क्रिया (व्याकरण)
विकारी शब्द ,अक्षर सम्बन्धित कार्यवाई
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क्रिया वे शब्द होते हैं जो किसी कार्य के होने या करने अथवा किसी व्यक्ति या वस्तु की स्थिति का बोध कराते हैं।
विशेषतासंपादित करें
- क्रिया के बिना वाक्य पूर्ण नहीं हो सकते।
- कुछ क्रियाएँ स्वघटित होते हैं और कुछ की जाती हैं।
- क्रियाएँ एक या अधिक शब्दों से मिलकर हो सकते हैं।
- क्रिया के रूप लिंग, वचन, कारक तथा काल से प्रभावित होकर परिवर्तित हो सकते हैं। इसलिए वह विकारी शब्द होते हैं।
धातुसंपादित करें
क्रिया के मूल रूप को धातु कहते हैं। धातु के चार भेद होते हैं:
- सामान्य धातु: क्रिया के धातु में ‘ना’ प्रत्यय लगाकर बनती है। जैसे: लिख + ना = लिखना
- व्युत्पन्न धातु: सामान्य धातु में प्रत्यय लगाकर बनती है। जैसे: लिखना, लिखवाना, लिखाया
- नाम धातु: संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों में प्रत्यय लगाकर बनती है।
- मिश्र धातु: संज्ञा, विशेषण तथा क्रियाविशेषण शब्दों के बाद करना, लेना, लगना, होना, आना आदि लगाकर बनती है।
क्रिया के भेदसंपादित करें
- कर्म के आधार पर
- प्रयोग के आधार पर
कर्म के आधार पर क्रिया भेदसंपादित करें
- अकर्मक क्रिया: वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा नहीं होती, उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे:
- शीला हँसती है।
- बच्चा रो रहा है।
- सकर्मक क्रिया: वाक्य में जिस क्रिया के प्रयोग में कर्म की अपेक्षा रहती है, उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे:
- शीला ने सेब खाया
- मोहन पानी पी रहा है।
प्रयोग के आधार पर क्रिया भेदसंपादित करें
- संयुक्त क्रिया
- सहायक क्रिया
- प्रेरणार्थक क्रिया
- पूर्वकालिक क्रिया