घर्षणमारक धातु एवं मिश्रातु

घर्षणमारक धातु एवं मिश्रातु (Antifriction metals and alloys) वे धातुएँ तथा मिश्रातु है जो परस्पर घिसकर चलने वाले दो मशीन-पुर्जों के बीच घर्षण गुणांक को कम करने में सहायक होती हैं तथा घर्षण के कारण स्वयं भी कम घिसती हैं।

घूमनेवालों चक्कों अथवा पहियों के अबाध गति से चलते रहने के लिये यह आवश्यक है कि जिस धुरी पर वे घुमते हैं, वह घिसकर पतली न होने पाए और न गरम ही हो सके। साधारणत: इस कठिनाई से बचने के लिये स्नेहक (लुब्रिकेटिंग आयल, lubricating oil) का प्रयोग किया जाता रहा है, किंतु तेज चलनेवाली मशीनों के लिये केवल स्नेहक का उपयोग घिसाई एव रगड़ को रोकने में असफल सिद्ध होता है। इसी प्रकार जब किसी मशीन का एक भाग उसके दूसरे भाग पर बराबर घूमता है, तब वहाँ भी रगड़ तथा घिसाई से बचने का उपाय आवश्यक होता है। इस उपाय के लिये मशीनों एवं चक्कों के ऐसे बिंदुओं पर, जहाँ घिसाई एवं रगड़ का प्रभाव पड़ता है, गेंद अथवा बेलन के आकार के कुछ विशेष धातुओं से बने ठोस काम में लाए जाते हैं। ये उस मशीन अथवा चक्के के घूमने के साथ-साथ स्वयं भी अपनी जगह पर घूमते रहते हैं। इनपर मशीन की घिसाई का पूरा दबाव पड़ता है। इन ठोसों को बेयरिंग (bearing) कहा जाता है। ये बेयरिंग धातु के बने मजबूत खाँचे वा नाल (casing) में बैठा दिए जाते हैं, जिसमें स्वयं घूमते रहने पर भी ये अपनी नियत स्थिति से हटने न पाएँ।

बेयरिंग बनाने के लिये विशेष धातु एवं मिश्रधातुओं का प्रयोग किया जाता है, जो गति से घूमते रहने पर भी घर्षण एवं ताप के कारण न तो घिसने पाती हैं और न दबाव पड़ने पर टूट ही पाती हैं। घर्षण के प्रभाव से घिसाई को कम से कम करने के लिये कड़ी धातुओं का प्रयोग सदा उपयोगी नहीं होता, क्योंकि कड़ी धातुओं में रगड़ पड़ने पर ताप शीघ्र उत्पन्न होता है और मशीन के उस भाग पर, जो ऐसी कड़ी धातु की बेयरिंग पर चल रहा हो, घिसाई का हानिकारक प्रभाव पढ़ता है। इस कुप्रभाव को रोकने तथा घर्षणगुणांक (Coefficient of friction) को कम से कम रखने के लिये ऐसी मुलायम धातु एवं मिश्रधातुओं का प्रयोग किया जाता है जो अधिक से अधिक अघर्षणीय हों तथा साथ ही टिकाऊ भी हों।

प्रयोग की जाने वाली धातुएंम् तथा मिश्रातुएँ

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मशीनों की गति बढ़ने के साथ साथ नए प्रकार की बेयरिंग धातुओं एवं मिश्रधातुओं का आविष्कार होता जाता है। किसी विशेष गति एवं मशीन के उपयुक्त ही बेयरिंग धातुओं का चुनाव किया जाता है। इसके लिये मिश्रधातु बनाने में वंग, सीसा, ताँबा, लोहा, ऐंटिमनी, जस्ता, आर्सेनिक, बिस्मथ, कैडमियम, निकल, चाँदी एवं फास्फोरस जैसी धातुओं का न्यूनाधिक मात्रा में प्रयोग किया जाता है। नीचे कुछ ऐसी महत्वपूर्ण मिश्रधातुएँ दी गई हैं, जिनका प्रयोग अघर्षणीय धातु के रूप में बड़े पैमाने पर होता है :

वंग एवं सीसा मिश्रितधातु

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पिछली एक शताब्दी से अधिक समय से 'बैबिट मेटल' के नाम से वंग, ताँबा तथा ऐंटिमनी मिश्रित धातु का प्रयोग बेयरिंग बनाने में होता रहा है। १८३९ ई. में आइज़क बैबिट ने इस मिश्रधातु का आविष्कार बेयरिंग बनाने के लिये किया। इसमें लगभग ८९.३ प्रति शत वंग, ८.९ प्रति शत ऐंटिमनी, तथा १.८ प्रतिशत ताँबा रहता है। वंग स्वयं बहुत मुलायम धातु है, किंतु ताँबा तथा ऐंटिमनी के साथ मिलकर यह बहुत कड़ी मिश्रधातु बनाता है।

बैबिट मेटल में कुछ विशेष प्रकार की बेयरिंग बनाने के लिये वंग के स्थान पर सीसे का भी प्रयोग किया जाता है। बैबिट मैटल में जस्ता, लोहा, अथवा ऐल्यूमिनियम की उपस्थिति हानिकारक होती है। सीसा, ऐंटिमनी एवं ताँबे की मिश्रधातु में १५ प्रति शत तक ऐंटिमनी तथा २० प्रति शत तक वंग मिलाया जाता है। शेष सीसा रहता है। इस प्रकार से बनी मिश्रधातु बहुत कड़ी तथा अघर्षणी होती है।

आर्सेनिक, ऐंटिमनी तथा सीसे की मिश्रधातु का उपयोग, जिसमें आर्सेनिक की मात्रा १ से ३ प्रतिशत से अधिक नहीं रहती, ऊँचे ताप पर चलनेवाली मशीनों के बेयरिंग बनाने में किया जाता है।

कैडमियम मिश्रधातु

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ऊँचे दर्जे की तथा भारी मशीनों में चलनेवाली बेयरिंग बनाने के लिये कैडमियम तथा निकेल मिली हुई मिश्रधातु काम में लाई जाती है। इसमें १.३५ प्रति शत निकेल और ९८.६५ प्रतिशत कैडमियम, अथवा २.२५ प्रतिशत चाँदी, ०.२५ प्रति शत ताँबा तथा ९७.५० प्रतिशत कैडमियम का प्रयोग किया जाता है। इससे बने बेयरिंगों का उपयोग विमानों आदि में किया जाता है।

ऐल्यूमिनियम युक्त मिश्रधातु

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इस धातु से बनी बेयरिंग का उपयोग कुछ विशेष प्रकार की मशीनों में ही होता है, जहाँ मशीन की गति साधारणत: कम होती है तथा ताप १५०° सें. से ऊपर नहीं पहुँचता। ठंढे देशों में मोटर पुर्जों तथा ऐसी जगहों में लगाने के लिये जहाँ घर्षण का भारी दबाव पड़ता है, इसके बेयरिंग काम में लाए जाते हैं।

इन्हें भी देखें

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== श्रेणी:धातु]]