खैशगी
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खैशगीखैशगी एक पख़्तून (पठान) क़बीला (जनजाति) है। अनुमानों के मुताबिक़ इसकी कुल संख्या साढ़े छ: लाख है। यह क़बीला अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान व भारत में विभिन्न एं निवासरत है। मौखिक परंपराओं के मुताबिक़ यह क़बीला ख़ुद को बनी इस्राएल से मानता है। इसके 100% लोग इस्लाम को मानने वाले हैं। यह मोहम्मदज़ाई क़बीले की भाई है। अन्य क़बीलों की तरह ही इस क़बीले ने भी अपना मूल स्थान छोड़ कर अन्य स्थानों पर जाकर बसना शुरू किया। वर्तमान निवास स्थान में इस क़बीले ने 1515 ईस्वी के आसपास निवास करना शुरू किया। इस क़बीले का एक बड़ा हिस्सा सन 1525 के आसपास में उत्तरी पश्चिमी अफ़ग़ानिस्तान पहुंचा व ग़ोरबंद दर्रे में रहना शुरू किया। इसका एक बड़ा हिस्सा पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) के क़सूर इलाक़े में 1526 के आसपास बस गया जहां वे आज तक भी रह रहे हैं। उसके बाद इसकी कुछ शाखाओं ने भारत के दिल्ली के पास खोरजा में अपना आवास बनाया जहां वे आज तक भी रह रहे हैं। यह अलग बात है कि उनमें से कई 1947 में बंटवारे के समय पाकिस्तान भाग गये। इस क़बीले के कुछ लोग टांडा, हीरोदाल, व डेरा इस्माईल ख़ान में भी निवासरत हैं। इसके अलावा खैशगी पठान बन्नू, लक्की मारवात, बहावालपुर, मुल्तान, जेकबाबाद, नवाबशाह, शिकारपुर, भारत के रुहेलखंड इलाक़े में, लखनऊ, व निमाड़ के नर्मदा नदी के किनारे मंडलेश्वर में भी निवासरत हैं। इस क़बीले के कुछ लोग पाकिस्तान के पेशावर जिले के घन्टा घर इलाक़े में भी निवास रत हैं वहां उन्हें मलाह खैशगी के नाम से जाना जाता है। कुछ लोग चरसद्दा ख़ास व हज़ारा इलाक़ों में भी निवासरत हैं। इस क़बीले से अनेक महान सेनापति, डाक्टर, इंजीनियर, वकील, व धर्म गुरू पैदा हुए हैं। मुग़ल सेना में इस क़बीले के कई सिपहसालार व सेनापति रहे हैं। मुग़ल सेना में इस क़बीले के लोग बड़ी तादाद में थे। एहले क़लाम अरज़ानी खैशगी पश्तो भाषा के एक महान कवि रहे हैं। वे पश्तो के ऐसे प्रथम कवि थे जिन्होने अपना दीवान लिखा। अब्दुल्ला ख़ान खैशगी प्रसिद्ध आलिम व मुहक़्क़िक थे। इस क़बीले ने 50 से भी अधिक प्रसिद्ध औलिया ए क़राम पैदा किये हैं। इनमें से हाजी गगन शोर्यानी खैशगी, शैख वातो खैशगी, शैख अहमद आतो खैशगी, शैख अहमद आतोज़ी खैशगी, मियां चुन्नो खैशगी, व अरज़ानी ज़ार्ज़ी खैशगी के नाम उल्लेखनीय हैं। मुग़ल सेना में भी बाबर जब लोधी साम्राज्य पर हमला करने आ रहा था तब उसने बड़ी तादाद में खैशगी क़बीले से सेना में भर्ती की, तभी से खैशगी मुग़ल सेना में अन्त तक, मुग़ल साम्राज्य की समाप्ति तक उसमें रहे। क़ुतुबुद्दीन खान खैशगी मुग़ल सेना में औरंगज़ेब के सेनापति थे औरंगज़ेब ने उन्हें मालवा का गवर्नर भी बनाया था। औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद भी मुग़ल सेना में वे अपनी सेवाएं देते रहे व सन 1719 के आसपास में कश्मीर में सिख्खों के साथ युद्ध में शहीद हुए। इसी प्रकार से हकिम खान खैशगी मुग़लों की तरफ़ से लड़ते हुए सूराजमल जाट के साथ युद्ध में 1 जनवरी सन 1750 को शहीद हुए।
