कुस्तन को खोतान राजवंश का संस्थापक माना जाता हैं।[1][2][3] इनके विषय में मौजूद जानकारी तिब्बती बौद्ध साहित्य से मिलती है ।

खोतान का राज्य

ये प्रियदर्शी सम्राट अशोक की सन्तान थे[4] किन्तु इन्होंने इसको राज्य से निष्कासित कर दिया था आजिवक आचार्य से भविष्य जानने के बाद की ये बड़ा होकर उनकी हत्या कर देगा ।[5]

वंशावली संपादित करें

तिब्बती जनश्रुति के अनुसार - राजा कुस्तन के बाद उसका पुत्र ये-उ-ल (येउल) खोतन का राजा बना। येउल के बाद उसका पुत्र विजितसम्भव खोतन का शासक बना। उसका उत्तराधिकारी विजितकीर्ति हुआ जो कि कुषाणवंशी सम्राट् कनिष्क का समकालीन था। विजितसम्भव के बाद जो राजा खोतन की राजगद्दी पर बैठे, उनके नाम तिब्बती जनश्रुति में विद्यमान हैं जो उपलब्ध नहीं हैं। इन सब राजाओं के नाम ‘विजित’ शब्द से प्रारम्भ होते हैं, इसीलिए इनके वंश को विजितवंश कहा जा सकता है।चीनी साहित्य द्वारा भी इस तथ्य की पुष्टि होती है कि खोतन के राजा विजितसम्भव के पश्चात् ग्यारहवीं पीढ़ी में विजितधर्म राजा हुआ था और वह बौद्धधर्म का कट्टर अनुयायी था। उसने काशगर राज्य पर आक्रमण करके अपने अधीन कर लिया था।

राजा विजितसंग्राम ने 632 ई० में एक दूतमण्डल मैत्री हेतु चीन के सम्राट् के पास भेजा और तीन वर्ष बाद अपने पुत्र को भी चीन के दरबार में भेज दिया। 648 ई० में खोतन का राजा जो विजितसंग्राम का उत्तराधिकारी था, स्वयं चीन के दरबार में उपस्थित हुआ था। इस काल में चीन में तांगवंश के राजाओं का शासन था, जो अत्यन्त शक्तिशाली तथा महत्त्वाकांक्षी थे।

पांचवीं सदी के प्रारम्भ में श्वेत हूणों और छठी सदी में तुर्कों ने खोतान को गुलाम बना लिया और बौद्ध स्तूप तोड़ डाले गए और लोगो को जबरन इस्लाम ग्रहण करवाया गया । वो मुस्लिम उइगर मुस्लिम कहलाए। सातवीं सदी के शुरु में खोतन के पुराने राजाओं में मौर्यों के वंशज विजितसंग्राम नामक राजा ने खोतन को तुर्कों की अधीनता से स्वतन्त्र कराया।

दंतकथा परिपेच्छ संपादित करें

चीन की स्वतंत्र दन्तकथायें भी तिब्बत की इस दन्तकथा को कि खोतान के प्राचीन राजवंश का संस्थापक अशोक का पुत्र ही था पुष्ट करती हैं। चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने प्राचीन खोतान के राजवंश के संस्थापक का लगभग वैसा ही विवरण दिया है जैसा कि हमें तिब्बतीय ऐतिहा-सिक संग्रहों से प्राप्त होता है । ह्वेन त्सांग के वृत्तान्त के अनुसार खोतान राज्य की स्थापना चीनियों तथा भारतीयो के सम्मिलित उद्योग से अशोक के शासन काल में हुई। ह्वेन त्सांग के जीवनचरित्र में हमें लिखा मिलता है कि " खोतान के राजा के वंश का संस्थापक महाराज अशोक का सब से बड़ा पुत्र था।"[6]

साहित्यिक परिपेच्छ संपादित करें

कुस्तन खरोष्ठी उत्कीर्ण लेखों में प्रयुक्त ' प्रियदर्शनस् प्रियदेवम्" के समान उपाधियों का रूप हमें अशोक के उत्कीर्ण लेखों के ' देवनम् प्रियम् प्रिय दर्शन' का स्मर्ण कराये बिना नहीं रहता । यह राजोचित उपाधियां हैं जिन्हें अशोक और उसके पिता तथा पितामह ने भी धारणा की थीं।[7]

 
कुशतान के विषय में जानकारी देता खोतानी भाषा में पांडुलिपि, खोतान के पूर्वोत्तर से प्राप्त किया गया ।अब ब्रिटिश लाइब्रेरी में रखा गया है।
 
खोतान का एक दस्तावेज़, जिसमें उस वर्ष पैदा हुए लोगों के लिए भविष्यवाणियों के चक्र में चीनी राशि चक्र के अनुसार सूचीबद्ध किया गया है


