ग्रोट रेबर
ग्रोट रेबर (22 दिसम्बर 1911 - 20 दिसम्बर 2002) को रेडियो खगोलिकी का पितामह कहा जाता है। वे प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने रेडियो आवृत्तियों पर आकाश के मानचित्रण के लिए एक बड़ा डिश एन्टेना बनाया। उन्होंने अनेक विविक्त (डिक्रीट) रेडियो स्रोतों की खोज की तथा हमारी आकांश गंगा - 'मिल्की वे' से उत्सर्जित होने वाले विभिन्न रेडियो उत्सर्जनों पर आकाशगंगा का मानचित्रण किया। वे एक महान खगोलशास्त्रा तथा रेडियो खगोलिकी के कर्णधार थे। उन्होंने कार्ल जैंस्की के महान खगोलिकी कार्यों को आगे बढ़ाया तथा पहली बार रेडियो आवृत्तियों पर आकाश का सर्वेक्षण किया।
जीवन परिचय
संपादित करेंरेबर का जन्म 22 दिसम्बर 1911 को इलिन्वायज के ह्वीटन (शिकागो का उपनगरीय क्षेत्र) स्थान पर हुआ तथा यहीं पर उनका लालन पालन भी हुआ। उन्होंने आर्मर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी (जिसका बाद में नाम इलिन्वायज इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी हो गया) से 1933 में ग्रेजुएशन किया तथा रेडियो इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त की। वे एक अमैच्योर रेडियो आपरेटर थे तथा 1933 से 1947 के बीच उन्होंने अनेक रेडियो निर्माताओं के लिए कार्य किया।
1933 में जब उन्हें कार्ल जैंस्की के कार्यों के विजाय में मालूम पड़ा तो उन्होंने महसूस किया कि यही वह क्षेत्र था जिसमें वे कार्य करना चाहते थे तथा इसके लिए उन्होंने बेल लैब में आवेदन किया जहाँ पर जैंस्की कार्पार रहे थे। यह काफी निराशा का समय था तथा वहाँ पर उस समय कोई नौकरी उपलब्ध नहीं थी।
प्रारंभिक परीक्षण
संपादित करें1937 के ग्रीजमकाल में रेबर ने अपनी स्वयं की रेडियो दूरबीन बनाने का निर्णय लिया तथा यह कार्य उन्होंने ह्वीटन में अपने आवास के पिछवाड़े करने का सोचा। रेबर की रेडियो दूरबीन काफी उच्च कोटि की थी (जैंस्की की दूरबीन की तुलना में) जिसमें एक परवलय आकार शीट मेटल का दर्पण था जिसका व्यास 9 मीटर का था जो दर्पण से 8 मीटर ऊपर एक रेडियो रिसीवर को फोकस करता था। सम्पूर्ण दर्पण असेम्बली एक झुकावदार स्टैंड पर स्थापित की गई जिससे इसकी प्वाइंटिंग विभिन्न दिशाओं में की जा सकी। इस दूरबीन को 1937 में पूरा किया गया।
रेबर के प्रथम रिसीवर को 3300 मेगाहर्ट्स पर प्रचालित किया गया तथा इससे बाह्य अंतरिक्ष से सिग्नलों का संसूचन किया जा सका। इसी प्रकार 900 मेगाहर्ट्ज पर कार्य करने वाला रिसीवर भी असफल रहा। अन्त में उन्होंने 160 मेगाहर्ट्ज पर रिसीवर बनाया तथा 1938 में इसने सफलतापूर्वक कार्य किया। 1940 में उन्होंने अपना प्रथम प्रोफेशनल प्रकाशन कराया (आस्ट्रोफिजिकल जर्नल में) लेकिन रेबर ने येर्कीज प्रेक्षणशाला में रिसर्च नियुक्ति लेने से मना कर दिया। इसके बाद उन्होंने रेडियो आवृत्ति आकाश मानचित्र बनाने की ओर ध्यान दिया जिसे उन्होंने 1941 में पूरा किया तथा 1943 में इसे और विस्तृत किया। इस अवधि में उन्होंने अपने द्वारा किये गये अनुसंधानों का काफी विवरण प्रकाशित कराया तथा रेडियो खगोलिकी के प्रारंभकर्ता के रूप में उभरे।
द्वितीय विश्वयुद्ध का समय
संपादित करेंइस दौरान उन्होंने खगोलिकी के उन रहस्यों का पर्दाफाश किया जिनका स्पष्टीकरण 1950 तक नहीं दिया जा सका था। अन्तरिक्ष रेडियो उत्सर्जन की मूल संकल्पना यह थी कि उन उत्सर्जनों का कारण 'ब्लैक बाडी रेडियेशन' था जो कि एक प्रकार का प्रकाश था (जिसका रेडियो विकिरण अदृष्टिगोचर स्वरूप था) जो सभी कृष्ण पिन्डों के द्वारा उत्सर्जित किया जाता है। लेकिन रेबर ने यह सिद्ध किया कि इसका उल्टा भी सत्य है और निम्न ऊर्जा वाले रेडियो सिग्नल की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध है। 1950 में ही यह बात पता चली कि इस प्रकार के मायनों के लिए 'सिंरोटन विकिरण' उस विकिरण को दिया गया एक सम्बोधन है जो तब पैदा होता है जब आवेशित कणों को एक वक्राकार पथ पर त्वरण प्रदान किया जाता है) का स्पष्टीकरण दिया गया।
रेबर ने अपनी दूरबीन राष्ट्रीय मानक ब्यूरो को बेंच दी तथा इसे स्टर्लिंग (वर्जीनिया) में एक फील्ड स्टेशन में स्थापित किया गया। अन्त में यह दूरबीन पश्चिमी वर्जीनिया की 'एन आर ए ओ' प्रेक्षण शाला (ग्रीन बैंक में) पहुंची तथा रेबर ने उस नई साइट पर इसके पुन स्थापन का मार्गदर्शन किया। रेबर ने जैंस्की की वास्तविक दूरबीन के पुन निर्माण को भी सुपरवाइज किया।
मध्य आवृत्तियों में अनुसंधान
संपादित करेंवजा 1951 से रेबर को न्यूयार्क अनुसंधान कार्पोरेशन से काफी अच्छासहयोग प्राप्त हुआ और वे हवाई चले गये। वजा 1950 में वे सक्रिय अध्ययन के क्षेत्र में वापस आना चाहते थे लेकिन यह क्षेत्र अधिकांश रूप से विशाल आकार वाले उपकरणोंसे भरा हुआ था। इसके बदले उनका ध्यान एक अन्य क्षेत्रकी ओर गया जो अधिकतर रूप से तिरस्कृत था तथा वह था मध्यम आवृत्ति वाले 0.5 मेगाहर्ट्स से 3 मेगाहर्ट्स रेंज का ए.एम. ब्राडकास्ट बैंड। 30 मेगाहर्ट्स आवृत्ति से नीचे के सिग्नल पृथ्वी का वायुमंडल की एक आयनीकृत परत, जिसे 'आयनमंडल' कहते हैं, के द्वारा परावर्तित कर दिये जाते हैं। वजा 1954 में रेबर तस्मानिया चले गये जो दक्षिणी आस्टःsलिया के तटवर्ती किनारे पर एक त्रिभुजाकार उपद्वीप था। यहाँ आकर उन्होंने तस्मानिया विश्वविद्यालय में बिल एलिस के साथ कार्य किया। यहाँ पर अत्यधिक ठंडी और लम्बी शरदकाल की रातों में आयनमंडल अनेक घंटों तक सौर विकिरण से बचा रहता था तथा इसके कारण अनेक घंटों तक सौर विकिरण से बचा रहता था तथा इसके कारण रेबर के एन्टेना एरे को काफी लम्बे अर्से तक रेडियो तरंगें मिलती रहती थीं। तस्मानिया में मानव निर्मित रेडियो न्वाशेक स्तर भी काफी कम था जिससे बाह्य अन्तरिक्ष से मध्यम स्तर के सिग्नलों का अभिग्रहण आसानी से हो पाता था।
ग्रोट रेबर 'बग बैंग संकल्पना' पर विश्वास नहीं रखते थे बल्कि उनका विश्वास रेड शिप्ट पर था कि रेड शिप्ट परिघटना का कारण निम्न घनत्व वाले कृण द्रव्य (डार्क मैटर) के द्वारा प्रकाश एवं अन्य प्रकार के विद्युत चुम्बकीय विकिरणों का बार बार अवशोजाण एवं पुन उत्सर्जन। यह परिघटनाएँ अन्तरा-गैलेक्टिक दूरियों पर होती हैं तथा इस पर उन्होंने एक शोध पत्र, 'एन्डलेस, बाउन्डलेस, स्टेबुल यूनिवर्स अन्तरहित, सीमारहित, स्थिर ब्रह्माण्ड) प्रकाशित किया।
20 दिसम्बर 2002 को (91वें जन्म दिन के 2 दिन पहले) तस्मानिया के उत्तर-पूर्वी होबर्ड में उनकी मृत्यु हो गई।
आनरेरी डिग्रियाँ
संपादित करेंरेबर को उनके जीवन काल में अनेक आनरेरी डिग्रियाँ और अवार्ड प्रदान किए गये। इनमें से कुछ निम्न हैं :-
- ओहियो स्टेट विश्वविद्यालय से डाक्टर ऑफ साइंस की आनरेरी डिग्री (1962)
- पैसिफिक खगोलिकी सोसाइटी का ब्रूस मेडल (1962)
- हेनरी नॉरिस रसेल स्कालरशिप (1962)
- फैंकलिन संस्थान का इलियट क्रेसन मेडल (1963)
- रवायल खगोलिकी संस्था का जैक्श्सन-ग्वल्ट मेडल (1983)
ग्रोट रेबर के सम्मान में अनेक चीजों और संस्थाओं के नाम उनके नाम के साथ रखे गये। इनमें से कुछ नाम हैं क्षुद्र ग्रह 6886 ग्रोट ग्रोट रेबर फाउन्डेशन के टस्टियों के द्वारा ग्रोट रेबर मेडल का प्रारंभ किया गया। उनके सम्मान में माउन्ट प्लीजैन्ट रेडियो प्रेक्षण शाला, कैम्ब्रिज (तस्मानिया) में एक म्यूजियम खोला गया।
ग्रोट रेबर की मृत्यु के बाद उनकी अस्थियों को विश्व की अनेक प्रेक्षण शालाओं में यादगार के तौर पर रखा गया तथा ये कुछ प्रेक्षण शालाएं हैं- माउन्ट प्लीसैन्ट रेडियो प्रेक्षण शाला एवं ग्रोट रेबर म्यूजियम, पार्कस प्रेक्षणशाला (आस्टलिया), मोलोंगो प्रेक्षणशाला (आस्टलिया), डिंवगेलू रेडियो प्रेक्षणशाला, जाडल बैंक प्रेक्षणशाला, एरिकिबो प्रेक्षणशाला इत्यादि।)