गढ़वाल भी समस्त भारत की तरह संगीत से अछूता नहीं है। यहां की अपनी संगीत परंपराएं हैं, व अपने लोकगीत हैं। इनमें से खास हैं:

  • छोपाटी
  • चौन फूला एवं झुमेला
  • बसंती
  • मंगल
  • पूजा लोकगीत
  • जग्गार
  • बाजुबंद
  • खुदेद
  • छुरा
गढ़वाल का लोक संगीत

छोपाटी संपादित करें

ये लोक संगीत टिहरी गढ़वाल के रावेन- जौनपुर क्षेत्र में लोकप्रिय है। छोपाटी वे प्रेम गीत हैं, जिन्हे प्रश्न एवं उत्तर के सरुप में पुरुष एवं महिलाओं द्वारा गाया जाता है।

चौन फूला एवं झुमेलाः संपादित करें

चौनफूला एवं झुमेला मौसमी रूप है जिन्हे बसंन्त पंचमी से संक्रान्ती या बैसाखी के मध्य निष्पादित किया जाता है। झुमेला को सामान्यतः महिलाओं द्वारा निष्पादित किया जाता है। परन्तु कभी-2 यह मिश्रित रूप में भी निष्पादित किया जाता है। चौनफूला नृत्य को स्त्री एवं पुरुषों द्वारा रात्रि में समाज के सभी वर्गों द्वारा समूहों में किया जाता है। चौनफूला लोक गीतों का सृजन विभिन्न अवसरों पर प्रकृति के गुणगान के लिए किया जाता है। चौनफूला, झुमेला एवं दारयोला लोकगीतों का नामकरण समान नाम वाले लोकनृत्यों के नाम पर हुआ है।


बसन्तीः संपादित करें

बसन्त ऋतु के आगमन के अवसर पर जब गढ़वाल पर्वतों की घाटियों में नवीन पुष्प खिलते हैं बसन्ती लोकनृत्यों को गाया जाता है। इन लोकनृत्यों का गायन अकेले या समूहों में किया जाता है।


मंगलः संपादित करें

मंगल गीतों को विवाह समारोहों के अवसर पर गाया जाता है। ये गीत अवसर पर गाया जाता है। ये गीत मूलतः पूजा गीत (Hymns) हैं। विवाह समारोह के अवसर पर शास्त्रों के अनुसार पुरोहित के साथ-2 इन गीतों को संस्कृत के श्लोकों में गाया जाता है।

पूजा लोक गीतः संपादित करें

ये लोकगीत परिवारिक देवताओं की पूजा से सम्बद्ध है। इस क्षेत्र में तंत्र-मंत्र से सम्बद्ध अन्य पूजा लोकगीत भी गाये जाते हैं जिनका उद्देश्य अपदूतों से मानव समुदाय की रक्षा करना है।


जागर: संपादित करें

जागर का सम्बन्ध भूत एवं प्रेतात्माओं की पूजा में है तथा कभी-2 ये लोकगीत लोक नृत्यों के साथ मिश्रित रूप में गाये जाते हैं। कभी-2 जागर विभिन्न देवी देवताओं के सम्मान में पूजा लोक गीतों के स्वरुप में भी गाये जाते हैं। जागरी द्वारा यह नृत्य ढोल, काँसे की थाली व हूङ्का (गढ़वाली वाद्य यंत्र) के माध्यम द्वारा कराया जाता है

बाजू बन्दः संपादित करें

ये लोकगीत चरवाहों के मध्य प्रेम एवं बलिदान के प्रतीक हैं। ये गीत पुरुष एवं स्त्री या बालक एवं बालिका के मध्य प्रेम को प्रदर्शित करने के रूप में गाये जाते हैं।

खुदेदः संपादित करें

ये लोकगीत अपने पति से प्रथक हुई महिला की पीडा को वर्णित करते हैं। पीडित महिला अपशब्दों के साथ उन परिस्थितयों को वर्णित करती है जिसके कारण वह अपने पति से प्रथक हुई है सामान्यतः प्रथक्करण का मुख्य कारण पति का रोजगार की खोज में घर से दूर जाना है। लमन नामक अन्य लोक नृत्य विशिष्ट अवसरों पर गाया जाता है जो पुरुष द्वारा अपनी प्रेमिका के लिए बलिदान की इच्छा को व्यक्त करता है। लोकगीतों के इस वर्ग में पवादा एक अन्य लोक गीत है जो दुःख के इस अवसर पर गाया जाता है जब पति युद्ध के मैदान में चला गया होता है।


छुराः संपादित करें

छुरा लोक गीतों को चरवाहों द्वारा गाया जाता है। इन लोकगीतों में वृद्ध व्यक्ति भेडों एवं बकरियों को चराने के अपने अनुभव का ज्ञान अपने बच्चों को देते हैं।