कलकत्ता विश्वविद्यालय
कलकत्ता विश्वविद्यालय (बांग्ला: কলকাতা বিশ্ববিদ্যালয়) भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल की राजधानी, कोलकाता में स्थित एक सार्वजनिक राज्य विश्वविद्यालय है। कोलकाता और इसके आसपास के क्षेत्रों में स्थित १५१ स्नातक महाविद्यालय और १६ संस्थान इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध हैं। इस विश्वविद्यालय की स्थापना २४ जनवरी १८५७ को हुई थी और यह भारतीय उपमहाद्वीप तथा दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र का सबसे पुराना बहुविषयक विश्वविद्यालय है। वर्तमान में विश्वविद्यालय का अधिकार क्षेत्र पश्चिम बंगाल के कुछ जिलों तक सीमित है, लेकिन इसकी स्थापना के समय इसका प्रभाव क्षेत्र काबुल से म्यान्मार तक फैला हुआ था। इसे राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद द्वारा 'ए' ग्रेड विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता प्राप्त है।
चित्र:University of Calcutta logo.svg कलकत्ता विश्वविद्यालय की मुहर | |
ध्येय | द एड्वांसमेंट ऑफ लर्निंग |
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प्रकार | सार्वजनिक राज्य विश्वविद्यालय |
स्थापित | १८५७ |
संस्थापक | ईस्ट इण्डिया कम्पनी |
Academic संबद्ध | |
बजट | ₹३४०.७३ करोड़ (वित्त वर्ष २०२५–२६ अनुमानित)[1] |
कुलाधिपति | पश्चिम बंगाल के राज्यपाल |
उपकुलपति | सन्त दत्त (दे) (कार्यवाहक) |
शैक्षिक कर्मचारी | १,२०६ (२०२५)[2] |
छात्र | १४,०५३ (२०२५)[2] |
स्नातक | २,२९९ (२०२५)[2] |
परास्नातक | ८,९५२ (२०२५)[2] |
२,८०२ (२०२५)[2] | |
स्थान | कोलकाता, पश्चिम बंगाल, भारत 22°34′30″N 88°21′46″E / 22.57500°N 88.36278°Eनिर्देशांक: 22°34′30″N 88°21′46″E / 22.57500°N 88.36278°E |
परिसर | महानगर ११९.७ एकड़ (४८.४ हे॰) |
जालस्थल | औपचारिक जालस्थल |
कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुल चौदह परिसर हैं, जो कोलकाता शहर और इसके उपनगरों में स्थित हैं। २०२० में, विश्वविद्यालय से १५१ महाविद्यालय तथा २१ संस्थान एवं केंद्र सम्बद्ध हैं। शिक्षा मंत्रालय के राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क द्वारा २०२१ में प्रकाशित भारतीय विश्वविद्यालय रैंकिंग में यह विश्वविद्यालय चौथे स्थान पर रहा था।
कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों और अध्यापकों में कई प्रतिष्ठित राष्ट्राध्यक्ष, समाज सुधारक, कलाकार, और साथ ही रॉयल सोसाइटी के अनेक फेलो तथा ६ नोबेल पुरस्कार विजेता शामिल हैं। नोबेल पुरस्कार विजेता रोनाल्ड रॉस, रबीन्द्रनाथ ठाकुर, चन्द्रशेखर वेंकटरमन, अमर्त्य सेन और अभिजीत बनर्जी इसी विश्वविद्यालय के संबंधित रहे हैं। राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले छात्रों की सर्वाधिक संख्या इसी विश्वविद्यालय से होती है। इसके अतिरिक्त, यह विश्वविद्यालय संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक प्रभाव का सदस्य भी है।
इतिहास
संपादित करेंस्वतंत्रता-पूर्व
संपादित करेंभारतवर्ष में ब्रिटिश शासन के शिक्षा सचिव, फ्रेडरिक जॉन ने सर्वप्रथम लंदन विश्वविद्यालय के मॉडल पर कलकत्ता में एक विश्वविद्यालय की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। जुलाई १८५४ में, ईस्ट इण्डिया कम्पनी के निदेशक मंडल ने भारत के गवर्नर जनरल को वुड का आदेश पत्र नामक एक ऐतिहासिक पत्र भेजा, जिसके तहत कलकत्ता, मद्रास और बम्बई में विश्वविद्यालय स्थापित करने के निर्देश दिये गये थे।[3][4]
