लाल कुर्ती आन्दोलन

ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक पश्तुन अहिंसक आंदोलन
(खुदाई खिदमतगार से अनुप्रेषित)

लाल कुर्ती आन्दोलन भारत में पश्चिमोत्तर सीमान्त प्रान्त में ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान द्वारा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समर्थन में ख़ुदाई ख़िदमतगार के नाम से चलाया गया एक ऐतिहासिक आन्दोलन था। "ख़ुदाई ख़िदमतगार" एक पश्तो शब्द है जिसका हिन्दी में अर्थ होता है "ईश्वर की बनाईं हुई विश्व के सेवक"।[1]

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान (बायीं ओर) महात्मा गांधी (दायीं ओर) के साथ (1940 का चित्र)

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान एक पख्तून थे जो महात्मा गांधी के अहिंसक सिद्धान्तों के बहुत बड़े प्रशंसक थे। वे काँग्रेस को सीमान्त क्षेत्र में अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध अपनी शिकायतों पर बल देने का एक रास्ता मानते थे। उन्हें सीमान्त गान्धी भी कहा जाता था। उनके अनुयायी अहिंसा के प्रति बचनबद्ध थे और उन्हें अपनी कमीजों के लाल रंग के कारण लाल कुर्ती का लोकप्रिय नाम मिला। बताया जाता है कि स्कूली शिक्षा के दौरान फिल्म अभिनेता ए के हंगल भी फ़्रंटियर गान्धी यानी ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान के नेतृत्व में चल रहे लाल कुर्ती आन्दोलन से जुड़ गये थे।[2]

 
लाल कुर्ती संगठन का एक ऐतिहासिक चित्र

1929 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक सभा में शामिल होने के बाद ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ने ख़ुदाई ख़िदमतगार की स्थापना की और पख़्तूनों के बीच लाल कुर्ती आंदोलन का आह्वान किया। विद्रोह के आरोप में उनकी पहली गिरफ्तारी 3 वर्ष के लिए हुई थी। उसके बाद उन्हें यातनाओं की झेलने की आदत सी पड़ गई। जेल से बाहर आकर उन्होंने पठानों को राष्ट्रीय आन्दोलन से जोड़ने के लिए 'ख़ुदाई ख़िदमतग़ार' नामक संस्था की स्थापना की और अपने आन्दोलनों को और भी तेज़ कर दिया।

1937 में नये भारत सरकार अधिनियम के अन्तर्गत कराये गए चुनावों में लाल कुर्ती वालों के समर्थन से काँग्रेस पार्टी को बहुमत मिला और उसने गफ्फार खान के भाई खान साहब के नेतृत्व में मन्त्रिमण्डल बनाया जो बीच का थोड़ा अन्तराल छोड़कर 1947 में भारत विभाजन तक काम करता रहा। इसी वर्ष सीमान्त प्रान्त को भारत और पाकिस्तान में से एक में विलय का चुनाव करना पड़ा। उसने जनमत संग्रह के माध्यम से पाकिस्तान में विलय का विकल्प चुना।[3]

ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान ने तब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के सीमान्त जिलों को मिलाकर एक स्वतन्त्र पख्तून देश (पख्तूनिस्तान) की अवधारणा की वकालत की। पाकिस्तान सरकार ने इस आन्दोलन और लाल कुर्ती (पोशाक), दोनों का दमन कर दिया।[4]

हाल के वर्षों में भारत में खुदाई खिदमतगार को फिर से जीवित करने का प्रयास किया गया है. खान अब्दुल गफ्फार खान के एक अनुयायी फैसल खान ने संगठन की इकाइयां देश के कई राज्यों में स्थापित कर, युवाओं को धार्मिक सौहाद्र से रहने, जनसेवा करने एवं सीमान्त गांधी के विचारों के ओर ले जाने के लिए कोशिश की है।

इन्हें भी देखें

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  1. "सामान्य अध्ययन, प्रश्न-26". मूल से 27 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 सितंबर 2013.
  2. "हरफनमौला थे हमारे हंगल". मूल से 29 सितंबर 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 सितंबर 2013.
  3. भारत ज्ञानकोश, भाग-5, प्रकाशक: पॉपुलर प्रकाशन, मुंबई, पृष्ठ संख्या: 157, आई एस बी एन 81-7154-993-4
  4. भारत ज्ञानकोश, भाग-5, प्रकाशक: पॉपुलर प्रकाशन, मुंबई, पृष्ठ संख्या: 157, आई एस बी एन 81-7154-993-4

बाहरी कड़ियाँ

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