ग़ोरबंद के खैशगी
संपादित करेंकुछ मौखिक परंपराओं के मुताबिक यह लोग यहां हिलमंद (अफ़ग़ानिस्तान) व क़न्दाहार से आये हैं। उस समय जब वे यहां आये थे तब वे हैबत, मसौंद व सुल्तान इन तीन उप क़बीलों में थे। अब वह सभी खैशगी के ही नाम से जाने जाते हैं। ऐबत दर्रा सैदान में, मसौंद दर्रा फ़ंक़िस्तान में व सुल्तान दर्रा तवस्ख़ान में निवास करने लगे। ग़ोरबंद के इलाके में 24 बड़े व कई छोटे छोटे दर्रे हैं। यहां के खैशगी अपनी ग़ैरत व बहादुरी के लिये प्रसिद्ध हैं। खैशगी आज भी अपना इस्लामपूर्व का पख़्तूनवली पर मज़बूती से क़ायम हैं।
क़सुरिया पठान
संपादित करेंजब ज़मन्द क़बीला टूट गया तब खैशगी लोग बाबर के साथ चले गये। बाबर ने उनका बहुत समर्थन किया व बाद में हुमयुं की सेनाओं में भी उन्होने सेवाएं दीं। उसमें से एक हिस्सा क़सूर में बस गया व क़सुरिय पठान कहलाया। क़सूरिया पठान संख्या व प्रभाव बढ़ाते रहे यहां तक कि उनके प्रधान ने मुग़लों को कर देना भी बंद कर दिया। सन 1807 तक वे लगभग स्वतन्त्र बने रहे। 1807 में वे सिख्खों से बुरी तरह पराजित हुए। क़सुर पर क़ब्ज़ा करने के बाद महाराजा रणजीत सिंह ने वे सतलज नदी के बांए किनारे तक ख़ुद को सीमित रखें। वहां पर उनके सरदार मामदोत को जागीरें भी दी गयीं। जो फ़िरोज़पुर ज़िले में हैं। मामदोत परिवार बंटवारे के समय पाकिस्तान चला गया है।
चरसद्दा के खैशगी
संपादित करेंयहां पर मुख्यत: तीन परिवारों में निवासरत हैं। मीरा ख़ेल, ख़ुदाई ख़ेल व पैंदा ख़ेल्। यहां पर खैशगी दराई स्थित है।
नवशेरा (पाकिस्तान) के खैशगी
संपादित करें1485- 1490 के बीच आलम बैग़ से विवाद होने के कारण युसुफ़ज़ाई क़बीले की खैशगी क़बीले से सहानुभूति होने के कारण उन्होने खैशगियों को दोवावा का इलाक़ा दे दिया। उस समय वहां पर दलाज़क लोग बजवार मे मरदान तक निवासरत थे। क़ाबुल नदी के दक्षिण का इलाक़ा भी उन्ही के क़ब्ज़े का था। लेकिन आशानगर का इलाक़ा स्वात के जहांगीरी क़बीले के शाह की मिल्कियत का था। उस समय इस परिवार का शाह सुल्तान अवैस था। यहां पर दलाज़क क़बीले के लोग खेती करते थे। युसुफ़ज़ाई क़बीले के लोगों ने दलाज़क़ क़बीले से और ज़मीन की मांग की। उन्हें बज़ावार से दानिशकोल तक की ज़मीन दे दी गयी। कुछ समय बाद युसुफ़ज़ाई क़बीले के लोगों ने दलाज़क़ क़बीले से आशानगर तक की ज़मीनें छीन लीं। उन्होने