कोहबर
कोहबर (कौतुकगृह[1], कोष्ठवर[2]) भारत के झारखंड की लोककला है। कोहबर चित्रकला में नैसर्गिक रंगों का प्रयोग होता है, मसलन लाल, काला, पीला, सफेद रंग पेड़ की छाल व मिट्टी से बनाए जाते हैं। सफेद रंग के लिए दूधी मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। काला रंग भेलवा पेड़ के बीज को पिस कर तैयार किया जाता है। इनकी पेंटिंग में ब्रश भी प्राकृतिक ही होते हैं। उंगलियां, लकड़ी की कंघी (अब प्लास्टिक वाली), दातुन से चित्र उकेरे जाते हैं। मिट्टी के घरों की अंदरूनी दीवार को ब्लैक एंड व्हाइट बेल बूटा, पत्तों, मोर का चित्र बनाकर सजाया जाता है। विवाह के समय, घर के किसी एक कमरे में पूर्वी दीवाल पर कोहबर चित्रकारी की जाती है। वर एवं वधू पक्ष दोनों के घर में, विवाह की विविध रस्मों में से एक कार्यक्रम कोहबर पूजन का भी होता है जिसमें भीत पर बने इस कोहबर का पूजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों के दौरान कुछ विशेष संस्कार-गीत भी गाये जाते हैं जिन्हें कोहबर गीत कहते हैं[3] और इनमें वर-वधू के बीच प्रेम भाव बढ़ाने की भावना होती है।[4] कोहबर घर के उस कमरे को भी कहते हैं जहाँ यह चित्रांकन किया जाता है। वधू के आगमन पर उसे इसी कक्ष में रहना होता है।[4] झारखंड के कोहबर कला को जियोग्राफिकल इंडिकेशंस टैग (जीआइ टैग) प्राप्त है।
सन्दर्भ5. https://web.archive.org/web/20191229202906/https://www.jagran.com/jharkhand/ranchi-sohrai-and-kohbar-art-soon-jharkhand-will-get-gi-tag-for-sohray-and-kohbar-art-in-jharkhand-19884108.html
संपादित करें- ↑ विद्यानिवास मिश्र (2009). हिंदी की शब्द-सम्पदा. राजकमल प्रकाशन प्रा॰ लि॰. पपृ॰ 124–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-267-1593-0.
- ↑ अम्बाप्रसाद सुमन (1971). मानसशब्दार्थतत्व. विज्ञानभारती.
- ↑ नीतू शर्मा (2016). फ़ैजाबाद सांस्कृतिक गैजेटियर. वाणी प्रकाशन. पपृ॰ 119–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-93-5229-571-5.
- ↑ अ आ गजेन्द्र ठाकुर (संप.). विदेह समालोचना. गजेन्द्र ठाकुर. पपृ॰ 103–. GGKEY:K809SH5BCW4.[मृत कड़ियाँ]
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