गंधमादन पर्वत
गंधमादन पर्वत जो की कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है, वहां आज भी ‘हनुमान जी’ निवास करते हैं। इस पर्वत का नाम संभवतः गंधमदन के नाम से प्रभावित है।
मान्यताओं अनुसार कैलाश पर्वत से उत्तर दिशा की ओर एक जगह है, जहां हनुमान जी आज भी निवास करते हैं। जी के इस निवास स्थल का वर्णन कई ग्रंथों और पुराणों में भी मिलता है। हनुमान जी को मां सीता से अमरता का वरदान प्राप्त हुआ था। जब वे श्रीराम का संदेश लेकर माता सीता के पास पहुंचे थे, तब मां सीता ने उन्हें अमर होने का यह वर दिया था।
पुराणों के अनुसार, कलियुग में हनुमान जी गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं। एक कथा के अनुसार,अपने अज्ञातवास के समय हिमवंत पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंचें, तब उन्होंने हनुमान जी को वहां आराम करते देखा तो भीम ने उनसे अपनी पूंछ को मार्ग से हटाने के लिए कहा तो हनुमान जी ने कहा कि तुम स्वयं ही हटा लो लेकिन भीम अपनी पूरी ताकत लगाकर भी उनकी पूंछ हटा नहीं पाया था।
शास्त्रों में बताया गया है कि गंधमादन पर्वत कैलाश पर्वत के उत्तर में स्थित है, जहां महर्षि कश्यप ने तपस्या की थी। इस पर्वत पर गंधर्व, किन्नरों, अप्सराओं और सिद्घ ऋषियों का निवास है। इसके शिखर पर किसी वाहन से पहुंचना असंभव माना जाता है।
गंधमादन पर्वत हिमालय के कैलाश पर्वत से उत्तर दिशा की ओर है। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। इसी नाम से एक और पर्वत रामेश्वरम के पास भी स्थित है, जहां से हनुमान जी ने लंका पहुंचने के लिए समुद्र पार करने के लिए छलांग लगाई थी।
गंधमादन पर्वत पर एक मंदिर भी बना हुआ है, जिसमें हनुमान जी के साथ ही श्रीराम आदि की मूर्तियां भी विराजित हैं। कहते हैं इस पर्वत पर भगवान श्रीराम अपनी वानर सेना के साथ बैठ कर युद्ध के लिए योजना बनाया करते थे। लोक मान्यताओं अनुसार इस पर्वत पर भगवान राम के पैरों के निशान भी हैं
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