चन्द्रमुखी बसु
चन्द्रमुखी बोस (बांग्ला:চন্দ্রমুখী; 1860-1944), देहरादून की एक बंगाली ईसाई, जो तब संयुक्त प्रान्त आगरा व अवध के अन्तर्गत स्थित था, ब्रिटिश भारत की पहली दो महिला स्नातकों में से एक थी। 1882 में, कादम्बिनी गांगुली के साथ, उन्होंने भारत के कलकत्ता विश्वविद्यालय से कला में स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी औपचारिक डिग्री 1883 में विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह के दौरान सौंपी गई थी।
चन्द्रमुखी बोस | |
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जन्म |
1860 देहरादून, ब्रिटिश भारत |
मौत |
1944 देहरादून, ब्रिटिश भारत |
शिक्षा की जगह |
डफ कॉलेज कलकत्ता विश्वविद्यालय |
पेशा | शिक्षाविद् |
जीवनसाथी | पंडित ईश्वरानंद ममगाईं |
प्रारंभिक जीवन
संपादित करेंउनके पिता का नाम भुवन मोहन बोस था। उन्होंने 1880 में देहरादून नेटिव क्रिश्चियन स्कूल से पहली कला की परीक्षा उत्तीर्ण की।[1] उस समय बेथ्यून स्कूल, जिसमें वह प्रवेश करना चाहती थी; गैर-हिंदू लड़कियों को स्वीकार नहीं किया, और इस तरह उन्हें रेवरेंड अलेक्जेंडर डफ के फ्री चर्च इंस्टीट्यूशन (अब स्कॉटिश चर्च कॉलेज) में कला संकाय के स्तर पर भर्ती होना पड़ा।[2] 1876 में, लिंग के प्रति भेदभावपूर्ण आधिकारिक रुख के कारण, उन्हें कला संकाय परीक्षा के लिए बैठने की विशेष अनुमति दी गई थी। उस वर्ष परीक्षा में शामिल होने वाली एकमात्र लड़की के रूप में, उन्हें प्रथम स्थान प्राप्त हुआ, हालांकि विश्वविद्यालय को उनके परिणाम प्रकाशित करने से पूर्व कई बैठकों की श्रृंखला आयोजित करनी पड़ी थी। कादम्बिनी गांगुली से पहले, चंद्रमुखी बोस ने 1876 में अपनी प्रवेश परीक्षा पहले ही पास कर दी थी, हालाँकि विश्वविद्यालय ने उन्हें सफल उम्मीदवार के रूप में भर्ती करने से मना कर दिया था। केवल 1878 में विश्वविद्यालय के बदले हुए संकल्प के कारण उन्हें आगे की पढ़ाई करने की अनुमति मिल गई।[3][4] जब उन्होंने एफ.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की, तो वह कादम्बिनी गांगुली के साथ डिग्री पाठ्यक्रम के लिए बेथ्यून कॉलेज चली गई। अपनी स्नातक स्तर की पढ़ाई के बाद, वह कलकत्ता विश्वविद्यालय से एमए और 1884 में ब्रिटिश साम्राज्य में स्नातक पास करने वाली एकमात्र (और पहली) महिला थीं।[1] उन्होंने जब एम.ए. की परिक्षा पास की तब ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने उनका सम्मान किया था, और उन्हें "कैसेल्स इलेस्ट्रेटेड शेक्सपियर" की प्रति भेंट की थी।[5]
बाद का जीवन
संपादित करेंउन्होंने 1886 में बेथ्यून कॉलेज में प्राध्यापक के रूप में अपने करियर की शुरूआत की (वह अभी भी बेथ्यून स्कूल का हिस्सा था)। कॉलेज 1888 में स्कूल से अलग हो गया था।[1] आगे चलकर वे इस कॉलेज की प्रिंसिपल बन गई, इस प्रकार वह दक्षिण एशिया में एक स्नातक शैक्षणिक प्रतिष्ठान की पहली महिला प्रमुख बन गई।
खराब स्वास्थ्य के कारण 1891 में उन्होंने सेवानिवृत्त ले ली और शेष जीवन देहरादून में बिताया। 1944 में उनका देहरादून में निधन हो गया।[1]
बहनें
संपादित करेंउनकी दो बहनें, बिधुमुखी और बिंदूबासिनी भी प्रसिद्ध थीं। उनके ही नक्शे कदम में चलते हुए बिधुमुखी बोस और वर्जीनिया मैरी मित्रा (नंदी) 1890 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से स्नातक करने वाली शुरुआती महिलाओं में से एक थीं। इसके बाद, 1891 में बिंदूबासिनी बोस ने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज से स्नातक किया।[6]
सन्दर्भ
संपादित करें- ↑ अ आ इ ई Sengupta, Subodh Chandra and Bose, Anjali (editors), 1976/1998, Sansad Bangali Charitabhidhan (Biographical dictionary) Vol I, साँचा:Bn icon, p152, ISBN 81-85626-65-0
- ↑ "Glimpses of college history" (PDF). www.scottishchurch.ac.in. मूल (PDF) से 22 दिसंबर 2009 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2009-03-10.
- ↑ Manna, Mausumi, (2008) Women's Education through Co-Education: the Pioneering College in 175th Year Commemoration Volume. Scottish Church College, page 108
- ↑ "Teaching girls to take on an unequal society". The Telegraph, Calcutta. The Telegraph, 2 April 2013. मूल से 4 मार्च 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2013-04-02.
- ↑ Rachna, Bhola 'Yaminee'. ईश्वर चंद्र विद्यासागर. प्रभात. पृ॰ ११७. मूल से 22 फ़रवरी 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 22 फ़रवरी 2019.
- ↑ Bose, Anjali (editor), Sansad Bangali Charitabhidhan (Biographical dictionary) Vol II, 1996/2004,साँचा:Bn icon, p215, 219, ISBN 81-86806-99-7