गुरु आगरदास
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गुरू बाबाघासीदास जी व माता सफुरा के तृतिय पुत्र गुरू आगरदास जी का जन्म 1803 को अगहन मास शुक्ल पक्ष द्वादशी तिथि प्रातःकाल मंगलवार को हुआ। सत्यवंश में जन्मे गुरू आगरदास जी बचपन से ही सत की महिमा व उनके गुणो का संस्कार को अपने जीवन में आत्मसाथ किया,तथा अपने पिता व भाईयो की तरह वे भी सतनाम के प्रचार कर मानव कल्याणकारी कार्य किया करते थे । गुरू आगरदास जी की पत्नी का नाम मुटकीमाता (विवाह सन् 1832) निवासी रतनपुर थी। जिनकी गोद से पुत्र गुरू अगरमनदास जी अवतरित हुए।
राजागुरू का पदभार -
घासीदास जी द्वारा संत समाज के आग्रहनुसार अपने तृतीय पुत्र गुरू आगरदास जी को सत्य के विधान अनुसार 28 अप्रैल 1860 को गुरूगद्दी का (राजागुरू) पदभार सौपा गया।
सतनाम शक्ति दरबार का निर्माण -
गुरू आगरदास जी, बलिदानी राजागुरू बालकदास जी के पुत्र गुरू साहेबदास जी के साथ मिलकर अपने पिता व भाईयो के द्वारा स्थापित अधुरे सतनाम शक्ति दरबार केन्द्रो क्रमशः बोड़सरा के गद्दी,भण्डार के गद्दी, तेलासीपुरी गद्दी व महलो के निर्माण कार्यो को 1862 में पुनः प्रारंभ किया। तथा सतनाम के प्रतिक चिन्ह पवित्र जैतखाम के प्रतिरूप में सभी सतनामधर्म के आस्था रखनें वालों को अपनें अपनें घरो के आंगन में दुरपत्ता 18 दिसंबर 1862 भण्डारपुी में स्थापित कर गुरू पर्वो पर सफेद पालो चढ़ाने का फरमान जारी किया गया, उसके बाद से ही सतनाम धर्मावलंबियो के द्वारा हर घरो में दुरपत्ता स्थापित कर हिंसा व नशापान का त्याग कर किया गया।
मानवता का अधिकार -
सर्वप्रथम गुरू आगरदास जी नें संत शिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी के सतविचार “मनखे मनखे एक समान“ संदेश को मानव अधिकार से तात्पर्य किसी भी जाति, धर्म, लिंग व भाषा के भेदभाव को नकारते हुए सभी लोगों के समुचित शिक्षा, रहन-सहन, जीवन-यापन, मान-सम्मान, समुचित उत्थान, विकास तथा सुरक्षा व्यवस्था के लिए जगह जगह धर्मसभाओं के माध्यम से जागरूकता का अभियान संतजनों को साथ लेकर चलाया गया। राऊटी के समय गुरू आगरदासजी को देखने व सुनने लोगो का हुजुम गुरूदर्शन मेंला स्थल में परिर्वतित हो जाती थी। गुरू आगरदास जी अपनें उपदेशो में मानव जीवन का सार सतनाम है, अतः प्रत्येक कार्य को सतनाम के नियमांनुसार करनें संत समाज को शिक्षा देते थे।
पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वाहन -
संत शिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी के एकांतवास 1861 के दौरान राजागुरू आगरदास जी ने अपनी छोटी बहन आगरमती के विवाह के कुछ समय बाद ही अपनें भतिजे गुरू साहेबदास जी पिता बलिदानी राजागुरू बालकदास जी का विवाह समस्त गुरू परिवार के सहमति से गुरू साहेबदास व करणी (कर्रीमाता) के साथ सतनामधर्म के रीति-रिवाज के अनुसार समपन्न करवाया। गुरू साहेबदास को संत व महंतों के साथ मिलकर गुरू गद्दी बोड़सराधाम की संचालन व्यवस्था कार्य सौपा।
गिरौदपुरीधाम में कलश व पालोचढ़ावा (1862) -
संतशिरोमणी गुरू बाबा घासीदास जी के तपोभूमि गिरौदपुरीधाम में निर्मित जैतखाम, मंदिर पर सर्वप्रथम गुरू आगरदास जी गुरू परिवार की माताए मुटकीमाता, राधामाता, नीरामाता, प्रतापुरहीनमाता व गुरू साहेबदास जी, राजमहंत, दीवान, भण्डारी, छड़ीदार सहित सतनामर्ध के संत समाज का विशाल जनसमूह की मौजूदगी में भण्डारपुरी से तैयार करवाकर साथ लाये गुरू सतनाम प्रसादी, सोना व पीतल (पंचरत्न) के कलश, सफेद पालो को सतनाम के विधि-विधान से आरती कर (सन् 1862) माघ पूर्णिमा को राजागुरू आगरदास जी जैतखाम में पालो चढाया व गुरू साहेबदास जी मंदिर में कलश चढ़ाया गया।