कोक

उच्च कार्बन सामग्री और कुछ अशुद्धियों के साथ ग्रे, कठोर और छिद्रपूर्ण ईंधन

कोक कोयले से तैयार किया जानेवाला ठोस ईंधन। यह कम राख वाले, कम सल्फरयुक्त, बिटुमिनस कोयले के प्रभंजक आसवन (destructive distillation) से प्राप्त होता है। सब प्रकार के कोयले कोक के लिये उपयुक्त नहीं होते। जो कोयला गरम करने से कोमल हो जाए और फिर न्यूनाधिक ठोस पिंड में बदल जाए उसे कोक बननेवाला कोयला कहा जाता है। जो कोयला गरम करने से चूर चूर हो जाय अथवा दुर्बलता से चिपका हुआ जिसका पिंड बने, वह कोयला कोक के लिये अनुपयुक्त समझा जाता है। अच्छे कोक का बनना कोयले की कोशिकाओं, उसमें उपस्थित गंधक एवं राख की मात्रा, भट्ठी के ताप तथा अन्य परिस्थितियों आदि पर निर्भर करता है। कभी कभी विभिन्न किस्म के कोयलों के मिलाकर गरम करने से अच्छा कोक बनता है।

कोक

उत्तम कोक बननेवाले कोयले में विभिन्न अवयवों की मात्रा इस प्रकार होनी चाहिए :

(१) जल ४ प्रतिशत से अधिक न हो;

(२) राख की मात्रा सूखे कोयले के भार का नौ प्रतिशत से अधिक न रहे;

  • 1. राख का द्रवणांक २,२०० सें० से नीचा न रहे।
  • 2. धातुनिर्माण के निमित्त सूखे कोयले में गंधक की मात्रा १ प्रतिशत से अधिक और भट्ठी में प्रयुक्त होनेवाले सूखे कोयले में उसकी मात्रा १.३ प्रतिशत से और गैस निर्माण के कोक में १.५ प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए।

उपयोग संपादित करें

कोक विभिन्न उद्देश्यों से बनाया जाता है। कुछ कोक धातुओं के निर्माण के लिये, कुछ गैसों के निर्माण के लिये और कुछ जलावन के लिये बनाए जाते है। पहले दो किस्म के कोकों को कठोर कोक और तीसरे किस्म के कोक को अर्ध कोक या मृदु कोक कहते है। कठोर कोक कुछ भारी तथा सघन होता है। वह जल्द आग नहीं पकड़ता। इसका व्यवहार घरेलू इर्धंन के लिये नहीं होता। यह प्रधानता धातुओं और गैसों के निर्माण में काम आता है। अर्ध कोक या मृदु कोक अपेक्षया हल्का और सर्ध्रां होता है तथा शीघ्र आग पकड़ लेता है। कच्चे कोयले की अपेक्षा यह धुआँ भी कम देता है। इस कारण घरेलू इर्धंन के लिये यह अधिक उपयुक्त होता है।

निर्माण विधि संपादित करें

कोक बनाने के लिये कोयले को बड़े-बड़े पात्रों में अथवा भिन्न-भिन्न प्रकार के चूल्हों या भट्ठियों में रखकर विभिन्न तापों पर गरम करते है। इस प्रकार कोयले के गरम करने को कोयले का कार्बनीकरण कहते हैं। इसे कोयले का भंजन आसवन भी कहते है। यदि कार्बनीकरण का ताप १०० सें, १,३०० सेंस० है तो इसे उच्चताप कार्बनीकरण, यदि ताप ७०० से ९०० सें० है तो इसे मध्यताप कार्बनीकरण और यदि ताप ५५० सें० से नीचे ताप पर कोयले का विच्छेदन नहीं होता। उच्चताप कार्बनीकरण से कठोर कोक और मध्यताप तथा निम्नताप कार्बनीकरण से अर्ध कोक या मृदु कोक प्राप्त होता है।

