गाडरवारा भारत के मध्य प्रदेश राज्य के नरसिंहपुर जिले की तहसील हैं। गाडरवारा शहर में नगर पालिका हैं जिसकी स्थापना वर्ष 1867 में की गई थी। यह क्षेत्र अपनी तुअर दाल के लिए प्रसिद्ध हैं। यह शहर आचार्य रजनीश ओशो के आश्रम के लिए विश्व प्रसिद्ध है।

गाडरवारा
Gadarwara
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डमरूघाटी शिव मंदिर, गाडरवारा
डमरूघाटी शिव मंदिर, गाडरवारा
गाडरवारा is located in मध्य प्रदेश
गाडरवारा
गाडरवारा
मध्य प्रदेश में स्थिति
निर्देशांक: 22°55′N 78°47′E / 22.92°N 78.78°E / 22.92; 78.78निर्देशांक: 22°55′N 78°47′E / 22.92°N 78.78°E / 22.92; 78.78
देश भारत
प्रान्तमध्य प्रदेश
ज़िलानरसिंहपुर ज़िला
जनसंख्या (2019)
 • कुल1,25,068
भाषाएँ
 • प्रचलितहिन्दी
समय मण्डलभारतीय मानक समय (यूटीसी+5:30)

भूगोल संपादित करें

गाडरवारा की स्थिति 22.92°N 78.78°E है। यहां की समुद्र तल से औसत ऊंचाई 354.77  मीटर (1163  फीट)है। गाडरवारा शहर कर्क रेखा से 58 किमी दक्षिण में स्थित हैं। शहर के कुछ दूरी पर दक्षिणी ओर पर सतपुड़ा पर्वतमाला गुजरती हैं, शहर शक्कर नदी के तट पर बसा हुआ हैं। तट की लम्बाई 4.5 किमी हैं। उत्तर में शहर लगभग 14 किमी दूरी पर नर्मदा नदी तथा पश्चिम में लगभग 9 किमी दूरी पर उमर नदी गुजरती हैं।

प्रमुख उद्योग संपादित करें

एनटीपीसी पावर प्लांट:

गाडरवारा क्षेत्र में एनटीपीसी पावर प्लांट उपस्थित है जिसकी क्षमता 2*800 मेगावॉट है


चीनी मिल:

गाडरवारा क्षेत्र में कुछ चीनी मिलें हैं


बीड़ी उद्योग:

यह काम मुख्य रूप से गाडरवारा, में किया जाता हैं।


दाल मिल्स:

तुवार (अरहर) दाल मुख्य रूप से गाडरवारा में तैयार कि जाती हैं

दर्शनीय स्थल संपादित करें

चौरागढ़ (चौगान) किला संपादित करें

मुख्य लेख : चौरागढ़ किला

गोंड शासक संग्राम शाह ने इस किले को 15वीं शताब्दी में बनवाया था। यह किला गाडरवारा रेलवे स्टेशन से लगभग 19 किमी. दूर है। वर्तमान में प्रशासन की उपेक्षा के कारण किला क्षतिग्रस्त अवस्था में पहुंच गया है। किले के निकट ही नोनिया में 6 विशाल प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। चौरागढ़ का किला, मध्य प्रदेश के गाडरवारा शहर के निकट स्थित है। गौड़ शासक संग्राम शाह ने इस किले को 15वीं शताब्दी में बनवाया था। यह किला गाडरवारा रेलवे स्टेशन से लगभग 19 किलोमीटर दूर है। वर्तमान में प्रशासन की उपेक्षा के कारण किला क्षतिग्रस्त अवस्था में पहुंच गया है। किले के निकट ही नोनिया में 6 विशाल प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। कभी राजगौड़ वंश की समृद्धि,शक्ति और वैभव का प्रतीक रहा चौगान या चौरागढ़ का किला अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।

जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर सघन वनों के बीच ऊंचे पहाड़ पर बना यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन एक संरक्षित किला है पर न तो इसका संरक्षण किया जा रहा है और न ही फिलहाल विभाग की ओर से कोई कार्ययोजना प्रकाश मेें आई है। करीब ५ किमी के क्षेत्र में विस्तृत चौगान के किला के अधिकांश हिस्से समय की मार से मिट्टी में मिल गए हैं और कुछ ही हिस्से खंडहरों के रूप में इसकी ऐतिहासिकता की कहानी सुनाते प्रतीत होते हैं। राज दरबार सहित रनिवास और अन्य राजप्रासाद ध्वंसावशेषों के रूप में नजर आते हैं।

