गंडरादित्य ((956-57 ई.)

गंधरादित्य

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परांतक प्रथम की मृत्यु (लगभग 956 ई.) से लेकर राजराज चोल प्रथम के राज्यारोहण (985 ई.) तक का चोल इतिहास अस्पष्ट और अस्त-व्यस्त है। इस अवधि में चोलों के वंशानुक्रम, तिथि एवं घटनाक्रम का स्पष्ट जान नहीं है।

इतिहासकारों के अनुसार पटांतक प्रथम की मृत्यु के बाद उसके दूसरे पुत्र गंडटादित्य ने 956 ई. के आसपास शासन ग्रहण किया। इसने संभवतः बहुत कम समय (957 ई.) तक शासन किया और इसकी किसी विशेष उपलब्धि की सूचना नहीं मिलती है। तोंडैमंडलम् प्रदेश पर टाष्ट्रकूटों का अधिकार बना रहा और इसे बार-बार कृष्ण तृतीय के आक्रमणों का सामना करना पड़ रहा था।

गंडरादित्य के शासनकाल के दूसरे वर्ष के एक लेख में इसके एक सामंत ने दावा किया है कि उसने वीरचोलपुरम् में अपने शत्रुओं को पराजित किया था। लेख में शत्रु का नाम नहीं है, किंतु अनुमान है कि यह सरदार नरसिंहवर्मा था, जिसने अपने शासन के सत्रहवें वर्ष में (955 ई.) कृष्ण तृतीय की अधीनता स्वीकार कर ली थी।

गंडरादित्य की महारानी शेबियन एक धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी, जिससे उत्तमचोल पैदा हुआ था। गंडरादित्य की आकस्मिक मृत्यु के बाद भी यह 1001 ई. तक जीवित रही। इसने कई पाषाण मंदिरों का निर्माण करवाया तथा उसके निमित्त दान दिया। गंडरादित्य साहित्य प्रेमी था और कहा जाता है कि चिदंबरम् मंदिर के श्लोक की रचना इसने स्वयं की थी। गंडरादित्य का शासन 957 ई. के लगभग समाप्त हुआ।

अरिंजय (957 ई.)

गंडरादित्य के अल्पकालीन शासन के बाद उसका भाई अरिंजय (957 ई.) चोल राजसिंहासन पर बैठा। कुछ इतिहासकारों के अनुसार 'अटिकुलकेशरि इसकी उपाधि थी, किंतु इस संबंध में निश्चितता के साथ कुछ कहना संभव नहीं है।

• अजय का शासनकाल भी अत्यल्प रहा। इसकी दो टानियाँ वोमन कुंददैयार और कोदईपिदात्तियार इसकी मृत्यु के बाद भी जीवित थीं।

संभवतः अटिंजय ने राष्ट्रकूट कृष्ण तृतीय से चोलों के प्रदेशों को छीनने का प्रयास किया था, किंतु सफलता नहीं मिली और इसी प्रयास में उसकी मृत्यु हो गई। लेखों के अनुसार अरिजय की मृत्यु मेलपाणि के आसपास (संभवतः आर्कट में हुई थी क्योंकि राजराज के एक अभिलेख में कहा गया है कि उसने वहाँ मरने वाले राजा की स्मृति में एक मंदिर का निर्माण करवाया था। इससे लगता है कि आर्डर मेलपाडि के आसपास ही रहा होगा।

परांतक चोल द्वितीय या सुंदरचोल (957-973 ई.)

अरिंजय की मृत्यु ( 957 ई.) के बाद अन्चिल ताम्रपत्र में उल्लिखित इसकी टानी वैदुम्ब राजकुमारी कल्याणी से उत्पन्न पुत्र सुंदर चोल पटांतक द्वितीय के नाम से चोल सिंहासन का उत्तराधिकारी हुआ, जिसे 'मदुरैकोंड राजकेशरि' की उपाधि दी गई है। पटांतक द्वितीय ने पांड्य शासक को पराजित किया था। इसकी मृत्यु काँचीपुरम् में हुई थी और मृत्यु के बाद इसे राजराज प्रथम-rajarajil 1985 1015-00/ है दी गई थी। इसकी एक रानी वानवन महादेवी इसकी मृत्य के बाद सती हो गई थी।