गुण जैन दर्शन का एक पारिभाषिक शब्द है|

गुण की परिभाषा अनेक प्रकार से की जा सकती है| सब से सरल परिभाषा इस प्रकार है: जो द्रव्य के सभी भागों मे और उस की सभी अवस्थाओमे उसके साथ रहता है, उसे गुण कहते है| यह परिभाषा यह सूचित नही करती की गुण एक अलग वस्तु है और द्रव्य एक अलग वस्तु है| दोनों मे सर्वथाअभाव नही है| केवल निरूपण करने की अपेक्षा से एक-दूसरे से जुदापन है| इस प्रकार के अभाव को अतद्भाव भी कहते है|

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