गेस्टाल्ट मनोविज्ञान

गेस्टाल्ट मनोविज्ञान (Gestalt psychology) की स्थापना जर्मनी में मैक्स बरदाईमर (Max Wertheimer) द्वारा 1912 ई0 में की गयी। गेस्टाल्ट ( Gestalt ) का अर्थ है – "समग्र रूप"। गेस्टाल्टवादियों का मानना है कि व्यक्ति किसी वस्तु या अवधारणा को आंशिक रूप से नहीं बल्कि पूर्ण रूप से सीखता है। अतः इसे सम्पूर्णवाद भी कहा जाता है। इस सिद्धान्त में प्रत्यक्षीकरण (Perception ) पर अधिक बल दिया जाता है। यह सिद्धान्त मानता है कि व्यक्ति किसी वस्तु का पूर्ण रूप में प्रत्यक्षीकरण कर पाता है, न कि भागों में। गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने प्रयास और त्रुटि (ट्रायल ऐंड एरर) तथा "प्रयास करो और सफल हो" (strive and succeed) जैसे सिद्धान्तों का खण्डन किया है। इस सिद्धांत के मूल में अन्तःदृष्टि या सूझबूझ विद्यमान रहती है। अंतःदृष्टि का अर्थ है – किसी समस्या को गहराई से देखना व समझना। इसलिए इस सिद्धान्त को "अन्तर्दृष्टि सिद्धान्त" भी कहते हैं।

गेस्ताल्त के सिद्धान्त द्वारा रचना, ग्राफिक डिजाइन (गेस्ताल्त शैक्षिक कार्यक्रम, २०११)

इस सम्प्रदाय (स्कूल) के विकास में दो अन्य मनोवैज्ञानिकों, कर्ट कौफ्का (1887-1941) तथा ओल्फगैंग कोहलर (1887-1967) ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। इस स्कूल की स्थापना वुण्ट व टिचनर की आणुविक विचारधारा के विरोध में हुआ था। इस सम्प्रदाय का मुख्य बल व्यवहार में सम्पूर्णता के अध्ययन पर है। इस स्कूल में 'अंश' की अपेक्षा 'सम्पूर्ण' पर बल देते हुये बताया कि यद्यपि सभी अंश मिलकर सम्पूर्णता का निर्माण करते हैं, परन्तु 'सम्पूर्ण' की विशेषताएं अंश की विशेषताओं से भिन्न होती हैं। गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने इसे गेस्टाल्ट की संज्ञा दी जिसका अर्थ 'प्रारूप', 'आकार' या 'आकृति' बताया। इस स्कूल द्वारा प्रत्यक्षण के क्षेत्र में प्रयोगात्मक शोध किए गए हैं जिससे प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का नक्शा ही बदल गया। प्रत्यक्षण के अतिरिक्त इन मनोवैज्ञानिकों ने सीखना, चिंतन तथा स्मृति के क्षेत्र में काफी योगदान दिया जिसने शिक्षा मनोविज्ञान को अत्यधिक प्रभावित किया।

कोहलर के प्रयोग

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सन 1913 ई. से 1917 ई. तक कोहलर ने बर्लिन विश्वविद्यालय में एक चिंपैंजी पर प्रयोग किए जिसका नाम सुल्तान था।

प्रथम प्रयोग : एक पिंजरे में सुल्तान को बन्द किया। पिंजरे के बाहर कुछ केले रखे। पिंजरे में एक छड़ी रखी गई। चिंपैंजी ने छड़ी की सहायता से केलों को प्राप्त किया।

द्वितीय प्रयोग : अब केलों को पिंजरे से थोड़ी अधिक दूर रखा गया। पिंजरे में एक छड़ी के स्थान पर दो छड़ियाँ रखी जो एक दूसरे में फिट हो सकती थीं। दोनों छड़ियों को जोड़कर (शायद अनायास ) चिंपैंजी ने केलों को प्राप्त कर लिया।

