जब गेहूं के बीज को अच्छी उपजाऊ जमीन में बोया जाता है तो कुछ ही दिनों में वह अंकुरित होकर बढ़ने लगता है और उसमें पत्तियां निकलने लगती है। जब यह अंकुरण पांच-छह पत्तों का हो जाता है तो अंकुरित बीज का यह भाग गेहूं का ज्वारा कहलाता है। औषधीय विज्ञान में गेहूं का यह ज्वारा काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है। गेहूं के ज्वारे का रस कैंसर जैसे कई रोगों से लड़ने की क्षमता रखता है।

उगाने का तरीका

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गेहूं के ज्वारे के रस का सेवन करने के लिए इसे अपने ही हाथों उगाया जाना चाहिए। इसके लिए तस्तरीनुमा दस पात्र की व्यवस्था करें। पात्र में बीज उगने लायक नम दोमट मिट्टी भरें। एक पात्र में पहले दिन स्वस्थ गेहूं का बीज बो दे। उसे उगने तक उसकी देखभाल करें। पानी, धूप आदि की व्यवस्था करते रहें। दूसरे दिन दूसरे पात्र में, तीसरे दिन तीसरे पात्र में....इसी तरह दसवें दिन दसवें पात्र में बीज बोएं। दसवें दिन पहले पात्र में पांच-छह पत्तियों का ज्वारा निकल आएगा। इस ज्वारे को जड़ सहित उखाड़ लें। जड़ की मिट्टी धोकर साफ कर लें। फिर इसमें पांच पत्ती तुलसी, पांच पत्ती पुदीना, पांच दाना काली मिर्च डालकर पीस लें और कपड़े से छानकर रस निकालें। यह रस....हलाता है। इस हरित रक्त को सीधे पी जाएं। पहले दिन पहला पात्र खाली हुआ, उस में नया बीज बो दें। इसी तरह इसका कम से कम इक्कीस दिन उपयोग करें तो लाभ दिखेगा। गेहूं के ज्वारे के रस की तुलनात्मक प्रकृति गेहूं के ज्वार के रस की आण्विक संरचना रक्त के हिमोग्लोबीन से मिलती-जुलती है। दोनों की संचरना में मात्र इतना फर्क है कि रक्त के केंद्र में लौह तत्व यानि एफई रहता है, जबकि गेहूं के ज्वारे के रस के अणु में मैंगनीज यानि एमजी। उपयोग यह हरित रक्त शरीर में रक्त की कमी को पूरा करता है। कई चिकित्सा विशेषज्ञों ने पाया है कि यह ल्यूकेमिया जैसे रोग को नष्ट करने की क्षमता रखता रखता है। कैंसर जैसे घातक रोगों पर विजय पाने में इस रस ने काफी मदद की है। साथ ही यह शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर शारीरिक क्षमता को बढ़ाता है।