ग्रीनहाउस प्रभाव

हरित गृह प्रभाव

ग्रीनहाउस प्रभाव या हरितगृह प्रभाव (greenhouse effect) एक प्राकृतिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा किसी ग्रह या उपग्रह के वातावरण में मौजूद कुछ गैसें वातावरण के तापमान को अपेक्षाकृत अधिक गर्म बनाने मदद करतीं हैं। इन ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाई आक्साइड, जल-वाष्प, मिथेन आदि शामिल हैं। यदि ग्रीनहाउस प्रभाव नहीं होता तो शायद ही पृथ्वी पर जीवन नहीं होता, क्योंकि तब पृथ्वी का औसत तापमान -18° सेल्सियस होता न कि वर्तमान 15° सेल्सियस।

ठंडे स्थान पर पौधे उगाने के लिये बने ग्रीनहाउस

धरती के वातावरण के तापमान को प्रभावित करने वाले अनेक कारक हैं जिसमें से ग्रीनहाउस प्रभाव एक है।

इतिहास संपादित करें

ग्रीनहाउस प्रभाव के अस्तित्व के बारे में वर्ष 1824 में जोसेफ फुरियर ने बताया था। उनके द्वारा दिये गए तर्क और साक्ष्यों को वर्ष 1827 और 1838 में क्लाउड पाउलेट ने और मजबूत कर दिया।[1] इस पर प्रयोग और अवलोकन करने के बाद इसका कारण जॉन टिंडल ने 1859 में बताया था। लेकिन सबसे पहले इसकी स्पष्ट आंकिक जानकारी स्वांटे आर्रेनियस ने 1896 में दी थी। उन्होंने पहली बार मात्रात्मक पूर्वानुमान लगा कर यह बताया था कि वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस के दोहरीकरण से होता है। लेकिन किसी भी वैज्ञानिक ने ग्रीनहाउस शब्द का प्रयोग नहीं किया था। इसका प्रयोग सबसे पहले निल्स गुस्टफ एकहोम ने 1901 में किया था।[2][3]

ग्रीन हाउस प्रभाव में वृद्धि संपादित करें

 
वायुमण्डल में ग्रीनहाउस प्रभाव का चित्रण

पूरे विश्व के औसत तापमान में लगातार वृद्धि दर्ज की गयी है। ऐसा माना जा रहा है कि मानव द्वारा उत्पादित अतिरिक्त ग्रीनहाउस गैसों के कारण ऐसा हो रहा है। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि यदि वृक्षों का बचाना है तो इन गैसों पर नियंत्रण करना होगा

इन्हें भी देखें संपादित करें

सन्दर्भ संपादित करें

  1. John Tyndall, Heat considered as a Mode of Motion Archived 2016-03-04 at the वेबैक मशीन (500 पन्ने; वर्ष 1863, 1873)
  2. Easterbrook, Steve. "Who first coined the term "Greenhouse Effect"?". Serendipity. मूल से 13 नवंबर 2015 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 11 नवम्बर 2015.
  3. (वीर गडरिया) पाल बघेल धनगर

बाहरी कड़ियाँ संपादित करें