ग्रामगीता
ग्रामगीता, तुकडोजी महाराज द्वारा मराठी भाषा में रचित एक महाकाव्य है जिसमें भारतीय ग्राम्य जीवन के विविध पक्षों का चित्रण है। यह काव्य ग्रामीण समुदाय के विकास के लिये एक आदर्श सन्दर्भ ग्रन्थ है।
तुकडोजी महाराज जानते थे कि भारत गांवों में बसता है, अतः उसको वह स्वर्ग बनाना चाहते थे। ऋग्वेद का ‘विश्वपुष्टे ग्रामे अस्मिन्ननातुराम्’ को उन्होंने प्रेरणा ही मान लिया था।
ग्रामगीता
संपादित करेंग्रामगीता के कुछ अंश
संत देहाने भिन्न असती। परि ध्येय धोरणाने अभिन्न स्थिती।
साधने जरी नाना दिसती। तरी सिद्धान्तमति सारखी।।
- या झोपडीत माझ्या
- राजास जी महाली, सौख्ये कधी मिळाली
- ती सर्व प्राप्त झाली, या झोपडीत माझ्या॥१॥
- भूमीवरी पडावे, तार्यांकडे पहावे
- प्रभुनाम नित्य गावे, या झोपडीत माझ्या॥२॥
- पहारे आणि तिजोर्या, त्यातूनी होती चोर्या
- दारास नाही दोर्या, या झोपडीत माझ्या॥३॥
- जाता तया महाला, ‘मज्जाव’ शब्द आला
- भिती नं यावयाला, या झोपडीत माझ्या॥४॥
- महाली मऊ बिछाने, कंदील शामदाने
- आम्हा जमीन माने, या झोपडीत माझ्या॥५॥
- येता तरी सुखे या, जाता तरी सुखे जा
- कोणावरी न बोजा, या झोपडीत माझ्या॥६॥
- पाहून सौख्य माझे, देवेंद्र तोही लाजे
- शांती सदा विराजे, या झोपडीत माझ्या॥७॥
- हर देश में तू ...
- हर देश में तू , हर भेष में तू , तेरे नाम अनेक तू एकही है।
- तेरी रंगभुमि यह विश्वभरा, सब खेलमें, मेलमें तु ही तो है ॥टेक॥
- सागर से उठा बादल बनके, बादल से फ़टा जल हो कर के।
- फ़िर नहर बनी नदियाँ गहरी,तेरे भिन्न प्रकार तू एकही है ॥१॥
- चींटी से भी अणु-परमाणुबना,सब जीव जगत् का रूप लिया।
- कहिं पर्वत वृक्ष विशाल बना, सौंदर्य तेरा,तू एकही है ॥२॥
- यह दिव्य दिखाया है जिसने,वह है गुरुदेवकी पूर्ण दया।
- तुकड्या कहे कोई न और दिखा, बस! मै और तू सब एकही है ॥३॥
प्रथम प्रकाशन
संपादित करें- वर्धा, महाराष्ट्र : राष्ट्रसंत साहित्य प्रचार मंडल, १९७९
- ग्रामगीता हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओ में उपलब्ध
- ग्रामगीता वर्तमान समय में गुजराती भाषा में भी उपलब्ध
बाहरी कड़ियाँ
संपादित करें- ग्रामगीता ओनलाईन अंग्रेजी अनुवाद
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