कलकत्ता विश्वविद्यालय अधिनियम २४ जनवरी १८५७ को लागू हुआ, और इसके साथ-साथ ही विश्वविद्यालय के नीति-निर्माण निकाय के रूप में ४१ सदस्यीय 'सीनेट' का गठन हुआ। इस विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु भूमि का दान दरभंगा के महाराजा महेश्वर सिंह बहादुर ने किया था। विश्वविद्यालय की स्थापना के समय इसका अधिकारक्षेत्र काबुल से रंगून और सीलोन तक विस्तृत था, जो किसी भी अन्य भारतीय विश्वविद्यालय की तुलना में सर्वाधिक था।[5] विश्वविद्यालय के पहले कुलपति और उपकुलपति क्रमशः गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सर विलियम कॉलविले थे। आशुतोष मुखर्जी ने १९०६ से १९१४ तक निरंतर चार द्विवर्षीय कार्यकालों में तथा फिर १९२१-२३ में एक और द्विवर्षीय कार्यकाल के लिए विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया।[3][6][7]
कलकत्ता विश्वविद्यालय स्वेज़ नहर की पूर्वी दिशा में स्थापित होने वाला ऐसा प्रथम विश्वविद्यालय था, जहाँ यूरोपीय शास्त्र, अंग्रेजी साहित्य, भारतीय और पाश्चात्य दर्शन, तथा पाश्चात्य एवं प्राच्य इतिहास का अध्ययन कराया जाता था।[8][9] ब्रिटिश भारत में स्थापित पहला आयुर्विज्ञान विद्यालय, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज भी इसी विश्वविद्यालय से संबद्ध था, जिसे १८५७ में स्थापित किया गया था।[10] भारत में महिलाओं के लिए प्रथम कॉलेज, बेथ्यून कॉलेज, भी इसी विश्वविद्यालय से संबद्ध था।[11] भारत का प्रथम विज्ञान महाविद्यालय माना जाने वाला शासकीय विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर भी १८३६ से १८९० तक कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध था।[12] १८७० के दशक में विश्वविद्यालय की प्रथम पुस्तकालय का उद्घाटन हुआ। बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय और जोद्दू नाथ बोस १८५८ में विश्वविद्यालय के प्रथम स्नातक बने, जबकि कादम्बिनी गांगुली और चन्द्रमुखी बसु १८८२ में विश्वविद्यालय की प्रथम भारतीय महिला स्नातक बनीं।[13][14][15]
प्रारंभ में, विश्वविद्यालय मात्र संबद्ध और परीक्षा-निर्णायक संस्था ही था। सभी शैक्षणिक और अध्यापकीय कार्य संबंधित कॉलेजों में सम्पन्न होते थे, जिनमें प्रेसीडेंसी कॉलेज, स्कॉटिश चर्च कॉलेज, संस्कृत कॉलेज और बंगाल इंजीनियरिंग कॉलेज प्रमुख थे। उस कालखंड में, कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के परिषद कक्ष और कुलपति के निजी आवास में विश्वविद्यालय की सीनेट की बैठकें आयोजित होती थीं। संकाय परिषदें प्रायः संबंधित संकायों के प्रमुखों के आवासों, सिविल इंजीनियरिंग कॉलेज या राइटर्स बिल्डिंग में होती थीं। स्थान की अनुपलब्धता के कारण, विश्वविद्यालय की परीक्षाएँ कोलकाता के टाउन हॉल और मैदान में तंबुओं में आयोजित की जाती थीं।[16]
१८६६ में, साइट के लिए ₹८१,६०० और कॉलेज स्ट्रीट पर नये भवन के निर्माण के लिए ₹१,७०,५६१ का अनुदान स्वीकृत किया गया था। यह भवन १८७३ में खुला और इसे सीनेट हाउस नाम दिया गया। इसमें सीनेट के लिए मीटिंग हॉल, कुलपति के लिए एक कक्ष, रजिस्ट्रार का कार्यालय, परीक्षा कक्ष और व्याख्यान कक्ष थे। १९०४ में, विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षण और अनुसंधान शुरू हुआ, जिससे छात्रों और उम्मीदवारों की संख्या में वृद्धि हुई। लगभग साठ वर्षों के बाद, महाराजा महेश्वर सिंह बहादुर द्वारा दिये गये ₹२,५०,००० के दान से १९१२ में दूसरा भवन बनाया गया, जिसे दरभंगा भवन के नाम से जाना गया।[16]
दरभंगा भवन में विश्वविद्यालय लॉ कॉलेज, उसका पुस्तकालय और कुछ अन्य कार्यालय थे और इसके शीर्ष तल पर विश्वविद्यालय की परीक्षाएँ आयोजित करने के लिए स्थान था। उसी वर्ष, ब्रिटिश भारत सरकार ने सीनेट हाउस के बगल में स्थित माधव बाबू बाज़ार के अधिग्रहण के लिए ₹८ लाख की राशि दी और शिक्षण विभागों के लिए एक नए भवन का निर्माण शुरू किया। यह १९२६ में खोला गया था, और बाद में १९०६-१४ में विश्वविद्यालय के कुलपति आशुतोष मुखर्जी के नाम पर इसका नाम आशुतोष भवन रखा गया। १९१२ और १९१४ के बीच, दो प्रख्यात वकीलों, तारकनाथ पालित और रास बिहारी घोष ने कुल ₹२५ लाख की संपत्ति दान की, और अपर सर्कुलर रोड (जिसे अब आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रोड के नाम से जाना जाता है) में विश्वविद्यालय साइंस कॉलेज की स्थापना की गयी।[16]
