खिमलासा
खिमलासा (Khimlasa) भारत के मध्य प्रदेश राज्य के सागर ज़िले की खुरई तहसील में स्थित एक ग्राम है।[1][2]
खिमलासा Khimlasa | |
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खिमलासा दुर्ग के भीतर | |
निर्देशांक: 24°12′18″N 78°21′50″E / 24.205°N 78.364°Eनिर्देशांक: 24°12′18″N 78°21′50″E / 24.205°N 78.364°E | |
देश | भारत |
प्रान्त | मध्य प्रदेश |
ज़िला | सागर ज़िला |
तहसील | खुरई |
जनसंख्या (2011) | |
• कुल | 10,333 |
भाषाएँ | |
• प्रचलित | हिन्दी |
समय मण्डल | भारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30) |
विवरण
संपादित करेंउल्लेखों के मुताबिक इस नगर का नाम पहले क्षेमोल्लास था। फिर धीरे धीरे कमलासा और फिर खिमलासा हो गया। कमलासा नाम के पीछे बढ़ी वजह यह रही कि यहां कमल के फूलों की खेती अत्यधिक मात्रा में हुआ करती थी। खिमलासा की संरचना कमल के फूल की तरह है। चारो तरफ किले की दीवार से गिरी हुई बस्ती ऊपर से देखने पर कमल के फूल के समान प्रतीत होती है जिसकी वजह से इसका नाम कमलासा हुआ। खिमलासा सागर ज़िला, मध्य प्रदेश का ऐतिहासिक स्थान था। गढ़मंडला की रानी दुर्गावती के श्वसुर संग्राम सिंह के 52 गढ़ों में से एक यहाँ स्थित था। इन्हीं गढ़ों के कारण दुर्गावती का राज्य गढ़मंडला कहलाता था। संग्राम सिंह की मृत्यु 1541 ई. में हुई थी।[3]
16वीं से यह क्षेत्र मुगलों के अधीन रहा, बाद में खिमलासा, धामोनी और गढ़ाकोटा में मुगल सेना को परास्त कर महाराज छत्रसाल ने अपना राज्य स्थापित किया। 1818 के पश्चात यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन था। 1861 में प्रशासनिक व्यवस्था के लिए इस क्षेत्र को नागपुर से मिला लिया गया और यह व्यवस्था 1956 तक नए मध्यप्रदेश राज्य के पुनर्गठन तक बनी रही। खिमलासा के किले का गौरवमयी इतिहास है। इसकिले में प्रवेश द्वार से भीतर जाने के स्थान से लेकर अंदर के सभी भवन - मंदिर, मस्जिद, बावड़ी आज भी काफी आकर्षण एवं रहस्य को लिये हैं, काफी दर्शनीय हैं। नगर के चारों ओर परोकोट और खण्डहर प्राचीन नगर की समृद्धि के साक्षी हैं।[3]
समृद्ध इतिहास, पुरातात्विक साक्ष्यों को सहेजे मूक किले दरवाजे, प्राचीन तोप, इमारतें शिलालेख, कलाकृतिया, चाहरदीवारी, बुर्जे, बावडी, कुंड, शीश महल पुरातात्विक स्मृतियां खंडहर रुप में आज भी संरक्षण की राह देख रहीं हैं। पूर्ण संरक्षण नहीं मिल पाने के कारण और सरकार द्वारा स्थानीय स्तर पर संग्रहालय स्थापित नहीं होने के कारण कई ऐतिहासिक पुरातात्विक महत्व की वस्तुएं, कलाकृती, नगर वास्तु, मूर्ती व शिल्पकला अब जीर्णशीर्ण स्थिति, खंडहर स्थिति में हैं।[3]
ऐतिहासिक कालक्रम
संपादित करें- खिमलासा को सन 1490 ई. में बसाया गया। जो शिला लेखों में उल्लेख है। शिलालेख हिंदी और अरबी में मिलते हैं।
- यहाँ #अचलोबाई नाम की एक प्रसिद्ध विदूषी महिला हुई हैं। जो हाथ से संस्कृत के पत्रे लिखती थी। संस्कृत शिक्षा प्रसार के लिए कार्य किये। दूर दूर से यहाँ विद्वान आते रहते थे। संस्कृत शिक्षा के कई गुरुकुल थे। संस्कृत के पठन पाठन का बडा प्रसार था।
- प्राचीन काल में खिमलासा को काशी का टुकडा कहा जाता था।
- इस नगर की संरचना कमल के समान है। उस समय यहाँ कमल की खेती बहुतायत में होती थी। नगर ऊचाई से देखने से कमल के फूल के समान प्रतीत होता है।
- खिमलासा गढ मंडला की #महारानी_दुर्गावती के स्वसुर #संग्राम_सिंह के 52 गढों /किलों में से एक था।
- सन् 1541 ई. में संग्राम सिंह की मृत्यु हुई थी।
- 16 वी सदी से यह क्षेत्र मुगलों के अधीन रहा।
- बाद में महाराज_छत्रसाल पन्ना के राजा ने गढाकोटा, धामोनी, खिमलासा को मुगलों को परास्त कर अपना राज्य स्थापित किया।
- सन् 1695 ई. में पन्ना के राजा #अनूप_सिंह का शासन रहा। अनूप सिंह ने ही नगर के चारों ओर 20 फीट ऊची रक्षा दीवार /चार दीवारी, बुर्जे बनवायी।
- शीश महल का निर्माणराजपूतों ने कराया था। उस समय शीश महल में शीशे आयने लगे होते थे।
- प्राचीन बाजार भवन व्यवस्था उच्चस्तरीय थी।
- सन् 1746 ई. में खिमलासा बुंदेलों के पास से पेशवा के पास चला गया।
- पेशवा ने 1818 में खिमलासा को अग्रेजों को सौप दिया। 1818 के पश्चात यह क्षेत्र ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया। सन् 1834 ई. में खुरई से जोड दिया गया।
- सन् 1857 में बानपुर के राजा ने खिमलासा खुरई को अपने अधिकार में ले लिया।
- सन् 1861 में प्रशासनिक व्यवस्था के लिए नागपुर क्षेत्र में मिला लिया गया।
- यह व्यवस्था 1956 तक नये मध्यप्रदेश राज्य के गठन तक बनी रही।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंसन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "Inde du Nord: Madhya Pradesh et Chhattisgarh Archived 2019-07-03 at the वेबैक मशीन," Lonely Planet, 2016, ISBN 9782816159172
- ↑ "Tourism in the Economy of Madhya Pradesh," Rajiv Dube, Daya Publishing House, 1987, ISBN 9788170350293
- ↑ अ आ इ "सागर सरोज: सागर डिस्ट्रिक्ट गैज़ेटीयर," राय बहादुर हीरालाल, नरसिंहपुर, 1922