तृतीय प्रयोग : इस बार केलों को पिंजरे की छत पर लटका दिया गया तथा छड़ी के स्थान पर पिंजरे में एक बक्से को रख दिया गया। चिंपैंजी ने कोने में रखे बॉक्स को खींचा और उस पर चढ़कर केलों को प्राप्त कर लिया।

चतुर्थ प्रयोग : इस बार कोहलर ने परिस्थिति को थोड़ा और कठिन बना दिया। इस बार केलों को थोड़ा और अधिक ऊंचाई पर लटका दिया गया। पिंजरे में दो बॉक्स रख दिए गए। चिंपैंजी (सुल्तान) ने दोनों बॉक्स को एक दूसरे के ऊपर रखा और केलों को प्राप्त कर लिया।

उपरोक्त सभी प्रयोगों से कोहलर ने स्पष्ट किया कि व्यक्ति अन्तःदृष्टि द्वारा सीखता है। कोहलर ने यह स्पष्ट करने का प्रयास किया कि व्यक्ति वातावरण के उद्दीपनों द्वारा परिस्थितियों का प्रत्यक्षीकरण अलग-अलग न करके सम्पूर्ण रूप में करता है।

अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखने की मूल विशेषताएँ

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  • संपूर्ण इकाई का बोध – इस सिद्धांत के अनुसार सीखने के लिए स्थिति को संपूर्ण इकाई के रूप में समझना आवश्यक होता है।
  • स्पष्ट लक्ष्य – सीखने का लक्ष्य स्पष्ट होना चाहिए।
  • सामान्यीकरण की शक्ति – सीखने वाले व्यक्ति में सामान्यीकरण ( Generalization ) की शक्ति होनी चाहिए।
  • समाधान का अचानक सूझना – अंतःदृष्टि के अंतर्गत अचानक समाधान सूझता है। इसमें लंबे समय तक चिंतन की आवश्यकता नहीं पड़ती।
  • वस्तुओं का नया रूप – अंतःदृष्टि के सिद्धांत में समस्याएं या स्थिति से जुड़ी वस्तुएं नए रूप में दिखाई देने लगती हैं।
  • ज्ञान का स्थानांतरण – अन्तर्दृष्टि के माध्यम से ज्ञान का स्थानांतरण संभव है अर्थात एक स्थिति में सीखी हुई बात का दूसरी स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है।
  • व्यवहार में परिवर्तन – अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखी हुई बात से व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन आता है।

अन्तर्दृष्टि निर्माण की विशेषताएँ

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  • क्षमता – अंतर्दृष्टि शारीरिक व मानसिक क्षमता पर निर्भर करती है। यह क्षमताएं भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न होती हैं।
  • पूर्व अनुभव – संबंधित पूर्व अनुभव भी अंतर्दृष्टि को प्रभावित करता है।
  • तत्पर आवृत्ति – अंतर्दृष्टि के माध्यम से जो भी समस्या का समाधान ढूंढा जाता है, वह कभी भूलता नहीं। उसे बार-बार दोहराया जाता है।
  • नई स्थिति में उपयोग – अंतर्दृष्टि द्वारा अर्जित अधिगम को किसी नई स्थिति में भी प्रयोग किया जा सकता है।
  • भटकाव व खोज – भटकाव व खोज भी अंतर्दृष्टि के निर्माण में सहायक हैं।
  • संपूर्ण अनुभव – अंतर्दृष्टि द्वारा अर्जित अनुभव स्वयं में पूर्ण होता है। उसमें अधूरापन नहीं होता।

अंतर्दृष्टि सिद्धांत की सीमाएं

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  • बच्चे और पशु इस सिद्धांत की सहायता से नहीं सीख सकते।
  • इस विधि में 'प्रयास और भूल विधि' का भी प्रयोग होता है।
  • केवल अंतर्दृष्टि से ही नहीं सीखा जा सकता। सीखने में प्रयास का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
  • बच्चों का अधिगम अनुभव पर बहुत अधिक सीमा तक निर्भर करता है।
  • मन्दबुद्धि बालकों के लिए यह विधि उपयोगी नहीं है।