मरदान, सवाबी, स्वात, व दीर का इलाक़ा भी दलाज़क़ों से छीन लिया। दलाज़कों व युसुफ़ज़ाई के बीच अंतिम लड़ाई कातलंग में हुई जिसमें खैशगियों ने भी युसुफ़ज़ाई की तरफ़ से लड़ाई लड़ी। दलाज़क बुरी तरह पराजित हुए। उनका क़बीला नष्ट भ्रष्ट हो गया। अल्लाह बख़्श युसुफ़ी लिखता है कि युसुफ़ज़ाई का जंग में साथ देने के एवज़ में खैशगियों को नवशेरा का इलाक़ा मिला व उतमान खेल को दोआब का इलाक़ा व मोहम्मद्ज़ाई को हस्तानगर का इलाक़ा मिला। इसके बाद खैशगियों ने वहां पर जो चरसद्द ए ख़ास से लगभग दो मील दूर है, खैशगी दर्रा नाम से एक गाँव बसाया। जब शैख मिल्ली क़ानून के अनुसार 1525- 1530 में ज़मीनों का वितरण किया गया तब खैशगियों ने क़ाबुल नदी के किनारे रहना शुरू किया व खैशगी नाम से बस्ती बसाई जो वर्तमान में खैशगी बाला व खैशगी पायन दो हिस्सों में बंटी हुई है। 1877 के शैख मिल्ली वितरण के अनुसार यह दोनो शहर खैशगियों के आठ खेल (परिवार) व तालों में बांटे गये।
पश्तो या पठानों का इतिहास कई हज़ार साल पुराना है लेकिन इसका अनुवांशिक इतिहास खैश अब्दुल रशीद से शुरू होता है। खैशगियों का अनुवांशिक इतिहास नीचे दिखाया गया है, जिसमें मुहम्मदज़ाई को छोड़ कर अन्य सभी खैशगियों के भाई आजकल खैशगी ही समझे जाते हैं। मोहम्मदज़ाई क़बीले ने अपनी अलग पहचान व शैख मिल्ली वितरण के अनुसार ज़मीनें बरक़रार रखी हुई हैं।
Qais Abdur Rasheed क़ैश अब्दुल रशीद Saraban सरबान Sharkhabun (Sharfudin) शरख़बान Kand कंद Zamandज़ मंद Kheshki(also spelled as kheshgi, kheshagi, khaishgi, khaishagi) खैशगी Muhammad zai मोहम्मदज़ाई Katanreeकतानारी Aziz Zi अज़ीज़ ज़ी Batak Ziब ताक ज़ी Umar Zi उमर ज़ी Ghaibi Zi ग़ैबी ज़ी Nakbe Zi नक्बी ज़ी Zemal ज़ेमाल Abu Bakar अबू बकर Azar अज़र Musa मूसा Nokhi नोख़ी Bajo Zi बलो ज़ी Jamil Zi जमील ज़ी Mansur Zi मंसूर ज़ी Amchi Zi आम्ची ज़ी Bati Zai बाती ज़ई Shuryani शुरियानी Khalaf Zi ख़लफ़ ज़ी Wato Zi वातो ज़ी Jalo Ziज लो ज़ी Shaban Zi शाबान ज़ी Arif Zi अरिफ़ ज़ी Ibrahim Zi इब्राहीम ज़ी Muhammad मोहम्मद Asho Zi अशो ज़ी Hussain Zi हुसैन ज़ी Shamo Zi शामो ज़ी Mehdi मेहदी Badin Katani बदीन कतानी Umar Zi उमर ज़ी Mula Zi मुला ज़ी Ala Zi आला ज़ी Isa Zi ईसा ज़ी Salamak सालामाक Amchozi आमचो ज़ी Karlani करलानी Zer Zi ज़ेर ज़ी Aziz Zi अज़ीज़ ज़ी Umar Zi उमर ज़ी Batak Zi बाताक ज़ी Kasi कासी Kharshabun (Khairudin) ख़रशबुन Bait बैत
निमाड़ (मध्य प्रदेश भारत) के खैशगी
