कोइली देवी माथेमा (जन्म १९२९-२००७) नेपाली संगीत उद्योग में पहली महिला गीतकार तथा गायिका और संगीतकार थीं। उनका उल्लेख 'कुक्कू बर्ड' के रूप में भी किया जाता है, जो उनके नेपाली नाम 'कोइली' से संदर्भित है। इसका वर्णन कोयल के संदर्भ में किया गया है, जो अपनी सुरीली और मधुर आवाज़ के लिए जानी जाता है। कोइली देवी ने ११ वर्ष की आयु में सहायिका के रूप में सिंह सुमशेर जेबीआर के महल में प्रवेश किया, जिन्होंने कोइली देवी की सुरीली आवाज़ सुनने के बाद उनका उल्लेख कोइली के रूप में किया, जिसके बाद उन्हें कोइली देवी के नाम से जाना जाने लगा, जिस नाम से उन्हें सफलता और प्रसिद्धि मिली। वे सिंह दरबार में गाती और नृत्य करती थीं। २००७ के आसपास देश में लोकतंत्र की स्थापना के बाद वे रेडियो नेपाल में एक स्वतंत्र गायिका बन गईं। उनका संबंध उन नेपाली गायकों की पहली पीढ़ी से है जो पेशेवर गायक बने। उनके गीतों का उपयोग देश भर की कई फिल्मों और नाटकों में भी किया गया है।[1][2]

कोइली देवी
जन्म राधा बस्नेत
सितंबर १९२९
चिसापानी गढ़ी, मकवानपुर, नेपाल
मौत २००७
काठमांडू, नेपाल
पेशा गायिका
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वैयक्तिक जीवन संपादित करें

कोइली देवी का वास्तविक नाम राधा बस्नेत था। वे चिसापानी गढ़ी, जिला मकवानपुर निवासी नीलम बस्नेत और रामबहादुर बस्नेत की पुत्री थीं।

हालाँकि उनका नाम राधा था, लेकिन जब वह छोटी थीं, तब उन्हें पांतरी के नाम से जाना जाता था। उन्होंने काठमांडू के मखन टोल के एक स्थानीय स्कूल में दाखिला लेने के लिए उसी नाम का इस्तेमाल किया। जब वह मात्र एक वर्ष की थीं तभी उनकी माँ का निधन हो गया था। पाँच वर्ष की अवस्था में वे अपनी बुआ (पिता की बहन) के साथ काठमांडू चली गईं, जिन्होंने उन्हें संगीत भी सिखाया। अपनी बुआ की सहायता से वे ग्यारह वर्ष की आयु में सहायिका के तौर पर सिंह सुमशेर जेबीआर के महल में दाखिल हुईं। उनकी सुरीली आवाज़ सुनने के बाद उन्होंने उन्हें कोइली कहा, जिसके बाद उन्हें कोइली देवी के नाम से जाना जाने लगा, जिस नाम से उन्हें सफलता और प्रसिद्धि मिली।[3]

व्यावसायिक जीवन तथा पुरस्कार संपादित करें

कोइली देवी सिंह दरबार में गाती और नृत्य करती थीं लेकिन लोकतंत्र की स्थापना के बाद वर्ष २००७ के लगभग वे रेडियो नेपाल में एक स्वतंत्र गायिका बन गईं, जहाँ उन्होंने अपने संगीत जीवन की शुरुआत की थी। सन् १९५० में उनका पहला गाना "संसारको झमेला लगदाचा क्या यो मेला" रिकॉर्ड किया गया था। उन्होंने चार हज़ार से अधिक गीतों को अपनी आवाज़ दी है, जिनमें आधुनिक और देशभक्तिपरक गीत और सेवा तथा समर्पण जैसे अल्बम शामिल हैं। उन्हें रेडियो नेपाल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार पुरस्कार, सुभा रायाभिषेक पदक, गोरखा दक्षिण बाहु, छिन्नलता गीत पुरस्कार, इन्द्रराज्यलक्ष्मी प्रज्ञा पुरस्कार तथा वीरेन्द्र-ऐश्वर्य सेवा पदक से सम्मानित किया गया। माथेमा को उनके गीतों(लिरिक्स) और रचनाओं(कंपोज़ीशंस) के लिए भी याद किया जाता है। उन्होंने "जाही रा जूही फूल माला गनसी दुवाइले लौंला" और "जिंदगी भरी नाचुतिन गरी सैनो ​​जोड़ाऊँला" जैसे लोकप्रिय गीतों की रचना की है।[4]

कोईली देवी माथेमा का ७८ वर्ष की अवस्था में २१ दिसंबर २००७ को काठमांडू में निधन हो गया।

संदर्भ संपादित करें

  1. "Personality Of the Week: Koili Devi Mathema". Nepali Radio Texas. 18 January 2012. अभिगमन तिथि ८ मार्च २०२२.
  2. "Singing legend Koili Devi dies at 78". The Himalayan. 22 December 2007. अभिगमन तिथि ८ मार्च २०२२.
  3. "Koili Devi, singer with the cuckoo voice". मूल से 6 दिसंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि ८ मार्च २०२२.
  4. "Singing legend Koili Devi dies at 78". The Himalayan Times. 21 December 2007. अभिगमन तिथि ८ मार्च २०२२.