५४ गढ़ों का कोषालय था यह किला इतिहास के मुताबिक इस राजवंश के उदय का श्रेय यादव राव यदुराव को दिया जाता है । जिन्होंने चौदहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में गढ़ा कटंगा में राजगौड़ वंश की नींव डाली । इसी राजवंश के प्रसिद्ध शासक संग्राम शाह 1400-1541 ने 52 गढ़ स्थापित कर अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया था। नरसिंहपुर जिले में चौरागढ़ या चौगान किला का निर्माण भी उन्होंने ही कराया था जो रानी दुर्गावती के पुत्र वीरनारायण की वीरता का मूक साक्षी है । कहा जाता है कि यह किला राजगौड़ों के 52 गढ़ों का कोषालय था। जिसकी वजह से दुश्मन राजाओं की नजर इस पर रहती थी।

धोखे से किया था राजकुमार का वध संग्राम शाह के उत्तराधिकारियों में दलपति शाह ने सात वर्ष शांति पूर्वक शासन किया । उसके पश्चात उसकी वीरांगना रानी दुर्गावती ने राज्य संभाला और अदम्य साहस एवं वीरता पूर्वक 16 वर्ष तक 1540 से 1564 तक शासन किया । सन् 1564 में अकबर के सिपहसलार आतफ खां से युद्ध करते हुये रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। चौरागढ़ एक सुदृढ़ पहाड़ी किले के रूप में था जहां पहुंच कर आतफ खां ने राजकुमार वीरनारायण को घेर लिया और अंतत: कुटिल चालों से उनका वध कर दिया । गढ़ा कटंगा राज्य पर 1564 में मुगलों का अधिकार हो गया। गौंड़, मुगल, और इनके पश्चात यह क्षेत्र मराठों के शासन काल में प्रशासनिक और सैनिक अधिकारियों तथा अनुवांशिक सरदारों में बंटा रहा । जिनके प्रभाव और शक्ति के अनुसार इलाकों की सीमायें समय समय पर बदलती रहीं। जिले के चांवरपाठा, बारहा, साईंखेड़ा,शाहपुर,सिंहपुर,श्रीनगर और तेन्दूखेड़ा इस समूचे काल में परगनों के मुख्यालय के रूप में प्रसिद्ध रहे ।

डमरु घाटी संपादित करें

डमरू घाटी गाडरवारा का एक पवित्र स्थल है। गाडरवारा रेलवे स्टेशन से यह घाटी ५. किमी. की दूरी पर है। घाटी की मुख्य विशेषता यहां के दो शिवलिंग है। यहां बड़े शिवलिंग के भीतर एक छोटा शिवलिंग बना हुआ है। हर बर्ष महाशिवरात्रि पर 7 दिन यहाँ मेला लगता है शंकर नदी के तट पर डमरू के आकार की एक घाटी में एक भव्य शिव मंदिर बनाया गया था।इस मंदिर में शिवलिंग स्थापित किया गया है और पवनपुत्र हनुमान जी की महान प्रतिमा के बगल में प्रतिष्ठित किया गया है। उक्त मंदिर में 15 फीट की नींव दी गई है।शिव की प्रतिमा के 10 फीट नीचे, 7 फीट ऊंची शिव की नंदी 7550 फीट के अर्ध-चक्र में बनी है।

छोटा जबलपुर संपादित करें

यह सतपुड़ा पर्वत श्रृंखला में स्थित है।  यह नगर गाडरवारा से 22 किलोमीटर दूर  स्थित है।

आवागमन संपादित करें

वायु मार्ग संपादित करें

जबलपुर विमानक्षेत्र यहां का नजदीकी एयरपोर्ट जो गाडरवारा से करीब 140 किमी. दूर है। देश के प्रमुख शहर इस एयरपोर्ट से वायुमार्ग द्वारा जुड़े हैं।

रेल मार्ग संपादित करें

गाडरवारा रेलवे स्टेशन शहर का मुख्य स्टेशन हैं जहाँ सुपर फास्ट ट्रेनों के स्टॉपेज है,गाडरवारा रेलवे स्टेशन मुंबई-हावडा रूट का प्रमुख स्टेशन है। इस रूट पर चलने वाली ट्रेनें गाडरवारा को देश के अन्य शहरों से जोड़ती हैं।

सड़क मार्ग संपादित करें

मध्य प्रदेश के राज्य राजमार्ग क्रमांक 22 गाडरवारा से गुजरती है। जोकि गाडरवारा को अन्य शहरों से जोड़ती है।

प्रशासन संपादित करें

गाडरवारा तहसील मुख्यालय है। यह साईखेड़ा जनपद पंचायत के अंतर्गत आता है। नगर प्रशासन शहर में 1867 से स्थापित है। यहाँ सिविल कोर्ट है।

प्रसिद्ध व्यक्ति संपादित करें

इन्द्र बहादुर खरे

ओशो

श्याम सुंदर रावत कवि

आशुतोष राणा

संगीतकार शंकर सिंह रघुवंशी (शंकर जयकिशन जोड़ी से)

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें