गोरखमुंडी

गोरखमुंडी का इस्तेमाल आयुर्वेद मतानुसार क्षयजनित ग्रंथियां, खुजली, दाद, कुष्ठ, यौन रोग तथा गर्भा

गोरखमुंडी (वानस्पतिक नाम : स्फ़ीरैंथस इंडिकस Sphaeranthus Indicus) कंपोज़िटी (Compositae) कुल की वनस्पति है। इसे मुंडी या गोरखमुंडी (प्रादेशिक भाषाओं में) और मुंडिका अथवा श्रावणी (संस्कृत में) कहते हैं।

गोरखमुंडी

गोरखमुंडी एकवर्षा आयु वाली, प्रसर, वनस्पति धान के खेतों तथा अन्य नम स्थानों में वर्षा के बाद निकलती है। यह किंचित् लसदार, रोमश और गंधयुक्त होती है। कांड पक्षयुक्त, पत्ते विनाल, कांडलग्न और प्राय: व्यस्तलट्वाकार (Obovate) और पुष्प सूक्ष्म किरमजी (Magenta-coloured) रंग के और मुंडकाकार व्यूह में पाए जाते हैं।

इसके मूल, पुष्पव्यूह अथवा पंचाग का चिकित्सा में व्यवहार होता है। यह कटुतिक्त, उष्ण, दीपक, कृमिघ्न (कीड़े मारने वाली), मूत्रजनक रसायन और वात तथा रक्तविकारों में उपयोगी मानी जाती है। इसमें कालापन लिए हुए लाल रंग का तैल और कड़वा सत्व होता है। तैल त्वचा और वृक्क द्वारा नि:सारित होता है, अत: इसके सेवन से पसीने और मूत्र में एक प्रकार की गंध आने लगती है। मूत्रजनक होने और मूत्रमार्ग का शोधन करने के कारण मूत्रेंद्रिय के रोगों में इससे अच्छा लाभ होता है। अधिक दिन सेवन करने से फोड़े फुन्सी का बारंबार निकलना बंद हो जाता है। यह अपची, अपस्मार, श्लीपद और प्लीहा रोगों में भी उपयोगी मानी जाती है।

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