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात
संपादित करेंभारत के विभाजन से पूर्व, पूर्वी बंगाल (वर्तमान बांग्लादेश) के सत्ताईस कॉलेज और विश्वविद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध थे। १९५१ में पश्चिम बंगाल सरकार ने कलकत्ता विश्वविद्यालय अधिनियम, १९५१ को पारित किया, जिसने १९०४ के पूर्व अधिनियम को प्रतिस्थापित किया और विश्वविद्यालय के संचालन के लिए एक लोकतांत्रिक संरचना सुनिश्चित की। इसी वर्ष, पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा अधिनियम भी पारित किया गया, जिसने विद्यालय स्तर की परीक्षा को विश्वविद्यालय से जोड़ने का प्रावधान किया। समय के साथ, विश्वविद्यालय की आवश्यकताएँ बढ़ने लगीं, और सीनेट हाउस इन्हें संभालने में असमर्थ होने लगा। कलकत्ता विश्वविद्यालय की शताब्दी के बाद, एक अधिक उपयोगी और आधुनिक भवन को बनाने के उद्देश्य से सीनेट हाउस को ध्वस्त कर दिया गया। १९५७ में, विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में, इसे विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से ₹१ करोड़ का अनुदान प्राप्त हुआ, जिससे कॉलेज स्ट्रीट परिसर में शताब्दी भवन और हाजरा रोड परिसर में लॉ कॉलेज भवन का निर्माण संभव हुआ। १९५८ में, अर्थशास्त्र विभाग को बैरकपुर ट्रंक रोड के पास नया भवन प्राप्त हुआ। १९६५ में, विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य सेवा के तहत गोयनका अस्पताल डायग्नोस्टिक रिसर्च सेंटर की स्थापना की गई। १९६० तक सीनेट हाउस शहर के सबसे प्रमुख स्थलों में से एक हुआ करता था।[16][17]
१९६८ में, शताब्दी भवन को सीनेट हाउस के पूर्व स्थान पर खोला गया। वर्तमान में, इसमें केंद्रीय पुस्तकालय, भारतीय कला का आशुतोष संग्रहालय, शताब्दी सभागार और कई विश्वविद्यालय कार्यालय स्थित हैं। १९७० के दशक के मध्य तक यह विश्वविद्यालय दुनिया के सबसे बड़े विश्वविद्यालयों में से एक बन चुका था। इसके प्रत्यक्ष नियंत्रण में १३ कॉलेज और १५० से अधिक संबद्ध कॉलेज, साथ ही १६ स्नातकोत्तर संकाय थे।[18] वर्ष २००१ में कलकत्ता विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (नैक) द्वारा विश्वविद्यालय की मान्यता के पहले चक्र में 'फाइव-स्टार' का दर्जा प्राप्त हुआ। २००९ और २०१७ में, नैक ने विश्वविद्यालय की मान्यता के दूसरे और तीसरे चक्र में इसे अपना उच्चतम ग्रेड 'ए' प्रदान किया।[19][20] २०१९ में, विश्वविद्यालय के केंद्रीय पुस्तकालय और ४० विभागीय पुस्तकालय जनता के लिए खोल दिए गए। इन पुस्तकालयों के पास दस लाख से अधिक पुस्तकों का और २ लाख से अधिक पत्रिकाओं, कार्यवाहियों और पांडुलिपियों का संग्रह है।[21][16]
मुहर
संपादित करेंअपने अस्तित्व के कई वर्षों में विश्वविद्यालय की मुहर कई बार बदली है। पहली मुहर १८५७ की थी, जिसे भारत सरकार अधिनियम १८५८ के पारित होने पर बदला गया। इस अधिनियम के माध्यम से ब्रिटिश संसद ने कलकत्ता विश्वविद्यालय सहित ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सरकार और क्षेत्रों को ब्रिटिश क्राउन के अधीन कर दिया। तीसरी, चौथी और पांचवीं मुहर १९३० के दशक में पेश की गईं, जिनमें से चौथी मुहर को स्थानीय स्तर पर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। वर्तमान समय में, विश्वविद्यालय की मुहर छठी मुहर का संशोधित संस्करण है। मुहर के परिवर्तन के बावजूद, विश्वविद्यालय का आदर्श वाक्य 'एडवांसमेंट ऑफ लर्निंग' (ज्ञान की उन्नति) अपरिवर्तित रहा है।[22]
