गौड़ (नगर)
गौड़ (आधुनिक नाम) या 'लक्ष्मणावती' (प्राचीन नाम) या 'लखनौती' (मध्यकालीन नाम) पश्चिम बंगाल के मालदा जिला में स्थित एक पुराना नगर है। यह हिंदू राजसत्ता के उत्कर्षकाल में संस्कृत विद्या के केंद्र के रूप में विख्यात थी और महाकवि जयदेव, कविवर गोवर्धनाचार्य तथा धोयी, व्याकरणचार्य उमापतिघर और शब्दकोशकार हलायुध इन सभी विद्वानों का संबंध इस प्रसिद्ध नगरी से था। इसके खंडहर बंगाल के मालदा नामक नगर से 10 मील दक्षिण पश्चिम की ओर स्थित हैं।[1]
गौड़ গৌড় | |
---|---|
गौड़ में प्रवेश के लिए ऐतिहासिक द्वार | |
| |
वैकल्पिक नाम | लखनौती |
स्थान | पश्चिम बंगाल, भारत |
निर्देशांक | 24°52′N 88°08′E / 24.867°N 88.133°Eनिर्देशांक: 24°52′N 88°08′E / 24.867°N 88.133°E |
प्रकार | Settlement |
लम्बाई | 7 1/8 किमी |
चौड़ाई | 1 – 2 किमी |
क्षेत्रफल | 20 से 30 km2 |
इतिहास | |
स्थापित | 15वीं शताब्दी (इसके पूर्व के निर्माण के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है।) |
परित्यक्त | 16वीं शताब्दी |
परिचय
संपादित करेंबंगाल की राजधानी कालक्रम से काशीपुरी, वरेंद्र और लक्ष्मणवती रही थी। मुसलमानों का बंगाल पर (13वीं सदी में) आधिपत्य होने के पश्चात् बंगाल के सूबे की राजधानी कभी गौड़ और कभी पांडुआ रही। पांडुआ गौड़ से लगभग 20 मील दूर है। आज इस मध्युगीन भव्य नगर के केवल खंडहर ही बचे हैं। इनमें से अनेक ध्वंसावशेष प्राचीन हिंदू मंदिरों और देवालयों के हैं जिनका प्रयोग मसजिदों के निर्माण के लिये किया गया था।
1575 ई. में अकबर के सूबेदार ने गौड़ के सौंदर्य से आकृष्ट होकर अपनी राजधानी पांडुआ से हटाकर गौड़ में बनाई थी जिसके फलस्वरूप गौड़ में एकबारगी हो बहुत भीड़भाड़ हो गई थी। थोड़े ही दिनों बाद महामारी का प्रकोप हुआ जिससे वहां की जनसंख्या को भारी क्षति पहुँची। बहुत से निवासी नगर छोड्कर भाग गए। पांडुआ में भी महामारी का प्रकोप फैला और दोनों नगर बिल्कुल उजाड़ हो गए। कहा जाता है कि गौड़ में जहाँ अब तक भव्य इमारतें खड़ी हुई थी और चारों ओर व्यस्त नरनारियों का कोलाहल था, इस महामारी के पश्चात् चारों ओर सन्नाटा छा गया, सड़कों पर घास उग आई और दिन दहाड़े व्याघ्र आदि हिंसक पशु धूमने लगे। पांडुआ से गौड़ जाने वाली सड़क पर अब घने जंगल हो गए थे। तत्पश्चात् प्राय: 309 वर्षों तक बंगाल की यह शालीन नगरी खंडहरों के रूप में घने जंगलों के बीच छिपी पड़ी रही। अब कुछ ही वर्षों पूर्व वहाँ के प्राचीन वैभव को खुदाई द्वारा प्रकाश में लाने का प्रयत्न किया गया है। लखनौती में 8 वीं, 10 वीं सदी में पाल राजाओं का राज था और 12 वीं सदी तक सेन नरेशों का आधिपत्य रहा। इस काल में यहाँ अनेक हिंदू मंदिरों का निर्माण हुआ जिन्हें गौड़ के परवर्ती मुसलमान बादशाहों ने नष्टभ्रष्ट कर दिया। मुसलमानों के समय की बहुत सी इमारतों के अवशेष अभी यहाँ मौजूद है। इनकी मुख्य विशेषताएँ हैं ठोस बनावट तथा विशालता। सोना मसजिद प्राचीन मंदिरों की सामाग्री से निर्मित है। यह यहाँ के जीर्ण दुर्ग के अंदर अवस्थित है। इसकी निर्माणतिथि 1526 ई. है। इसके अतिरिक्त 1530 ई. में बनी नसरतशाह की मसजिद भी कलाउल्लेखनीय है।
इन्हें भी देखें
संपादित करेंटिप्पणीसूची
संपादित करें- ↑ "रंगन दत्ता द्वारा लिखित एक यात्रावृत्तांत". मूल से 2 अप्रैल 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 अप्रैल 2019.