संपादित करेंनिमाड़ के मंडलेशवर व खरगोन में अकबर खान खेल के खैशगी निवास करते हैं। मुर्तज़ा खान खैशगी व गुलरेज़ खान खैशगी मुग़ल सेना में मनसबदार थे। मुर्तज़ा ख़ान खैशगी मुग़ल सेना में पांच हज़ारी मनसबदार थे। गुलरेज़ ख़ान खैशगी मुग़ल सेना में एक हज़ारी मन्सबदार थे। अकबर खन खैशगी मराठा सेना में होल्कर राज्य में मन्सबदार थे। अकबर खान खैशगी ही मन्डलेश्वर आकर बसे थे। अकबर खान खैशगी का वंश व्रृक्ष इस प्रकार है। अकबर खान वल्द गुलरेज़ खान वल्द मुर्तज़ा खान्। मराठों व अन्ग्रेज़ों की सन्धि एव मराठों द्वारा अन्ग्रेज़ों की अधीनता स्वीकार कर लेने के कारण अब मराठा सेना में सेवाएं देना उपयोगी ना रहा था इसके कारण अकबर खान खैशगी के पुत्र मोहम्मेद खान खैशगी ने होल्कर की अदालतों में महेशवर में वकील का न्यवसाय चुना। मोहम्मद खान खैशगी के दो पुत्र थे। अज़ीमउल्ला खान खैशगी व हफ़ीज़उल्ला खान खैशगी। अज़ीमुल्ला खान खैशगी ने वकील का व्यवसाय चुना जबकि हफ़िज़उल्ला खान खैशगी मेडिकल डाक्टर थे। अज़ीमउल्ला खान खैशगी के नौ पुत्र थे व वर्तमान एकाकी परिवार के दौर में पति पत्नी व बच्चों वाले परिवरों में वह नौ परिवार हो गये हैं। इसी प्रकार हफ़िज़उल्ला खान खैशगी के चार पुत्र थे व चार परिवार अलग अलग स्थानों पर निवासरत हैं।
खैशगी आर्य मूल के होते हैं।
आर्य मूल के होने के सिद्धांत के अनुसार खैशगी लोग इसलाम से पहले ब्राह्मण थे। वह उपगणस्थान में जो वर्त्तमान में अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है सूर्य मंदिरों के पुजारी होते थे। हिन्दूकुश पर्वत माला पर उन्हें या तो मार डाला गया या फिर बलात धर्मांतरण कराया गया। वर्तमान में खैशगी पठानों को सुर्यभानी अथवा सरबानी पठान कहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे पहले सूर्य मंदिरों के पुजारी होते थे।
खैशगी शब्द की उत्पत्ति व अर्थ
खैशगी शब्द का पश्तो भाषा में कोई अर्थ नहीं होता किन्तू आर्य मूल के होने के सिद्धांत के अनुसार खैशगी कुशाक से बना है। भगवान श्री राम के पुत्र कुश के वंशज होने के कारण कुश बिगड़ कर खैश हुआ एवं खैश + गाई अर्खैशगी आर्य मूल के होते हैं। आर्य मूल के होने के सिद्धांत के अनुसार खैशगी लोग इसलाम से पहले ब्राह्मण थे। वह उपगणस्थान में जो वर्त्तमान में अफगानिस्तान के नाम से जाना जाता है सूर्य मंदिरों के पुजारी होते थे। हिन्दूकुश पर्वत माला पर उन्हें या तो मार डाला गया या फिर बलात धर्मांतरण कराया गया। वर्तमान में खैशगी पठानों को सुर्यभानी अथवा सरबानी पठान कहते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि वे पहले सूर्य मंदिरों के पुजारी होते थे। खैशगी शब्द की उत्पत्ति व अर्थ खैशगी शब्द का पश्तो भाषा में कोई अर्थ नहीं होता किन्तू आर्य मूल के होने के सिद्धांत के अनुसार खैशगी कुशाक से बना है। भगवान श्री राम के पुत्र कुश के वंशज होने के कारण कुश बिगड़ कर खैश हुआ एवं खैश + गाई अर्थात कुश के वंशज अर्थात खैशगी हुआ।