परिसर
संपादित करेंविश्वविद्यालय के कुल १४ परिसर हैं, जो कोलकाता शहर और उसके उपनगरों में फैले हुए हैं। इन्हें 'शिक्षा प्रांगण' कहा जाता है, जिसका अर्थ है शैक्षिक परिसर। प्रमुख परिसरों में कॉलेज स्ट्रीट पर स्थित केंद्रीय परिसर (आशुतोष शिक्षा प्रांगण), राजाबाजार में विश्वविद्यालय के विज्ञान, प्रौद्योगिकी और कृषि महाविद्यालय का परिसर (राशबिहारी शिक्षा प्रांगण या राजाबाजार विज्ञान महाविद्यालय), बालीगंज में तारकनाथ पालित शिक्षा प्रांगण और अलीपुर में शहीद खुदीराम शिक्षा प्रांगण शामिल हैं। अन्य परिसरों में हाजरा रोड परिसर, विश्वविद्यालय प्रेस और पुस्तक डिपो, बी. टी. रोड परिसर, विहारीलाल गृह विज्ञान महाविद्यालय परिसर, विश्वविद्यालय स्वास्थ्य सेवा, हरिंघटा परिसर, धाकुरिया झील (विश्वविद्यालय रोइंग क्लब), और मैदान में विश्वविद्यालय का ग्राउंड और टेंट शामिल हैं।[23][24][25]
आशुतोष शिक्षा प्रांगण
संपादित करेंआशुतोष शिक्षा प्रांगण (जिसे सामान्यत: कॉलेज स्ट्रीट परिसर कहा जाता है) विश्वविद्यालय का मुख्य परिसर है, जहाँ प्रशासनिक कार्य किए जाते हैं। यह परिसर कॉलेज स्ट्रीट पर स्थित है और २.७ एकड़ (१.१ हेक्टेयर) के क्षेत्र में फैला हुआ है। यहाँ कला और भाषा विभाग, प्रशासनिक कार्यालय, संग्रहालय, केंद्रीय पुस्तकालय, सभागार आदि स्थित हैं।[26][27] इसके अलावा, आशुतोष भारतीय कला संग्रहालय में बंगाल की लोक कला जैसी प्रदर्शनी भी प्रदर्शित की जाती हैं।[28] सीनेट हाउस इस परिसर का पहला विश्वविद्यालय भवन था, जिसे १८७२ में खोला गया था। १९६० में, शताब्दी भवन के लिए स्थान बनाने हेतु इसे ध्वस्त कर दिया गया था, और शताब्दी भवन १९६८ में खोला गया। दरभंगा भवन और आशुतोष भवन क्रमशः १९२१ और १९२६ में स्थापित हुए थे।[16]
राशबिहारी शिक्षा प्रांगण
संपादित करेंराशबिहारी शिक्षा प्रांगण (जिसे विश्वविद्यालय कॉलेज ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी या सामान्यत: राजाबाजार साइंस कॉलेज के नाम से जाना जाता है), राजाबाजार के आचार्य प्रफुल्ल चंद्र रोड पर स्थित है। यह १९१४ में स्थापित हुआ था,[29] और यहाँ शुद्ध और अनुप्रयुक्त रसायन विज्ञान, शुद्ध और अनुप्रयुक्त भौतिकी, अनुप्रयुक्त प्रकाशिकी और फोटोनिक्स, रेडियो भौतिकी, अनुप्रयुक्त गणित, मनोविज्ञान, शरीर विज्ञान, जैवभौतिकी, आणविक जीव विज्ञान सहित कई वैज्ञानिक और तकनीकी विभाग स्थित हैं।[23][30]
तारकनाथ पालित शिक्षा प्रांगण
संपादित करेंशहर के दक्षिणी हिस्से में बालीगंज सर्कुलर रोड पर स्थित तारकनाथ पालित शिक्षा प्रांगण (जिसे विश्वविद्यालय कॉलेज ऑफ साइंस या बालीगंज साइंस कॉलेज के नाम से भी जाना जाता है) में कृषि, नृविज्ञान, जैव रसायन, सूक्ष्म जीवविज्ञान, वनस्पति विज्ञान, भूगोल, आनुवंशिकी, सांख्यिकी, प्राणी विज्ञान, तंत्रिका विज्ञान, समुद्री विज्ञान, जैव प्रौद्योगिकी और भूविज्ञान विभाग हैं।[23] यहाँ एस. एन. प्रधान सेंटर फॉर न्यूरोसाइंसेस और कृषि विज्ञान संस्थान भी स्थित है।[31]
शहीद खुदीराम शिक्षा प्रांगण
संपादित करेंअलीपुर में स्थित शहीद खुदीराम शिक्षा प्रांगण, जिसे आमतौर पर अलीपुर परिसर के नाम से जाना जाता है, विश्वविद्यालय का मानविकी परिसर है। इस परिसर में इतिहास, प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति, इस्लामी इतिहास और संस्कृति, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई अध्ययन, पुरातत्व, राजनीति विज्ञान, व्यवसाय प्रबंधन और संग्रहालय विज्ञान के विभाग स्थित हैं।[32]
प्रौद्योगिकी परिसर
