक ताल (लेंस) वाला, प्रतिबिम्ब (रिफ्लेक्स) कैमरा

एंगल्स और उनके प्रभाव

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कैमरा एंगल के प्रारंभिक उपयोगों का एक उद्धरण

विषय वास्तु को ध्यान में रखते हुए कैमरा कहाँ रखा हुआ है इस बात से भी दर्शको के विषय को देखने के नज़रिए पर असर पड़ता है। कैमरा एंगल कई प्रकार के होते हैं, जैसे: हाई-एंगल शॉट, लो-एंगल शॉट, बर्ड्स -ऑय व्यू और वर्म-ऑय व्यू। एक स्पष्ट दुरी और एंगल जिससे कैमरा में दिखाई देता है अथवा रिकॉर्ड किया जाता है उसे व्यूपॉइंट केहते हैं।

ऑय-लेवल शॉट और पॉइंट ऑफ़ व्यू शॉट भी कुछ कैमरा एंगल्स के प्रकार हैं। हाई-एंगल शॉट वो होता है जिसमे कैमरा विषय वास्तु से ऊपर रखा हुआ हो और उसे निचे झुक के देख रहा हो। हाई-एंगल शॉट विषय वास्तु को छोटा, कमज़ोर और भेद्य दिखता है और वहीँ लो-एंगल शॉट विषय वास्तु को नीचे से ऊपर की और दिखता है, जहा कैमरा विषय वास्तु के नीचे रखा होता है जिससे विषय वास्तु शक्तिशाली या धमकानेवाला दिखाई देता है। न्यूट्रल शॉट या ऑय-लेवल शॉट का दर्शकों पर कोई भी मानसिक प्रभाव नहीं होता है, इस शॉट में कैमरा विषय वास्तु की बराबरी में रखा होता है बिलकुल उसकी सीध में।

जब दर्शको को विषय वास्तु की आँखों नज़ारा दिखाया जाता है तब उसे पॉइंट ऑफ़ व्यू शॉट कहते हैं। कभी कभी पॉइंट ऑफ़ व्यू शॉट लेने के लिए कैमरा को हाथों में पकड़ा जाता है जिससे की दर्शकों के लिए ये भ्रम पैदा किया जा सके की ये नज़ारा विषय वास्तु के आँखों से देखा जा रहा है। बर्ड्स ऑय शॉट या बर्ड्स ऑय व्यू, शॉट्स द्रश्य के ऊपर से लिए जाते है ताकि परिदृश्य को स्थापित किया जा सके। जब दर्शको को यह महसूस कराना हो के वे पात्र को काफी नीचे से देख रहे हैं तब उसे वर्म ऑय व्यू कहा जाता है, ये अक्सर छोटे बच्चे या किसी पालतू जानवर के व्यू को दिखने के लिए उपयोग किया जाता है। इन कैमरा एंगल को चुनते वक़्त यह ध्यान में रखना चाहिए की हर एंगल का एक अलग प्रभाव होता है इसलिए इनका उपयोग सीन अथवा फिल्म के संधर्भ को ध्यान में रख कर करना चाहिए।

शॉट्स के विभिन प्रकार होते हैं जो की इन एंगल्स के इस्तेमाल से काम में लाये जा सकते हैं। जैसे की एक्सट्रीम लॉन्ग शॉट जो की विषय वास्तु के बहुत दूर से रिकॉर्ड किया जाता है और कभी कभी तो इसमें विषय दिखाई भी नहीं देता है। एक्सट्रीम लॉन्ग शॉट ज़्यादातर हाई एंगल से लिया जाता है, ताकि दर्शको नीच सीन की साडी स्तिथि देख सकें। एक्सट्रीम लॉन्ग शॉट ज़्यादातर किसी भी सीन के शुरुवात में उपयोग किया जाता है खास कर उसे स्थापित करने के लिए या फिर वर्णनात्मक रूप से सीन की व्य्व्हास्था दर्शकों को दिखने के लिए उपयोग किया जाता है। वैसे ज़्यादातर शॉट्स आमतोर पर ऑय-लेवल या पॉइंट ऑफ़ व्यू शॉट होते हैं, हालाँकि किसी भी शॉट को किसी भी एंगल से लेना संभव है। लॉन्ग-शॉट में विषय वास्तु को दिखाया जाता है किन्तु शॉट की सेटिंग ऐसी होती है की पिक्चर फ्रेम विषय वास्तु पर हावी होता है। मीडियम-शॉट में दोनों यानि के विषय वास्तु और सेटिंग्स का बराबर महत्व होता है और दोनों ही फ्रेम में ५०/५० होते हैं। इससे अलग जब मीडियम-शॉट में केवल पात्र पर ध्यान या जोर दे रहा होता है तब पात्र को कमर से ऊपर तक दिखा के जाता है, तब वह मिड-शॉट होता है। मीडियम क्लोज-उप शॉट वो होता है जिसमे पात्र को छाती से ऊपर तक दिखाया गया हो। क्लोस-उप में किसी खास विशेषता या विषय के हिस्से से पूरा फ्रेम भर जाता है, जैसे की अगर एक फ्रेम में केवल पात्र का चेहरा ही दिखाया गया हो। और आखिर में एक्सट्रीम क्लोज-उप शॉट, इसमें केवल पात्र के किसी एक शारीरिक हिस्से ने पूरा फ्रेम घर हुआ होता है, जैसे की आँखें, हाथ या कोई और हिस्सा। ये सभी शॉट किन्ही भी पूर्वकथित कैमरा एंगल्स के साथ उपयोग किये जा सकते हैं।

डच एंगल जिसे की कांटेड एंगल या टिलटीड एंगल भी कहा जाता है, यह वो एंगल है जिसमे कैमरा खुद दायीं या बायीं ओर झुका हुआ होता है। यह अप्राक्रतिक एंगल दर्शकों को ऐसा महसूस करता है की जैसे दुनिया संतुलन के बहार चली गयी है या मानसिक अशांति की स्तिथि पैदा करता है।


कैमरा सेटअप का नामकरण

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प्रोडक्शन और पोस्ट-प्रोडक्शन के दौरान हर कैमरा एंगल को एक अनूठी अक्षरांकीय पहचान दिया जाना ज़रूरी है, ("दिश्य" के रूप में चिन्हित)। उद्धरण के तौर पर "सीन 24C." कैमरा एंगल्स के नामो में दिए गए अक्षरों को अक्सर NATO फोनेटिक अल्फाबेट या ओल्डर पुलिस-स्टाइल रेडियो अल्फाबेट के तरह बोला जाता है, जैसे उद्धरण के तौर पर "सीन 24 चार्ली." कुछ अक्षरों को उपयोग नहीं किया जाता है क्यूँ की वे अक्षर लिखने के बात अंको की तरह दिखाई देते हैं, जैसे उद्धरण के तौर पर "S" जो की अंग्रेजी में अंक "5" की तरह दीखता है।