चन्द्रप्रभा वटी एक आयुर्वेदिक औषधि है[1]। यह कोलेस्ट्रॉल कम करने में लाभदायक होती है। "चन्द्रप्रभा वटी " आयुर्वेद शास्त्र का एक ऐसा अद्भुत एवं गुणकारी योग है जो आज के युग में स्त्री-पुरुष दोनों वर्ग के लिए, किसी भी आयु में उपयोगी एवं लाभकारी सिद्ध होता है। "रस तंत्रसार व् सिद्ध प्रयोग संग्रह " तथा "आयुर्वेद-सारसंग्रह " नामक सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रंथों में चन्द्रप्रभा वटी की बहुत प्रशंसा की गयी है और वैद्य जगत भी चन्द्रप्रभा वटी को बहुत गुणकारी व् विश्वसनीय योग मानता है[1].

चन्द्रप्रभा वटी बनाने की विधि: कपूर कचरी, वच, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, देवदारु, हल्दी, अतीस, दारुहल्दी, पीपलामूल, चित्रकमूल-छाल, धनिया, बड़ी हरड़, बहेड़ा, आँवला, चव्य, वायविडंग, गजपीपल, छोटी पीपल, सोंठ, कालीमिर्च, स्वर्ण माक्षिक, सज्जीखार, यवक्षार, सेंधा नमक, सोंचर नमक, साँभर लवण, छोटी इलायची के बीज, कबाबचीनी, गोखरू, और श्वेतचन्दन- प्रत्येक 3-3 ग्राम, निशोथ, दन्तीमूल, तेजपात, दालचीनी, बड़ी इलयाची, वंचलोचन- प्रत्येक 1-1 तोला, लौह भस्म 2 तोला, मिश्री 4 तोला, शुद्व शिलाजीत और शुद्ध गुग्गुलु 8 - 8 तोला लें। प्रथम गुग्गुलु को साफ़ करके लौह के इमामदस्ते में कूटे,जब गुग्गुलु नरम हो जाये तब उसमे शिलाजीत और भस्मे तथा अन्य द्रव्यों का कपड़छन चूर्ण मिला तीन दिन गिलोय के स्वरस में मर्दन कर, 3 -3 रत्ती की गोलियां बना ले - सि.यो.सं। [2]

संदर्भ संपादित करें

  1. http://www.biovatica.com/chandraprabha_vati.htm
  2. बैद्यनाथ (2018). आयुर्वेद सार संग्रह. श्री बैद्यनाथ आयुर्वेद भवन लिमिटेड. पृ॰ 509.