क्षणिका
क्षणिका साहित्य की एक विधा है।
- “क्षण की अनुभूति को चुटीले शब्दों में पिरोकर परोसना ही क्षणिका होती है। अर्थात् मन में उपजे गहन विचार को थोड़े से शब्दों में इस प्रकार बाँधना कि कलम से निकले हुए शब्द सीधे पाठक के हृदय में उतर जाये।” मगर शब्द धारदार होने चाहिए। तभी क्षणिका सार्थक होगी अन्यथा नहीं।
सच पूछा जाये तो क्षणिका योजनाबद्ध लिखी ही नहीं जा सकती है। यह तो वह भाव है यो अनायास ही कोरे पन्नों पर स्वयं अंकित होती है। अगर सरलरूप में कहा जाये तो की आशुकवि ही क्षणिका की रचना सफलता के साथ कर सकता है। साथ ही क्षणिका जितनी मर्मस्पर्शी होगी उतनी वह पाठक के मन पर अपना प्रभाव छोड़ेगी। क्षणिका को हम छोटी कविता भी कह सकते हैं। क्षणिकाएँ हास्य, गम्भीर, शान्त और करुण आदि रसों में भी लिखी जा सकती हैं।
वर्गीकरण
संपादित करेंक्षणिका को हम दो भागों में बाँट सकते हैं-
- (१) तुकान्त क्षणिका।
- (२) अतुकान्त क्षणिका।
तुकान्त क्षणिका
संपादित करेंदोहा, चौपाई या अशआर अन्य किसी सीमित शब्दों के छोटे-छोटे छन्दों में रची जा सकती है।
- आँखें कभी छला करती हैं,
- आँखे कभी खला करती हैं।
- गैरों को अपना कर लेती,
- जब ये आँख मिला करती हैं।।
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- दुर्बल पौधों को ही ज्यादा,
- पानी-खाद मिला करती है।
- चालू शेरों पर ही अक्सर,
- ज्यादा दाद मिला करती है।
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- लटक रहे हैं कब्र में, जिनके आधे पाँव।
- वो ही ज्यादा फेंकते, इश्क-मुश्क के दाँव।।
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अतुकान्त क्षणिका
संपादित करेंइसमें किसी छन्द की मर्यादा की जरूरत नहीं पड़ती है। लेकिन शब्द ऐसे होने चाहिएँ कि वह सीधे दिल पर चोट करें।
- शराब वही
- बोतल नई
- कैसी रही
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- रूप बदला है
- ऐब छिपाया है
- धोखा देने के लिए
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- गद्य लिखता हूँ
- लाइनों को तोड़ कर
- कविता बन जाती है
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- शब्द गौण हैं
- अर्थ मौन हैं
- इसीलिए श्रेष्ठ रचना है