निकोलस कोपरनिकस

(कोपर्निकस से अनुप्रेषित)

पोलैंड में जन्में निकोलस कोपरनिकस (Nicolaus Copernicus, पोलिश: Mikołaj Kopernik; 19 फ़रवरी 1473 – 24 मई 1543) पोलिश खगोलशास्त्री व गणितज्ञ थे। उन्होंने यह क्रांतिकारी सूत्र दिया था कि पृथ्वी अंतरिक्ष के केन्द्र में नहीं है।

निकोलस कोपरनिकस

निकोलस के पहले भारत के ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद की एक शाखा में बताया गाया था उस के बाद युरोपिय खगोलशास्त्री थे जिन्होंने पृथ्वी को ब्रह्माण्ड के केन्द्र से बाहर माना, यानी हीलियोसेंट्रिज्म मॉडल को लागू किया। इसके पहले पूरा युरोप अरस्तू की अवधारणा पर विश्वास करता था, जिसमें पृथ्वी ब्रह्माण्ड का केन्द्र थी और सूर्ये, तारे तथा दूसरे पिंड उसके गिर्द चक्कर लगाते थे।

पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है यह सबसे पहले किसने बताया ?

सबसे पहले भारत के ऐतरेय ब्राह्मण ऋग्वेद की एक शाखा में बताया गाया था उस के बाद निकोलस कोपरनिकस ने बताया।

ऋग्वेद में कहा गया है।

सूर्य न तो कभी उगता है और न ही अस्त होता है। जब लोग सोचते हैं कि सूर्य अस्त हो रहा है (ऐसा नहीं है)। क्योंकि दिन के अंत में पहुंचने के बाद यह अपने आप में दो विपरीत प्रभाव उत्पन्न करता है, जो रात को नीचे और दिन को दूसरी तरफ बनाता है।


1530 में कोपरनिकस की किताब commentariolus प्रकाशित हुई जिसमें उसने बताया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई एक दिन में चक्कर पूरा करती है और एक साल में सूर्य का चक्कर पूरा करती है। कोपरनिकस ने तारों की स्थिति ज्ञात करने के लिए प्रूटेनिक टेबिल्स की रचना की जो अन्य खगोलविदों के बीच काफी लोकप्रिय हुई।

खगोलशास्त्री होने के साथ साथ कोपरनिकस गणितज्ञ, चिकित्सक, अनुवादक, कलाकार, न्यायाधीश, गवर्नर, सैन्य नेता और अर्थशास्त्री भी थै। उन्होंने मुद्रा पर शोध कर ग्रेशम के प्रसिद्ध नियम को स्थापित किया, जिसके अनुसार खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन से बाहर कर देती है। उन्होंने मुद्रा के संख्यात्मक सिद्धांत का फार्मूला दिया। कोपरनिकस के सुझावों ने पोलैंड की सरकार को मुद्रा के स्थायित्व में सहायता प्रदान की।

योगदान संपादित करें

कोपरनिकस के अन्तरिक्ष के बारे में सात नियम, जो उनकी किताब में दर्ज हैं, इस प्रकार हैं :

  • सभी खगोलीय पिंड किसी एक निश्चित केन्द्र के परितः नहीं हैं
  • पृथ्वी का केन्द्र ब्रह्माण्ड का केन्द्र नहीं है; वह केवल गुरुत्वचंद्रमा का केन्द्र है
  • सभी गोले (आकाशीय पिंड) सूर्य के परितः चक्कर लगाते हैं। इस प्रकार सूर्य ही ब्रह्माण्ड का केन्द्र है
  • पृथ्वी की सूर्य से दूरी, पृथ्वी की आकाश की सीमा से दूरी की तुलना में बहुत कम है
  • आकाश में हम जो भी गतियां देखते हैं वह दरअसल पृथ्वी की गति के कारण होता है। (आंशिक रूप से सत्य)
  • जो भी हम सूर्य की गति देखते हैं, वह दरअसल पृथ्वी की गति होती है
  • जो भी ग्रहों की गति हमें दिखाई देती है, उसके पीछे भी पृथ्वी की गति ही जिम्मेदार होती है

विशेष बात यह है कि कोपरनिकस ने ये निष्कर्ष बिना किसी प्रकाशिक यंत्र के उपयोग के प्राप्त किए। वह घंटों नंगी आँखों से अन्तरिक्ष को निहारता रहता था और गणितीय गणनाओं द्वारा सही निष्कर्ष प्राप्त करने की कोशिश करता रहता था। बाद में गैलिलियो ने जब दूरदर्शी का आविष्कार किया तो उसके निष्कर्षों की पुष्टि हुई।

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