 
खोतान से प्राप्त खण्डित स्तूप का अवशेष

उत्पत्ति कथा संपादित करें

तिब्बती जनश्रुति के आधार पर रॉकहिल के प्रसिद्ध ग्रंथ “लाइफ ऑफ बुद्ध” में दी गई एतिहासिक कथा कुछ इस प्रकार है -

"बुद्ध भगवान् की मृत्यु के २३४ वर्ष बाद भारतवर्ष पर धर्माशोक का राज्य था । पहले यह राजा बहुत अत्याचारी और क्रूर था । इसने बहुत से आदमियों की हत्या की थी। परन्तु पीछे से अशोक धार्मिक बन गया। उसने 'अर्हत यश ' द्वारा बौद्ध धर्म की दीक्षा ली और भविष्य में कोई भी पाप न करने की प्रतिज्ञा की । उस समय खोतान आबाद न था । "देवानांप्रिय प्रियदर्शी अशोक के राज्याभिषेक के ३० वें साल में महारानी के एक पुत्र उत्पन्न हुआ । ज्योतिषियों ने बतलाया कि इस बालक में प्रभुता के अनेक चिह्न विद्यमान हैं। यह अशोक के जीवन काल मैं ही राजा बन जायेगा । सम्राट् अशोक यह सुनकर घबराया। उसने श्राज्ञा दी कि बालक का परित्याग कर दिया जाय । इसलिए उस बालक की मां उसे लेकर राज्य से चली गई। परित्याग कर देने पर भी भूमि-द्वारा बालक का पालन होता रहा। इसी लिए उसका नाम कु-स्तन पड़ गया।

"उस समय रीगा (चीन) में एक बोधिसत्व राज करता था । उसके ६६६ पुत्र थे । रीगा के शासक बोधिसत्व ने वैश्रवण से प्रार्थना की कि उसके एक और पुत्र हो जाय ताकि संख्या पूरी एक हज़ार हो जावे । वैश्रवण ने देखा कि कुस्तन का भविष्य बहुत उज्ज्वल है । वह उसे रीगा ले गया और बोधिसत्व के पुत्रों में सम्मिलित कर दिया । रीगा के राजा ने उसका पुत्रवत् पालन किया। परन्तु एक दिन जब कि उसका रीगाधिपति के पुत्रों के साथ झगड़ा हो रहा था उन्होंने उससे कहा- 'तू रीगा के सम्राट् का पुत्र नहीं है।' यह सुनकर कुस्तन को बहुत कष्ट हुआ ।इस पर राजा ने कहा- 'तू मेरा पुत्र है' यह मेरा अपना देश है, तुम्हें दुःखी नहीं होना चाहिए ।' यद्यपि बोधिसत्व राजा ने उसे कई बार कहा पर उसने एक न सुनी । कुस्तन ने यही चाहा कि उसका एक अपना राज्य हो । इसलिए उसने अपने साथ १० हज़ार आदमियों को एकत्रित किया और उनके साथ अपना पृथक राज्य ढूँढ़ने के लिए पश्चिम की तरफ चल पड़ा। इस तरह चलते चलते वह खोतान के 'मेस्कर' नामक स्थान में पहुँचा।

"उस समय भारत पर मौर्य सम्राट् धर्म-अशोक के मंत्री का नाम 'यश' था। इसका प्रभाव बहुत बढ़ रहा था। धीरे धीरे सम्राट् को यह खटकने लगा । अतः यश ने अपना पृथक् प्रदेश ढूँढ़ने का निश्चय किया। वह अपने 7 हज़ार आदमियों के साथ भारत को छोड़कर चला गया और पश्चिम तथा पूर्व में नये प्रदेश पहुंचा। यहां कुस्तन और यश मिलते है और यश अपने सम्राट अशोक के पुत्र के साथ उसको वहा पर सम्राट बनाने में मदत करता है और वे सब खोतान को आबाद करते है ।

संदर्भ संपादित करें

  1. Smith, Vincent A. (1999). The Early History of India. Atlantic Publishers. पृ॰ 193. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-8171566181.
  2. Cunningham, Alexander (1871). The Ancient Geography Of India.
  3. Sahni, Rai Bahadur Daya Ram (1935). Annual Report Pt.1 1929-30.
  4. Vidyaln’kaar Satyaketu (1949). Paat’aliiputra Kii Kathaa.
  5. Sarvahitkari (2021). Jivan Charit.
  6. Sarvahitkari (2020-01-04). Chandragupt Maurya.
  7. सत्यकेतु (1928). मौर्य साम्राज्य का इतिहास.