संपादित करेंप्रौद्योगिकी परिसर, जिसे टेक कैम्प के नाम से भी जाना जाता है, विश्वविद्यालय का सबसे नया परिसर है। यह परिसर तीन इंजीनियरिंग और तकनीकी विभागों से मिलकर बना है: नैनोसाइंस और नैनोटेक्नोलॉजी में अनुसंधान केंद्र, कंप्यूटर विज्ञान और इंजीनियरिंग विभाग, ए.के.सी. सूचना प्रौद्योगिकी स्कूल, और एप्लाइड ऑप्टिक्स और फोटोनिक्स विभाग, जो साल्ट लेक के सेक्टर ३, जेडी ब्लॉक में स्थित हैं।[29][33][34]
संगठन और प्रशासन
संपादित करेंशासन
संपादित करेंविश्वविद्यालय का प्रशासनिक प्रबंधन एक बोर्ड द्वारा किया जाता है, जिसमें कुलपति, शैक्षणिक मामलों के प्रो-कुलपति, व्यावसायिक मामलों और वित्त के प्रो-कुलपति, रजिस्ट्रार, विश्वविद्यालय पुस्तकालयाध्यक्ष, कॉलेजों के निरीक्षक, सिस्टम मैनेजर और ३५ अन्य अधिकारी शामिल होते हैं। ये सभी विश्वविद्यालय और उसके संबद्ध कॉलेजों के संचालन और वित्तीय प्रबंधन की निगरानी करते हैं।[35] २०१७ में सोनाली चक्रवर्ती बनर्जी विश्वविद्यालय की ५१वीं कुलपति बनीं।[36] विश्वविद्यालय को विभिन्न स्रोतों से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है, जिसमें विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, पश्चिम बंगाल सरकार, अन्य शोध संस्थान, और विश्वविद्यालय की अपनी आय जैसे फीस, बिक्री, प्रकाशन और बंदोबस्ती निधि शामिल हैं।[37][38]
अधिकार क्षेत्र
संपादित करेंकिसी समय में विश्वविद्यालय का क्षेत्राधिकार ब्रिटिश भारत में काफी विस्तृत था, जो पश्चिम में लाहौर, पूर्व में रंगून और दक्षिण में सीलोन (अब श्रीलंका) तक फैला हुआ था। उस समय कई प्रसिद्ध कॉलेज, जैसे थॉमसन इंजीनियरिंग कॉलेज (अब आईआईटी रुड़की), मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (अब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय), कैनिंग कॉलेज, लखनऊ (अब लखनऊ विश्वविद्यालय), और किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज (अब किंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय) कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध थे। इन कॉलेजों के अलावा रावलपिंडी, लाहौर, जयपुर, कानपुर और मसूरी जैसे दूरस्थ स्थानों में स्थित स्कूल भी विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा की तैयारी करवाते थे। १८८२ और १८८७ में क्रमशः पंजाब और इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद भी कलकत्ता विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय नियंत्रण को कम करने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया था। लेकिन १९०४ में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम लागू होने के बाद, विश्वविद्यालय का नियंत्रण केवल बंगाल (जिसमें उड़ीसा और बिहार भी शामिल थे), असम और बर्मा प्रांतों तक सीमित कर दिया गया। इस अधिनियम के तहत, गवर्नर-जनरल-इन-काउंसिल को पांच प्रमुख विश्वविद्यालयों (कलकत्ता, बम्बई, मद्रास, पंजाब और इलाहाबाद) के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र को सीमित करने का अधिकार मिला था।[39]
२० अगस्त १९०४ को ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के बाद, सीलोन क्षेत्र मद्रास विश्वविद्यालय के अधीन चला गया। इसी तरह मध्य भारत के सभी प्रांत, राज्य और एजेंसियां, जैसे मध्य भारत एजेंसी, राजपूताना एजेंसी तथा संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध भी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के नियंत्रण में आ गए और उत्तरी तथा उत्तर-पश्चिमी प्रांत तथा राज्य, पंजाब विश्वविद्यालय के अधीन आ गए। पूर्वी भारत में स्थित स्कूलों और कॉलेजों का अधिकार हालांकि अभी भी कलकत्ता विश्वविद्यालय के पास ही रहा। १९०७ तक, पंजाब में दो कॉलेज, मध्य प्रांत में तीन, राजपूताना एजेंसी के राज्यों में पांच, संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध में छह, और सीलोन में सात कॉलेज कलकत्ता