गोपाल शरण रंगमंच के अभिनेता थे।

गोपाल शरण जी का जन्म एक मध्यम वर्गीय परिवार के पशु चिकित्सालय के कम्पाउंडर पिता जंगी राम के घर २० जनवरी सन १९२६ को हुआ। लगभग छः माह की अल्प आयु में ही श्री शरण के सर से माँ की ममता छीन गया। उतना ही नहीं लगभग एक वर्ष की आयु में पिता जी भी छोड़ चल बसे, चाचा -चाची ने इनका पालन पोषण किया जो निःसंतान थे। श्री शरण तीन भाई बहनों में सबसे छोटे थे, बड़े भाई का नाम स्व. श्रीराम दास एवं बहन सरस्वती थीं। प्राथमिक शिक्षा बाकरगंज मोहल्ले में ही गोपी जी का निजी पाठशाला से प्रारम्भ हुआ। मध्य एवं माध्यमिक शिक्षा बी.एन. कॉलेजीएट, पटना से पूरी की जहाँ से सन १९४६ ई. में मैट्रिक की परीक्षा भी उतीर्ण हुये, वहीँ सन १९४८ ई. बी.एन.कॉलेज, पटना से अन्तर स्नातक की डिग्री तत्कालीन पटना विश्वविद्यालय, पटना से हासिल किया। अपने गृहस्त जीवन की शुरुआत सन १९४९ ई. में लीलावती नामक योग्य युवती के साथ सातो वचन निभाने की क़सम खा कर किया। इधर नाटकों में सक्रियता तो बरक़रार थीं ही . उन दिनों युवा उर्जावान कलाकारों, लेखकों एवं निर्देशकों में प्यारे मोहन सहाय, डॉ॰ चतुर्भुज, प्रभात रंजन दास एवं डॉ॰ जीतेन्द्र सहाय जैसे नाटककारों का चाहेताओं में रंगकर्मी गोपाल शरण का विशेष स्थान था।

गोपाल शरण सबसे अधिक प्यारे मोहन सहाय के निर्देशन में अभिनय किया। सहाय जी का "षोडशी", "अंधेर नगरी चौपट राजा", "शुतुरमुर्ग", "अंडर सेक्रेटरी", "राम रहीम", "ज़िन्दगी के मोड़ ", "नीलकंठ निराला", "मैं मंत्री बनूँगा", "आखिर कब तक (भोजपुरी)", "भगवत अजुकियम", "कमरा न. -०५", "चार प्रहर" एवं अन्य नाटकों में अभिनय किया तो जगदीश प्रसाद जी का "अछूतोद्धार", अरविन्द रंजन दास का "सगीना महतो", प्रभात रंजन दास का "राज दरबारी", डॉ॰चतुर्भुज का "बंद कमरे की आत्मा" तो वहीँ डॉ जीतेन्द्र सहाय का, "चार पार्टनर" के अलावा टेलीफिल्मों में कासिम खुर्शीद जो शैक्षिक दूरदर्शन के निर्देशक भी थे उनका "छुपा खजाना" मुकुल वर्मा (दिल्ली आकाशवाणी में उद्घोषक थे) का "संकल्प" गोपी आनन्द का "पंच लाइट (फणीश्वरनाथ रेणु लिखित)" जगदीश प्रसाद का "अलग", सन १९८२ ई . में पहली बार प्रसिद्ध फ़िल्मकार मृणाल सेन के निर्देशन में फीचर फिल्म "एक अधूरी कहानी" में अभिनय किया। इसके कुछ ही समय बाद प्रकाश झा की फीचर फिल्म "दामुल"(१९८४) का एक अहम पात्र "गोकुल" की जीवन्त भूमिका निभा कर खूब प्रसिद्धि पाई, इतना हीं नहीं इस फिल्म में उनकी अपनी बेटी नीरजा भी गोकुल की बेटी बन अभिनय की है। प्रकाश झा का "कथा माधोपुर की (१९८८)" में "बिरछा" की भूमिका, प्रकाश झा का ही धारावाहिक " वीर कुंवर सिंह या विद्रोह" में "गोपाली" की भूमिका में भी श्री शरण ने बेज़ोर अभिनय किया है। मुन्नाधारी की फीचर फिल्म "३६ का आंकरा" में स्वतंत्रता सेनानी की भूमिका को भी खूब सराहना मिली। वैसे तो तीस से अस्सी के दशक तक नाटकों में श्री शरण की अनिवार्य उपस्थिति रही। श्री शरण आकाशवाणी एवं दूरदर्शन, पटना के लिये भी लगभग पन्द्रह वर्षों तक ब्रोडकास्ट नाटकों में अहम् भूमिका अदा किया है। उनकी अभिनय की बहुत ही लम्बी सूची है।

जानकारी दूँ कि गोपाल शरण जी का विगत २८ फ़रवरी २०१३ को निधन हो गया है, संबंधित सूचना निम्न प्रकार है सम्मान स्व. शरण को बिहार आर्ट थियेटर की ओर से "अनिल मुखर्जी शिखर सम्मान", आर्ट एंड आर्टिस्ट को -पटना की ओर से "स्व.प्रो॰राम नारायण पाण्डेय शिखर सम्मान", बिहार आर्ट थियेटर एवं मगध आर्टिस्ट की ओर से "डॉ॰ चतुर्भुज शिखर सम्मान", भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन सांस्कृतिक प्रकोष्ठ, बिहार की ओर से "कलाश्री सम्मान ", प्रांगण की ओर से "पाटलिपुत्र सम्मान" नटराज सम्मान के अलावा सन 2012 में बिहार शताब्दी दिवस के उपलक्ष्य में कला, संस्कृति विभाग की ओर से मुख्यमन्त्री नीतीश कुमार के हांथों भिखारी ठाकुर सम्मान से सम्मानित हो चुके थे।

निधन

स्व. शरण कुछ वर्षों से रीढ़ की हड्डी और सर्वाइकल समस्या से पीड़ित चल रहे थे। 23 फ़रवरी 2013 की शाम में अपने कमरे में कुर्सी पर बैठ कर अपने पोते पोतियों को पढ़ा रहे थे, तभी अचानक चक्कर आई और नीचे गिर गए। सिर में चोट आई. हालत गंभीर होते देख परिजनों ने 28 फ़रवरी 2013 समय 12:15 बजे दोपहर पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल में भर्ती करवाया. जहाँ उनकी इलाज इन्दिरा गाँधी आस्मिक इकाई के मेडिकल वार्ड में 17 न. बेड पर चल रही थी। लगातार ऑक्सीजन पर चल रहे स्व.शरण के श्वास्थ्य में गिरावट ही आती गई। अन्ततः 3 मार्च 2013 की सुबह 2:15 बजे वे अमरत्व को प्राप्त कर गए। 

- रविराज पटेल, पटना रंगमंच पर शोधकर्ता