ग्राम्या में सुमित्रानंदन पंत की सन 1939 से 1940 के बीच लिखी गई कविताओं का संग्रह है। इनके विषय में वे ग्राम्या की भूमिका में लिखते हैं--

ग्राम्या  

ग्राम्या का मुखपृष्ठ
लेखक सुमित्रानंदन पंत
देश भारत
भाषा हिंदी
विषय गीत कविता
प्रकाशक लोकभारती प्रकाशन, इलाहाबाद
प्रकाशन तिथि 2मार्च 2001(नया संस्करण)
पृष्ठ 40

ग्राम्या में मेरी युगवाणी के बाद की रचनाएँ संग्रहीत हैं। इनमें पाठकों को ग्रामीणों के प्रति केवल बौद्धिक सहानुभूति ही मिल सकती है। ग्राम जीवन में मिलकर, उसके भीतर से, ये अवश्य नहीं लिखी गई हैं। ग्रामों की वर्तमान दशा में वैसा करना केवल प्रति-क्रियात्मक साहित्य को जन्म देना होता। ‘युग’, ‘संस्कृति’ आदि शब्द इन रचनाओं में वर्तमान और भविष्य दोनों के लिए प्रयुक्त हुए हैं, जिसे समझने में पाठकों को कठिनाई नहीं होगी; ग्राम्या की पहिली कविता ‘स्वप्न पट’ से यह बात स्पष्ट हो जाती है। ‘बापू’ और ‘महात्मा जी के प्रति’, ‘चरखा गीत’ और ‘सूत्रधर’ जैसी कुछ कविताओं में बाहरी दृष्टि से एक विचार-वैषम्य जान पड़ता है, पर यदि हम ‘आज’ और ‘कल’ दोनों को देखेंगे तो वह विरोध नहीं रहेगा। अंत में मेरा निवेदन है कि ग्राम्या में ग्राम्य दोषों का होना अत्यन्त स्वाभाविक है, सहृदय पाठक उसमें विचलित न हों।[1]

  1. "ग्राम्या". भारतीय साहित्य ऑनलाइन. मूल (पीएचपी) से 21 अगस्त 2012 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 नवंबर 2007. |access-date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)