विश्वविद्यालय से असंबद्ध कर दिए जा चुके थे। विघटन की यह प्रक्रिया १९४८ तक जारी रही। १९१७ में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद बिहार और उड़ीसा प्रांत के स्कूल और कॉलेज इसके अधीन आ गए। १९२० में रंगून विश्वविद्यालय की स्थापना के साथ बर्मा क्षेत्र इसके नियंत्रण में आ गया। उसी वर्ष ढाका विश्वविद्यालय की भी स्थापना हुई, और पूर्वी बंगाल के कुछ कॉलेज इसके अधीन आ गए। १९४७ में भारत के विभाजन के बाद कलकत्ता विश्वविद्यालय का इस क्षेत्र पर से पूर्ण नियंत्रण समाप्त हो गया। १९४८ में गुवाहाटी विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद असम के सभी स्कूल और कॉलेज भी विश्वविद्यालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर हो गए।[5][40]
२०२० तक, पश्चिम बंगाल में १५१ कॉलेज और २२ संस्थान एवं केंद्र कलकत्ता विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं।[41][42][43] संबद्ध कॉलेजों में से कुछ प्रमुख कॉलेज हैं :[44]
- सेंट जेवियर्स कॉलेज
- आशुतोष कॉलेज
- बंगबासी कॉलेज
- बेथ्यून कॉलेज
- सिटी कॉलेज
- दीनबंधु एंड्रयूज कॉलेज
- गोयनका कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन
- गुरुदास कॉलेज
- हेरम्बा चंद्र कॉलेज
- जोगमाया देवी कॉलेज
- लेडी ब्रेबोर्न कॉलेज
- महाराजा मनिंद्र चंद्र कॉलेज
- मौलाना आज़ाद कॉलेज
- सम्मिलानी महाविद्यालय
- स्कॉटिश चर्च कॉलेज
- सेठ आनंदराम जयपुरिया कॉलेज
- सुरेन्द्रनाथ कॉलेज
- विद्यासागर महाविद्यालय
संकाय, विभाग और केंद्र
संपादित करेंविश्वविद्यालय में कुल ६० विभाग हैं, जो सात संकायों में विभाजित हैं: कला; वाणिज्य; सामाजिक कल्याण और व्यवसाय प्रबंधन; शिक्षा, पत्रकारिता और पुस्तकालय विज्ञान; इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी; ललित कला, संगीत और गृह विज्ञान; कानून; और विज्ञान, इसके अतिरिक्त छह विभागों वाला एक कृषि संस्थान भी है।[43]
कृषि शिक्षा और अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए, कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंतर्गत कृषि विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई थी। इसकी स्थापना पाबित्र कुमार सेन ने की थी, जो १९५० के दशक की शुरुआत में कृषि के खैरा प्रोफेसर थे। प्रारंभिक प्रयास १९१३ में शुरू हुए, लेकिन पहला संस्थान १९३९ में बैरकपुर में स्थापित किया गया, जब इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (जो अब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के नाम से जाना जाता है) की स्थापना हुई थी।[45] हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के कारण इसे १९४१ में बंद कर दिया गया था। फिर, १९५४ में विश्वविद्यालय ने बालीगंज विज्ञान महाविद्यालय में कृषि में स्नातकोत्तर विभाग की शुरुआत की, जिसमें कृषि वनस्पति विज्ञान एकमात्र विषय था। दो साल बाद, एक पशु चिकित्सा विज्ञान संस्थान भी जोड़ा गया और विभाग को कृषि और पशु चिकित्सा विज्ञान संकाय के रूप में उन्नत किया गया। २००२ में विश्वविद्यालय ने कलकत्ता के दक्षिण में स्थित बारुईपुर शहर में कृषि प्रयोग फार्म परिसर में स्नातक कृषि पाठ्यक्रमों को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया। उसी वर्ष विभाग को एक अलग कृषि विज्ञान संस्थान के रूप में पुनर्गठित किया गया।[46]
कला संकाय में २३ विभाग हैं; वाणिज्य में तीन विभाग हैं; शिक्षा, पत्रकारिता और पुस्तकालय विज्ञान में तीन विभाग हैं; इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी में आठ विभाग हैं; विज्ञान में २२ विभाग हैं और गृह विज्ञान में खाद्य और पोषण, मानव विकास और गृह विज्ञान जैसे विषयों पर पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं।[43] विधि संकाय की स्थापना जनवरी १९०९ में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ के रूप में की गई थी। इसे फरवरी १९९६ में विश्वविद्यालय के विधि विभाग का दर्जा दिया गया। यह परिसर लोकप्रिय रूप से हाजरा लॉ कॉलेज के नाम से जाना जाता है। इस संकाय से राजेंद्र प्रसाद, रासबिहारी घोष और चित्तरंजन दास जैसे कई प्रमुख व्यक्ति जुड़े हुए हैं।[47][43]