कोक निर्माण का इतिहास संपादित करें

कोक बनाने की प्रथा ३०० वर्षों से अधिक प्राचीन है। प्राचीन रीति में कोयले के बड़े बड़े टुकड़ों को ढेर में रखकर उसी प्रकार गरम करते थे जैसे लकड़ी का कोयला बनाने में लकड़ी के ढेर को करते हैं। कोयले के ढेर के बीच एक छेद होता था, जो चिमनी का काम करता था। ढेर को कोयले के चूर से ढक देते थे और नीचे पार्श्व से उसमें आग लगाकर जलाते थे। कुछ कोयले के जलने से ऊष्मा होती थी, जिससे शेष कोयला गरम होकर कोक बनता था। इस प्रकार कोक बनने में लगभग १० दिन का समय लगता था। कोक बन जाने पर पानी से ढेर को बुझाकर कोक प्राप्त करते थे। इसमें कुछ कोयला जलकर नष्ट हो जाता था।

१८वीं शताब्दी के मध्य में ईट के बने चूल्हों में कोक बनाने का काम आरंभ हुआ। ऐसे चूल्हों का आकार मधुमक्खी के छते सा था। इससे इस चूल्हे का नाम मधुमक्खी छता चूल्हा पड़ा। यही नाम आज तक प्रचलित है। पीछे उन्नत प्रकार के ऐसे चूल्हे बने जिनकी गच पर २ ३ फुट मोटा कोयला रखकर गरम किया जाता था। ऐसे चूल्हों से कोक बनाने में प्राय: ७२ घंटे लगते थे। इस रीति में भी कुछ कोयला जलकर नष्ट हो जाता था और कोक भी कम मात्रा में बनती थी और कार्बनीकरण के सारे उपजात नष्ट हो जाते थे। उनको प्राप्त करने का कोई प्रबंध नहीं था। आजकल ऐसे चूल्हे बने हैं जिनमें कोयला बाहर से गरम किया जाता है और सब उपजात नष्ट होने से बचा लिए जाते हैं।

भभके संपादित करें

 
धूमरहित कोक भट्ठी

कोक बनाने की आधुनिक रीतियों में भभके अथवा अग्निमिट्टी के बने कक्षों का व्यवहार होता है। भभके पहले लोहे के बनते थे और केवल ८०० सें. तक ही गरम किए जा सकते थे। इतने ताप पर भभके जीवन कुछ ही मास का होता था। पीछे अग्निमिट्टी के भभके बनने लगे। ये ९५० से. तक गरम किए जा सकते थे। अब अग्नि सह ईटों के बने चूल्हे या कक्षों में १,४०० सें. तक ताप सरलता से मिल जाता है।

कोक बनाने में जो भभके प्रयुक्त होते हैं वे क्षैतिज हो सकते हैं अथवा ऊर्ध्वाधर। क्षैतिज भभके सिलिका के अथवा सिलिकामय अग्नि मिट्टी के बनते हैं। ये साधरणतया २० फुट लंबे और २३ इंच १९ काट के अर्ध अंडाकार होते हैं। इनमें एक नल लगा रहता है जिससे वाष्पशील अंश बाहर निकलता है। भभके की कई पंक्तियाँ और पंक्तियों की अनेक श्रेणियाँ होती है। भभका उत्पादित्र गैस से गरम होता है। कार्बनी करण पूरा हो जाने पर गरम कोक को निकालकर पानी से बुझाते हैं।

कोयले का कार्बनीकरण ऊर्ध्वाधर भभके या कक्ष चूल्हे में भी होता है। चूल्हा आयताकार होता है। और इसमें एक बार पाँच टन कोयले का कार्बनीकरण हो सकता है। कक्ष सिलिका का बना होता है। यह भी उत्पादित गैस से गरम होता है। कोयला ऊपर से डाला जाता है और कोक पेंदे से निकलता है। कार्बनीकरण पूरा होने में लगभग १२ घंटा लगता है। यह भभका सविराम किस्म का होता है।

