भारत और पाकिस्तान में ख़सरा एक कृषि-सम्बन्धी क़ानूनी दस्तावेज़ होता है जिसमें किसी गाँव के ज़मीन के किसी टुकड़े और उस पर उगाई जा रही फसलों का ब्यौरा लिखा होता है।[1] इसका प्रयोग एक शजरा नामक दस्तावेज़ के साथ किया जाता है जिसमें पूरे गाँव का मानचित्र होता है जो उस गाँव की सभी भूमि-पट्टियों की जानकारी देता है। इन पट्टियों का ब्यौरा ही ख़सरों में होता है।[1][2] पारम्परिक रूप से ख़सरों में हर खेत और उसके क्षेत्रफल व अन्य मापों का, उसके मालिक का और उसपर काम करने वालों कृषकों का, उसपर उगने वाली फसलों का, उसकी मिट्टी के प्रकार का और उसपर उग रहे वृक्षों का विवरण होता है।[1]

अगर गाँव के ख़सरों को प्रयोग करके किसी एक व्यक्ति या परिवार के स्वामित्व वाली भूखण्डों की सूची बनाई जाए तो उसे 'ख़तौनी' कहते हैं। यानि किसी व्यक्ति या परिवार के सभी ख़सरों की सूची उस व्यक्ति/परिवार की ख़तौनी में होती है।[1]

ख़सरों का प्रयोग भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों से चला आ रहा है और ब्रिटिश राज से बहुत पहले शुरू हो गया था। मध्यकालीन ख़सरों को देखकर भारत व पाकिस्तान के अलग-अलग क्षेत्रों के आर्थिक इतिहास के बारे में बहुत जानकारी मिलती है।[3]

इन्हें भी देखें

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  1. The Land Systems of British India: Being a Manual of the Land-tenures and of the Systems of Land-revenue Administration Prevalent in the Several Provinces Archived 2014-01-05 at the वेबैक मशीन, Baden Henry Baden-Powell, Clarendon Press, 1892, ...The shajra or village map ... The khasra, or index register to the map. It is a list showing, by numbers, all the fields and their areas, measurement, who owns and what cultivators he employs, what crops, what sort of soil, what trees are on the land ... From this khasra a 'khatauni', or abstract of fields held by each person, is made out ...
  2. The Central Administration of the East India Company 1773-1834 Archived 2014-01-05 at the वेबैक मशीन, Bankey Bihari Misra, Manchester University Press, 1959, ... The preparation of a detailed field map called Shajra in which the fields were numbered. The patwari was then to register all the field numbers in a corresponding field book called khasra which also contained the name of the proprietor ...
  3. The agrarian system of eastern Rajasthan, c. 1650-c. 1750, Satya Prakash Gupta, Centre of Advanced Study in History, Aligarh Muslim University, Manohar, 1986, ISBN 978-81-85054-11-7, ... These village papers were usually maintained and duly signed in the local language by the patel and patwari, the headman and the accountant respectively. The khasra papers are of different kinds ...