खाकी पंथ, उत्तर भारत का एक वैष्णव पंथ जिसकी स्थापना कृष्णदास पयहारी के शिष्य कील्ह ने की थी। इस नाम के भी मूल में फारसी शब्द 'खाक' (राख, धूल) ही है। इस पंथ के लोगों का कहना है कि रामचंद्र के वन जाते समय लक्ष्मण ने अपने अंग में राख मल ली थी इससे उनका नाम खाकी पड़ा और उसी नाम को इन लोगों ने ग्रहण किया है।

नवाब शुजाउद्दौला के राज्याधिकारी दयाराम ने इस पंथ का एक अखाड़ा संवत्‌ 1905 में स्थापित किया। उस समय वहाँ 150 व्यक्ति थे। तबसे वहाँ अखाड़ा कायम है और उसका संचालन एक महंत करते हैं। इस पंथ का एक दूसरा अखाड़ा रेवा काँठा स्थित लुनावाड़ा में है और उसकी एक शाखा अहमदाबाद में है।

इस पंथ के लोग मिट्टी अथवा राख में रँगा वस्त्र पहनते हैं। राम, सीता और हनुमान इनके आराध्य देव हैं। ये लोग शैवो की भाँति जटा धारण करते है और शरीर में राख लपेटते हैं। इनकी धारणा है कि नदी के प्रवाह के समान साधु को सदा भ्रमणशील होना चाहिए। अत: इस पंथ के साधु कहीं एक जगह नहीं ठहरते।