सामान्यतः देखने को मिलता है कि किसी प्रणाली या किसी माध्यम में घुसने वाली ऊर्जा/संकेत उससे निकलने पर कम को जाती है। इस प्रक्रिया को क्षीणन (attenuation) कहते हैं। उदाहरण के लिए रंगीन काच से गुजरने पर प्रकाश की त्तिव्रता कम हो जाती है। इसी तरह सीसे (lead) की सिल्ली को पार करने के बाद X-किरणे क्षीण हो जातीं हैं। जल तथा वायु प्रकाश एवं ध्वनि को क्षीण करतीं हैं। विद्युत इंजीनियरी में और सूरसंचार में, तंरंगें और संकेत जब किसी विद्युत नेटवर्क, ऑप्टिकल फाइबर या वायु से होकर गुजरते हैं तो उनका क्षीणन होता है।

धूप के चश्मे (सन ग्लास) पहनकर किसी चमकीली वस्तु (जैसे सूर्य) को भी देखा जा सकता है। इससे आँख में पहुँचने वाला प्रकाश चश्मे पर गिरने वाले प्रकाश से बहुत कम हो जाता है।

जो वस्तुएँ क्षीणन करतीं हैं, उन्हें क्षीणक (अटिनुएटर) कहते हैं। अतः क्षीणक, प्रवर्धक (ऐम्प्लिफायर) का उल्टा काम करता है।

वैद्युत क्षीणन संपादित करें

यदि हम P2 शक्ति वाले एक संकेत को किसी अक्रिय परिपथ ( जैसे केबल) में डालते हैं तो केबल से होकर गुजरने के बाद वह कुछ क्षीण हो जाता है और दूसरे सिरे पर हमे P1 शक्ति वाला संकेत प्राप्त होती है। इस स्थिति में, क्षीणन (α) को निम्नलिखित प्रकार से पारिभाषित किया जाता है-

 

इनपुट-आउटपुट वोल्टता के रूप में क्षीणन को निम्नलिखित प्रकार से लिख सकते हैं-

 

इनपुट-आउटपुट धारा के रूप में क्षीणन को निम्नलिखित प्रकार से लिख सकते हैं-

 

सन्दर्भ संपादित करें

इन्हें भी देखें संपादित करें