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शिक्षा
संपादित करेंप्रवेश
संपादित करेंस्नातक पाठ्यक्रमों के लिए - कला (बीए), वाणिज्य (बी.कॉम.), और विज्ञान (बीएससी) विषयों में (इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों को छोड़कर) कोई भी व्यक्ति अपनी उच्चतर माध्यमिक प्रमाणपत्र परीक्षा या समकक्ष परीक्षा के परिणामों के आधार पर कई पाठ्यक्रमों के लिए सीधे आवेदन कर सकता है। छात्रों का चयन उनके प्राप्त अंकों और उपलब्ध सीटों के आधार पर किया जाता है। कुछ विभागों में प्रवेश परीक्षा भी हो सकती है, जो विभाग प्रमुख के विवेक पर निर्भर करती है। छात्र उच्चतर माध्यमिक प्रमाणपत्र परीक्षा पास करने के पांच साल के भीतर आवेदन कर सकते हैं।[48] इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश पश्चिम बंगाल संयुक्त प्रवेश परीक्षा की रैंकिंग के आधार पर होता है।[49][50] स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों और डॉक्टरेट डिग्री पाठ्यक्रमों के लिए छात्रों को विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित लिखित प्रवेश परीक्षा या यूजीसी द्वारा आयोजित संबंधित विषय की राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा पास करनी होती है। परीक्षा परिणामों के आधार पर एक मेरिट सूची तैयार की जाती है।[51][52][53]
अनुसंधान
संपादित करेंस्नातक छात्र इंजीनियरिंग के तीन या चार साल के कार्यक्रमों में दाखिला ले सकते हैं। विश्वविद्यालय में प्रवेश के समय, छात्र एक प्रमुख विषय चुनते हैं और इसे केवल तब तक बदल सकते हैं, जब तक वे बाद में विश्वविद्यालय के पेशेवर या स्व-वित्तपोषित स्नातकोत्तर कार्यक्रमों में प्रवेश नहीं करते। विज्ञान और व्यावसायिक विषयों की भारी मांग है, मुख्य रूप से बेहतर रोजगार अवसरों की आशा के कारण। अधिकांश पाठ्यक्रम वार्षिक आधार पर आयोजित होते हैं, जबकि कुछ पाठ्यक्रम सेमेस्टर सिस्टम पर आधारित होते हैं। अधिकतर विभाग एक वर्ष या कुछ वर्षों की अवधि वाले स्नातकोत्तर कार्यक्रम भी प्रदान करते हैं। अनुसंधान विश्वविद्यालय के विशेष संस्थानों और व्यक्तिगत विभागों में किया जाता है, जिनमें कई विभागों में डॉक्टरेट कार्यक्रम भी होते हैं।[43]
कलकत्ता विश्वविद्यालय में सबसे बड़ा अनुसंधान केंद्र स्थित है, जिसे १७ जनवरी २००६ को विश्वविद्यालय के शताब्दी स्वर्ण जयंती समारोह के अवसर पर स्थापित किया गया था। यह केंद्र पश्चिम बंगाल के साल्ट लेक स्थित सीयू के प्रौद्योगिकी परिसर में नैनोविज्ञान और नैनो प्रौद्योगिकी में अनुसंधान केंद्र (सीआरएनएन) के नाम से जाना जाता है।[54] विश्वविद्यालय में कुल १८ अनुसंधान केंद्र, ७१० शिक्षक, ३,००० गैर-शिक्षण कर्मचारी और ११,००० स्नातकोत्तर छात्र हैं।[55]
पुस्तकालय
संपादित करेंआशुतोष शिक्षा प्रांगण में स्थित केंद्रीय पुस्तकालय की स्थापना १८७० के दशक में की गई थी।[21] इसके अतिरिक्त, विश्वविद्यालय में ३९ विभागीय पुस्तकालय हैं, साथ ही एक केंद्रीय पुस्तकालय, दो परिसर पुस्तकालय और सात परिसरों में फैले उन्नत केंद्रों में दो पुस्तकालय भी हैं। विश्वविद्यालय के संबद्ध कॉलेजों के छात्र भी केंद्रीय पुस्तकालय का उपयोग कर सकते हैं। विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में दस लाख से अधिक पुस्तकें और दो लाख से अधिक पत्रिकाएँ, कार्यवाही, पांडुलिपियाँ, पेटेंट और अन्य मूल्यवान संग्रह हैं।[28][56]
