गणितकौमुदी नारायण पण्डित द्वारा सन् १३५६ में संस्कृत में रचित एक गणितग्रन्थ है। इसमें गणितीय संक्रियाओं (मैथेमैटिकल ऑपरेशन्स) का वर्णन है। इस ग्रंथ में सांयोजिकी के बहुत से परिणामों का आकलन (anticipation) किया गया था जो बाद में निकाले गये।

गणितकौमुदी में N x2 + K2 = y2 के पूर्णांक हल निकालने के लिए सतत भिन्न के कुछ परिणामों का सहारा लिया गया है।

ह्रस्वज्येष्ठक्षेपाः क्रमशस्तेषामधो न्यसेत्ते तु ।
अन्यान्यवैषां न्यासस्तस्य भवेद् भावना नाम ॥७३॥
वज्राभ्यासौ ह्रस्वज्येष्ठ(क)योः संयुतिर्भवेद्ध्रस्वम् ।
लघुघातः प्रकृतिहतो ज्येष्ठवधेनान्वितो ज्येष्ठम् ॥७४॥
क्षिप्त्योर्घातः क्षेपः स्याद् वज्राभ्यासयोर्विशेषो वा ।
ह्रस्वं लघ्वोर्घातः प्रकृतिघ्नो ज्येष्ठयोश्च वधः ॥७५॥
तद्विवरं ज्येष्ठपदं क्षेपक्षिप्त्योः प्रजायते घातः ।
ईप्सितवर्गविहृतः क्षेपः क्षेपे पदे तदीष्टाप्ते ॥७६॥[1]

वर्ण्य-विषय संपादित करें

गणितकौमुदी में लगभग 475 सूत्र (नियम) श्ल्क हैं और 395 उदाहरण हैं। इस ग्रन्थ में 14 व्यवहार (अध्याय) हैं।

  1. प्रकीर्णक-व्यवहार
  2. मिश्रक-व्यवहार
  3. श्रेढी-व्यवहार
  4. क्षेत्र-व्यवहार
  5. खात-व्यवहार
  6. चिति-व्यवहार
  7. राशि-व्यवहार
  8. छाया-व्यवहार
  9. कुट्टक
  10. वर्गप्रकृति
  11. भागादान
  12. रूपाद्यंशावतार
  13. अङ्कपाश
  14. भद्रगणित

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें

  1. सरस्वती सुषमा पत्रिका (वर्ष ९, भाग ३, १९५४ , पृष्ट ६२ ; सम्पूर्णानद विश्वविद्यालय, वाराणसी