गुपी गाइन बाघा बाइन (1968 फ़िल्म)
गुपी गाइन बाघा बाइन 1968 में बनी बांग्ला भाषा की फिल्म है। यह सत्यजित राय की एक प्रसिद्ध बांग्ला फिल्म है। इसका हिन्दी सम्स्करण भी बना है जिसका नाम है- हिंदी में बनी सत्यजित राय की फिल्म का नाम है " गोपी गवैया बाघा बवैया "।
गुपी गाइन बाघा बाइन | |
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चित्र:गुपी गाइन बाघा बाइन.jpg गुपी गाइन बाघा बाइन का पोस्टर | |
निर्देशक | सत्यजित राय |
लेखक | सत्यजित राय |
अभिनेता | संतोष दत्ता |
प्रदर्शन तिथि |
1968 |
देश | भारत |
भाषा | बांग्ला |
संक्षेप
संपादित करेंगुपी और बाघा दो मित्र हैं। गुपी एक बेसुरा गायक है और बाघा एक बेसुरा वादक है। दोनों ने गाँव भर को परेशान कर रखा है। गाँववालों से विवाद के चलते दोनों परेशान होकर जंगल चले जाते हैं और वहीं पर अपना बेसुरा अभ्यास शुरु कर देते हैं। लेकिन दोनों इस बात से बेखबर हैं कि जहाँ वे अभ्यास कर रहे हैं, वहाँ पर भूतों का डेरा है। और तो और, भूतों का राजा इनका बेसुरा गायन सुनकर अति प्रसन्न होता है और इन्हें कई शक्तियाँ और वरदान देता है। इस प्रकार यह हास्य कथा आगे बढ़ती है।
चरित्र
संपादित करें- गुपी – तपेन चट्टोपाध्याय
- बाघा – रवि घोष
- शुन्डी/हाल्ला का राजा – सन्तोष दत्त
- जादुकर बरफि – हरीन्द्रनाथ चट्टोपाध्याय
- हाल्ला का प्रधानमन्त्री – जहर राय
- हाल्ला का सेनापति – शान्ति चट्टोपाध्याय
- हाल्ला का गुप्तचर – चिन्मय राय
- आमलकी क राजा – दुर्गादास बन्द्योपाध्याय
- गुपी के पिता – गोविन्द चक्रवर्ती
- भूत का राजा – प्रसाद मुखोपाध्याय
मुख्य कलाकार
संपादित करेंदल
संपादित करेंसंगीत
संपादित करेंरोचक तथ्य
संपादित करेंपरिणाम
संपादित करेंबौक्स ऑफिस
संपादित करेंसमीक्षाएँ
संपादित करेंपुरस्कार
संपादित करें- श्रेष्ठ परिचालना पुरस्कार, नयीदिल्ली, १९६८
- राष्ट्रपति स्वर्ण और रौप्य पदक, नयी दिल्ली, १९७०
- सिल्वर क्रास, एडिलेड, १९६९
- श्रेष्ठ परिचालक, आकलैण्ड, १९६९
- मेधा पुरस्कार, टोकियो, १९७०
- श्रेष्ठ छबि, मेलबोर्न, १९७०