गंगा–पुत्र
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गंगा–पुत्र मैथिली भाषा के विख्यात साहित्यकार मनमोहन झा द्वारा रचित एक कहानी–संग्रह है जिसके लिये उन्हें सन् 2009 में मैथिली भाषा के लिए मरणोपरांत साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[1]
गंगा–पुत्र | |
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[[चित्र:|]] गंगा–पुत्र | |
लेखक | मनमोहन झा |
देश | भारत |
भाषा | मैथिली भाषा |
गंगा पुत्र किसे कहा कहा जाता है? {Ganga Putra Kise Kaha Jata Hai}
संपादित करेंGanga Putra Kise Kaha Jata Ha Archived 2023-06-07 at the वेबैक मशीनi : "भीष्म जिसे भीष्म पितामह भी कहा जाता है, गंगा के पुत्र माना जाता हैं।" भीष्म के पिता का नाम राजा शान्तनु था। भीष्म का जन्म हस्तिनापुर में हुआ था। इनका मूल नाम देवव्रत था, इनके पिता इनकी पितृभक्त से काफी प्रसन्न थे जिस कारण उन्होंने भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान दिया था। इन्हें भीष्म प्रतिज्ञा के लिए भी जाना जाता है और इसी प्रतिज्ञा के कारण यह कभी राजा नहीं बनें थे हमेशा संरक्षक बन कर ही रहे थे। न ही इन्होने विवाह किया था और आजीवन ब्रह्मचारी ही रहें थे। महाभारत में भीष्म ने कौरवो का साथ दिया था और अधर्म का साथ देने के कारण ही वे मृत्यु को प्राप्त हुए थे।
भीष्म पितामह को गंगा पुत्र कहे जाने के कारण
संपादित करेंमहाभारत के युद्ध के समय भीष्म पितामह कौरवों की तरफ से सेनापति की भूमिका निभा रहें थे। भीष्म ने 10 दिन तक युद्ध किया था तथा दसवें दिन इच्छामृत्यु प्राप्त भीष्म पांडवों के विनय पर अपनी मृत्यु का रहस्य बताते हैं और भीष्म के सामने शिखंडी को उतारा जाता है। प्रतिज्ञा अनुसार भीष्म किसी स्त्री, वेश्या या नपुंसक व्यक्ति पर शस्त्र नहीं उठा सकते थे और शिखंडी नपुंसक जिस कारण भीष्म युद्ध हारे थे।
महाभारत के युद्ध के दौरान, भीष्म पितामह ने महारथी योद्धाओं के रूप में अपनी ब्रह्मा तेज और युद्ध कौशल का प्रदर्शन किया। उन्होंने पांडवों को बाहुबल, साहस और संघर्ष की अद्वितीय सीख दी। युद्ध के दशम दिन, भीष्म पितामह ने अपनी विजय के बाद महाभारत के महत्वपूर्ण तत्वों को बताते हुए अपने पुत्र धृष्टद्युम्न के हाथों में अपनी मृत्यु को गले लगाने का संकल्प लिया।
भीष्म पितामह अपने जीवन के दौरान महान आचार्य और आदर्श बने रहे हैं। उनके ज्ञान, नीति, और दानशीलता की महानता का परिचय महाभारत में दिया गया है। भीष्म पितामह की मृत्यु के बाद, पांडवों ने उन्हें गर्व से युक्त पितामह के रूप में यदि किया और उनके त्याग, तपस्या और निष्ठा की प्रशंसा की।
भीष्म पितामह गंगा नदी के पुत्र के रूप में अपनी विशेषता के कारण महत्वपूर्ण हैं और उन्हें गंगा पुत्र के रूप में जाना जाता है। उनकी कथाएं और महानता हमारे संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी प्रेरणा सदैव हमें मार्गदर्शन करती रहेगी।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. मूल से 15 सितंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.
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