ऊर्ध्वाधर भभके अविराम किस्म के भी होते हैं। ये आयताकार अथवा अंडाकार होते हैं।

इनमें एक बार में १० टन कोयले का कार्बनीकरण हो सकता है। ऊपर से कोयला गिरता और पेंदे तक आते आते कोक में परिणत हो जाता है। कोक को शीतक कक्ष में भाप से बुझाते हैं। भभका उत्पादक गैस से गरम होता है। संयंन्न ऐसा बना रहता है कि कोक बनाने का काम अविराम कम से चलता रहे।

कोक बन जाने पर उसे बुझाने की आवश्यकता पड़ती है। इसे कोक का शमन कहते हैं। यह काम ईटों के बने शमनयान में होता है। बुझाते समय जो भाप बनती है वह ऊपर से निकल जाती है। जलटंकी से पानी आकर कोक पर गिरता है। साधारणतया कोक का ताप १,००० सें० रहता है। प्रति टन कोक के बुझाने की प्रक्रिया में जो भाप बनती है उसमें दस लाख ब्रिटिश-ऊष्मक-मात्राक ऊष्मा नष्ट होती है। इस ऊष्मा की पुन: प्राप्ति की चेष्टाएँ हुई हैं। एक ऐसे प्रयत्न में शमनयान से कोक को बंद कक्ष में ले जाते हैं। उस कक्ष का द्वार बंदकर उसमें वायु प्रविष्ट कराते हैं। फिर उसे बायलर की नली में लेजाकर शमनयान में बार बार ले जाते हैं। वायु का ऑक्सिजन कार्बनडाइऑक्साइड और कार्बनमॉनोक्साइड में परिणत हो जाता है। वायु की निष्किय गैसें बच जाती है। ऐसी वायु को तब तक यान में ले जाते हैं जबतक उसका ताप गिरकर २५० सें. तक नहीं हो जाता। ऐसे कोक में जल की मात्रा कम रहती है। अत: यह कोक वातभट्ठियों के लिये अच्छा होता है। ऐसा शुष्क शमनसंयंत्र बैठाने में खर्च कुछ अधिक पड़ता है।

कोक बनाने के संयंत्र अनेक कंपनियों के है। उन सबकी अपनी अपनी विशेषताएँ हैं। कोक बनाने के संयंत्र में निम्निलिखित बाते ध्यातव्य हैं

1. कोक अच्छे किस्म का और एक सा बने।

2. कोक के निर्माण में कम से कम ईंधन लगे।

3. संयंत्र में वाष्पशील अंश की न्यूनतम क्षति हो।

4. संयंत्र ऐसा हो कि आवश्यकता पड़ने पर मरम्मत सरलता से की जा सके।

5. उसके चूल्हे ऐसे हों कि यदि एक चूल्हा निकम्मा हो जाए तो उससे अन्य चूल्हों का काम बंद न होने पाए।

विभिन्न कोक के विश्लेषण संपादित करें

भिन्न-भिन्न भभकों या चूल्हों में बने कोक की प्रकृति एक सी नहीं होती। यह कोयले की प्रकृति, कार्बनीक रण के ढंग और कार्बनीकरण के ताप पर निर्भर करती है। चार विभिन्न विधियों से प्राप्त कोक के विश्लेषण अंक इस प्रकार पाए गए है:

मधुमक्खी छत्ता चूल्हा -- भभका कोक चूल्हा -- ऊर्ध्वाधर भट्ठी -- क्षैतिज भट्ठी

स्थिर कार्बन ९२.६९ --- ५६.६६ --- ८७.४० --- ८६.०५

आप्रक्षिक घनत्व १.८६ --- १.९० --- १.८२ --- १.७३

राख ५.८९ --- १०.४५ --- ९.५८ --- ७.५४

गंधक ०.७४ --- ०.७७ --- ०.९९ --- ०.९६

वाष्पशील अंश ०.३४ --- १.७३ --- ३.८४ --- ३.८४

जल ०.३५ --- १.०३ --- १.३५ --- २.५७

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें