क्षणिकवाद
बौद्ध दर्शन में सब से महत्वपूर्ण दर्शन क्षणिकवाद का है। इसके अनुसार, इस ब्रह्मांड में सब कुछ क्षणिक और नश्वर है। कुछ भी स्थायी नहीं। सब कुछ परिवर्तनशील है। यह शरीर और ब्रह्मांड उसी तरह है जैसे कि घोड़े, पहिए और पालकी के संगठित रूप को रथ कहते हैं और इन्हें अलग करने से रथ का अस्तित्व नहीं माना जा सकता।[1]
इस सिद्धांत का मूल महात्मा बुद्ध द्वारा दिये गये चार सत्यों पर आधारित है। यह चार सत्य हैं-
- 1. संसार दुखों का घर है।
- 2. इस दुख का कारण है
- 3. यह दुख समाप्त किये जा सकते हैं।
- 4. इन दुखों को समाप्त करने का मार्ग है।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ बौद्ध दर्शन के मूल सिद्धांत Archived 2015-06-09 at the वेबैक मशीन (वेबदुनिया)
इन्हें भी देखें
संपादित करेंबाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- बौद्ध दर्शन में क्षणिकवाद (दैनिक ट्रिब्यून)
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