चकमक
चकमक बच्चों पर केन्द्रित हिन्दी की एक बाल पत्रिका है। है तो यह बच्चों के लिये, लेकिन बड़ों को भी पसंद आती है। [1]
विषय सामग्री
संपादित करेंकई वर्ष तक 'होशंगाबाद विज्ञान शिक्षण कार्यक्रम चलाकर देशभर में विज्ञान शिक्षण व नवाचार के क्षेत्र में प्रसिद्ध हुई संस्था 'एकलव्य' मासिक 'चकमक ' पत्रिका प्रकाशित कर रही है। अब तक 'चकमक ' के 343 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। कहने को तो यह आठवीं कक्षा तक के बच्चों की पत्रिका है पर इसकी रोचकता के कारण बड़े भी इसे चाव से पढ़ते हैं। इसमें कहानियाँ, कविताएँ, लेख, चित्र पहेली, बच्चों की रचनाएँ खास अंदाज में होती हैं।
बाल साहित्य के नाम पर अब तक हम उपदेशात्मक, राजा-रानियों और जानवरों की कहानियाँ पढ़ने के अभ्यस्त हो चुके हैं। 'चकमक ' बाल साहित्य का यह मिथक तोड़ती है। बच्चों का जीवन भी, जीवन का महत्वपूर्ण भाग है, इसमें सुख-दुःख, छल-कपट, योजनाएँ और समझ का तालमेल है। बाल अवस्था में भावनाओं का जटिल रूप पाया जाता है। एक बात जो बच्चे के जीवन को बड़ों से अलग करती है वह है उसका समाज, परिवेश व प्रकृति के प्रति वैज्ञानिक दृष्टिकोण जो हर बच्चे में होता है। इसीलिए तो बच्चा चीजों, नैतिक उपदेशों, घटनाओं को उल्ट-पलट कर देखता है और किसी भी बात को वैसे परम सत्य की तरह स्वीकार नहीं करता जैसे बड़े आमतौर पर कर लेते हैं। 'चकमक ' में ऐसी ही सामग्री होती है जो बाल मन की चंचलता को पकड़ने का प्रयास करती है।
गीतकार गुलजार जैसे बड़े नाम 'चकमक 'के साथ जुड़े हुए हैं।
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ "मेरी दुनिया मेरे सपने, शीर्षक: ऑनलाइन/ऑफलाइन हिन्दी मैग्ज़ीन का वृहद संग्रह।". मूल से 1 अगस्त 2013 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जुलाई 2013.
बाहरी कड़ियाँ
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