प्रकाशन
संपादित करेंविश्वविद्यालय का अपना प्रकाशन गृह है, जिसे "यूनिवर्सिटी प्रेस एंड पब्लिकेशन्स" कहा जाता है। इसके साथ ही एक पुस्तक डिपो भी है, जिसे २०वीं शताब्दी में स्थापित किया गया था। यह विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित सभी परीक्षाओं के लिए पाठ्यपुस्तकें, ग्रंथ, पत्रिकाएँ और गोपनीय पत्र प्रकाशित करता है। इसके अतिरिक्त, यह 'द कलकत्ता रिव्यू' नामक पत्रिका भी प्रकाशित करता है, जो एशियाई विश्वविद्यालयों की सबसे पुरानी पत्रिकाओं में से एक मानी जाती है। द कलकत्ता रिव्यू की स्थापना सर जॉन के ने मई १८४४ में की थी, और १९१३ से यह हर दो साल में प्रकाशित होती आ रही है।[57][58][59]
इसके अलावा, सेज प्रकाशन के साथ विश्वविद्यालय का एक संबद्ध जर्नल भी है, जिसका नाम है 'अर्थनीति: जर्नल ऑफ इकोनॉमिक थ्योरी एंड प्रैक्टिस'।[60]
रैंकिंग
संपादित करेंUniversity and college rankings | |
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General – India | |
Outlook India (Universities) (2020)[61] | 6 |
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कलकत्ता विश्वविद्यालय को २०२३ की क्यू. एस. वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में ८०१-१००० रैंक प्राप्त हुआ था,[62] जबकि एशिया में इसे १८१वां स्थान मिला।[63] २०२३ की टाइम्स हायर एजुकेशन वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में इसे १००१-१२०० रैंक दिया गया था।[64] २०२२ में इसे एशिया में ४०१-५०० रैंक प्राप्त हुआ था,[65] और उभरती अर्थव्यवस्थाओं के बीच भी इसी श्रेणी में रखा गया था।[66] २०२२ की विश्व विश्वविद्यालयों की अकादमिक रैंकिंग में विश्वविद्यालय को ९०१-१००० रैंक प्राप्त हुआ था।[67] भारत में, कलकत्ता विश्वविद्यालय को २०२४ में राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क द्वारा समग्र रूप से २६वां और विश्वविद्यालयों में १८वां स्थान मिला था।[68]
मान्यता और पहचान
संपादित करें२००१ में, कलकत्ता विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन और मान्यता परिषद (नैक) द्वारा विश्वविद्यालय की मान्यता के पहले चक्र में "पांच सितारा" का दर्जा प्राप्त हुआ था।[69] २००९ और २०१७ में, नैक ने विश्वविद्यालय को अपने दूसरे और तीसरे चक्र में 'ए' ग्रेड प्रदान किया।[19] ८ दिसंबर २००५ को कलकत्ता विश्वविद्यालय को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा "उत्कृष्टता की संभावना वाले विश्वविद्यालय" के रूप में मान्यता प्राप्त हुई।[70][71] इसे गणितीय मॉडलिंग सहित इलेक्ट्रो-फिजियोलॉजिकल और न्यूरो-इमेजिंग अध्ययनों में "विशेष क्षेत्र में उत्कृष्टता की संभावना वाले केंद्र" का दर्जा भी प्राप्त हुआ।[72][73]
विश्वविद्यालय के पांडुलिपि पुस्तकालय को राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन के तहत २००३ में "पांडुलिपि संरक्षण केंद्र" के रूप में नामित किया गया है।[74][75] विश्वविद्यालय में सबसे अधिक छात्र हैं जिन्होंने प्राकृतिक विज्ञान और कला में डॉक्टरेट प्रवेश पात्रता परीक्षा, जिसे राष्ट्रीय योग्यता परीक्षा (नेट) के नाम से जाना जाता है, उत्तीर्ण की है।[76] यह छात्रों को भारत सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली पूर्ण छात्रवृत्ति के साथ अनुसंधान करने का अवसर प्रदान करता है। इसके अलावा, विश्वविद्यालय संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक प्रभाव पहल पहल का सदस्य भी है।[77]
यह भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करेंटिप्पणियां
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बाहरी कड़ियाँ
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