खैर मुनिया
खैर मुनिया श्येन परिवार का एक शिकारी पक्षी है जो संसार के अनेक देशों में पाया जाता है।
भारत में यह हिमालय में काफी ऊँचाई तक देखा जाता है। यह जाड़ों में पहाड़ों से नीचे उतर कर सारे देश में फैल जाता है और जाड़ा समाप्त होने पर फिर उत्तर की ओर पहाड़ों में लौट जाता है। इसकी एक जाति नीलगिरि के आसपास पायी जाती है जो जाड़ों में त्रिवांकुर तक फैल जाती है। यह खुले मैदानों, खेतों और झाड़ियों वाले ऐसे स्थानों में रहता है जहाँ इसे कीड़े-मकोड़े, टिड्डे, चूहे, छिपकली तथा अन्य छोटे जंतु खाने को मिल सकें। यह छोटी मोटी चिड़ियों को भी आसानी से पकड़ लेता है। यह अपना अधिक समय आकाश में उड़ते हुए बिताता है। हवा में चक्कर लगाते हुए यदि जमीन पर कोई शिकार दिखाई पड़ जाए तो वह ऊपर से सीधे नीचे तीर की तरह आता है और झपट्टा मार कर उसे पकड़ लेता है। अपनी इस आदत के कारण यह आसानी से पहचाना जा सकता है।
इसके नर के सिर का ऊपर का भाग और गरदन के अगल बगल के हिस्से राखीपन लिए स्लेटी और महीन काली रेखाओं से भरे रहते हैं। चोंच की जड़ के पास से गले तक एक सिलेटी पट्टी होती है; चेहरे के दोनों भाग सफेद और गाढ़ी भूरी धारियों के बने होते हैं। शरीर के नीचे का भाग हलका ललछौंह लिए भूरा और सीने और बाजुओं पर भूरी बिंदियाँ और लकीरें होती हैं। मादा के शरीर का ऊपरी भाग चटक ललछौंह भूरा होता है।