गोल्जीकाय या गोल्जी उपकरण अधिकांश सुकेन्द्रक कोशिकाओं में पाया जाने वाला एक कोशिकांग है। कोशिकाद्रव्य में अन्तर्झिल्ली तन्त्र का भाग, यह प्रोटीन को कोशिका के भीतर झिल्ली-बद्ध पुटिकाओं को उनके गन्तव्य पर भेजने से पूर्व संवेष्टन करता है। यह स्रावी, लयनकाय और अन्तःकोशिकीय मार्गों के प्रतिच्छेदन पर रहता है। स्राव हेतु प्रोटीन को संसाधित करने में इसका विशेष महत्त्व है, जिसमें ग्लाइकोसिलेशन प्रकिण्वों का एक समुच्चय होता है जो विभिन्न शर्करायुक्त एकलक को प्रोटीन से जोड़ता है जैसे कि यह प्रोटीन तन्त्र के माध्यम से आगे बढ़ता है।[1]

कोशिका विज्ञान
गॉल्जीकाय

अण्डों में सूत्रकणिका और गॉल्जीकाय अण्ड पीतक निर्माण में योग देते हैं। स्परमाटिड के वीर्याणु में परिणत होते समय गॉल्जीकाय ऐक्रोसोम बनाता है, जिसके द्वारा संसेचन में वह अण्डे से जुट जाता है। सूत्रकणिका से स्परमाटिड का नेबेनकेर्न (Nebenkern) बनता है और जिन जंतुओं में मध्यखण्ड होता है उनमें मध्यखण्ड का एक बड़ा भाग। ग्रंथि की कोशिकाओं में स्रावी पदार्थ को उत्पन्न और परिपक्व करने में सूत्रकणिका और गॉल्जीकाय सम्मिलित हैं।

इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी से फोटो लेने पर पता चलता है कि प्रत्येक सूत्रकणिका बाहर से एक दोहरी झिल्ली से घिरा होता है और उसके भीतर कई झिल्लियाँ होती हैं जो एक ओर से दूसरी ओर तक पहुँचती हैं या अधूरी ही रह जाती हैं। गॉल्जीकाय में कुछ धानियाँ होती हैं, जो झिल्लीमय पटलिकाओं से कुछ कुछ घिरी होती हैं। इनसे सम्बन्धित कुछ कणिकाएँ भी होती हैं जो लगभग 400 आं0 के माप की होती हैं। ये सब झिल्लियाँ इलेक्ट्रान सघन होती हैं। कोशिकाद्रव्य स्वयं ही झिल्लियों के तंत्र का बना होता है, परंतु इसमें संदेह नहीं कि इन झिल्लियों के माइटोकॉण्ड्रीय झिल्लियों और गॉल्जी झिल्लियों में कोई विशेष संबंध नहीं होता। ऐसी कोशिकाद्रव्यीय झिल्लियाँ ग्रंथि की कोशिकाओं में अधिक ध्यानाकर्षी अवस्था में पाई जाती हैं। ये अरगैस्टोप्लाज्म कही जाती हैं। ये झिल्लियाँ दोहरी होती हैं और इनपर जगह जगह छोटी छोटी कणिकाएँ सटी होती हैं।

कुछ विद्वानों की यह भी धारणा है कि गॉल्जीकाय कोई विशेष कोशिकांग नहीं है। यह सूत्रकणिका का ही एक विशेष रूप है अथवा केवल धानी के रूपान्तरण से बनता है अथवा केवल एक कृत्रिम द्रव्य है, इस सम्बन्ध में विद्वानों में अब भी मतभेद है।

कमिल्लो गॉल्जी ने प्रथम बार तन्त्रिका कोशिका में केन्द्रक के निकट घनी रंजित जालिकावत् संरचना देखी। जिन्हें बाद में उनके नाम पर गॉल्जीकाय कहा गया। यह बहुत सारी चप्टी चक्राकार थैलियों या कुण्डों से मिलकर बनी होती हैं जिनका व्यास 0.5 से 1 माइक्रोमीटर होता है। ये परस्पर के समानान्तर ढेर के रूप में मिलते हैं जिसे जालिकाय कहते हैं। गॉल्जीकाय में कुण्डों की संख्या विभिन्न होती है। कुण्ड केन्द्रक के पास सकेन्द्रित व्यवस्थित होते हैं, जिनमें निर्माणकारी (उत्तल) सतह व परिपक्व (अवतल) सतह होती हैं। सिस व ट्रांस सतह पूर्णतः भिन्न होते हैं; किन्तु अन्तःसम्बद्ध रहते हैं।

प्रकार्य

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गॉल्जीकाय का मुख्य कार्य द्रव्य को संवेष्टित कर अन्तक लक्ष्य तक पहुँच या कोशिका के बाहर स्रवण करना है। संवेष्टित द्रव्य अन्तर्द्रव्यीय जालिका से पुटिका के रूप में गॉल्जीकाय के उत्तल सतह से संगठित होकर अवतल सतह की ओर गति करते हैं। इससे स्पष्ट है कि गॉल्जीकाय का अन्तर्द्रव्यीय जालिका से निकटतम सम्बन्ध है। अन्तर्द्रव्यीय जालिका पर उपस्थित राइबोसोम द्वारा प्रोटीन संश्लेषण होता है जो गॉल्जीकाय के अवतल सतह से निकलने के पूर्व इसके कुण्ड में रूपान्तरित हो जाते हैं। गॉल्जीकाय ग्लाइकोप्रोटीनग्लाइकोलिपिड निर्माण का प्रमुख स्थल है।

  1. त्रिपाठी, नरेन्द्र नाथ (मार्च २००४). सरल जीवन विज्ञान, भाग-२. कोलकाता: शेखर प्रकाशन. पृ॰ ४-५. |access-date= दिए जाने पर |url= भी दिया जाना चाहिए (मदद)