चन्नपटना खिलौने लकड़ी के खिलौने हे जो कर्णाटक के चन्नापटना छोटे गाँव में बनाया जाता है। यह पारम्परिक कला भारत देश में नहीं पर दुनियाभर में मशहूर हैं[1]। ये खिलौने अपनी रंगीन सजावट, अद्भुत शिल्पकारिता और सुन्दरता के लिया प्रसिद्ध है।  इन खिलौनों को जियोग्राफिकल इंडिकेटर (जीआई) का प्रतिष्ठा विश्व व्यापार संगठन से मिला है, जो अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कानूनों में उनकी विशिष्टता और अखंडता को सुरक्षित करता है[2]। इसी कारण के लिया चन्नपटना गाँव को कर्नाटक का "खिलौना शहर" बुलाया जाता है। चन्नपटना बैंगलोर और मैसूर शहर के बीच एक छोटा सा गाँव है, और शहर के ४००० कारीगरों इन खिलौनों को बेचकर अपनी कमाई करते है[3]।  

चन्नापटना में बनी खिलौना सीटियां


 
चन्नापटना खिलौनों के संरक्षक टीपू सुल्तान

चन्नपटना खिलौनों की उद्गम टीपू सुल्तान के शासन से था, जो न केवल एक राजा थे बल्कि कला के संरक्षक भी थे[4]। टीपू सुल्तान मैसूर राज्य का शासक था जिसका भी एक हिस्सा चन्नपटना था।  ये लकड़ी के खिलौने शुरू में मैसूर राज्य में दशहरा उत्सव के दौरान उपहार के तरह दिया जाते था। टीपू सुल्तान ने इन लकड़ी के खिलौनों में संभावना देखी, और उन्होंने इस गांव के निवासियों को खिलौना बनाना और लाह करने के लिए फ़ारसी कारीगरों को आमंत्रित किया[5]। उनके कोशिशों से चन्नापटना भारत का खिलौना केंद्र बन गया, जिसे अब इस नाम से जाना जाता है।

चन्नपटना खिलौनों के विकास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं बावस मियान, जिन्हें अक्सर "चन्नापट्ना खिलौनों के पिता" के रूप में जाना जाता है[6]। उन्होंने इस शिल्प को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जापानी गुड़िया बनाने की तकनीकों को पेश करके, जिसने उत्पादन प्रक्रियाओं को सरल बनाया और दक्षता में सुधार किया। उनके योगदान ने सुनिश्चित किया कि यह कला न केवल जीवित रहे, बल्कि पीढ़ियों के माध्यम से फल-फूल सके।


संस्कृति पर प्रभाव

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चन्नपटना के खिलौने

चन्नपटना में पहले जो खिलौने बनाए गए थे, वे  हाथी दन्त के लकड़ी से बनाए जाते थे, जिसे कन्नड़ में "आल मरा" कहा जाता है। समय के साथ, चंदन, गुलाब की लकड़ी और रबड़ जैसे कई लकड़ियों का भी उपयोग किया जाने लगा। इन खिलौनों को बनाने में जो कारीगरी शामिल होती थी, वह मुश्किल होती थी और इसमें उच्च कौशल की इस्तेमाल होती थी, जिससे जटिल डिज़ाइन तैयार होते थे जो बच्चों और बूढो दोनों को आकर्षित करते थे।

चन्नपटना के खिलौने टीपू सुल्तान के सहायता से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी लोकप्रिय हो गया। ​​उन्नीसवीं शताब्दी में यह खिलौना इंग्लैंड, फ्रांस और जर्मनी जैसे देशो में निर्यात किया जाने लगा और वह उन देशो के अमीर परिवारों में अभिलषित बन गया[7]। चन्नपटना के खिलौने उत्कृष्टता और गुणवत्ता का प्रमाण है जिससे चन्नपटना भारत की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न अंग बन गया।


चुनौतियां

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चन्नपटना खिलौना अपनी विरासत के बावजूद, बहुत सारे चुनौतियों का सामना करना पड़ा। चीन से सस्ते प्लास्टिक खिलौनों की आयत ने पारंपरिक शिल्प के लिए एक बड़ा खतरा पैदा किया है। कई कारीगर को इस प्रतियोगिता से बहुत सारे कठिनता झेलना पड़ा जिससे उनके पैसो की बर्बाद हो गयी। पर इस पारंपरिक शिल्प को पुनर्जीवित करने के लिए बहुत सरे पहलों की शुरुआत की गई है।

कर्नाटक हस्तशिल्प विकास निगम (के.हेच.डी.सी) ने कारीगरों का समर्थन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, कारीगरों को नए ग्राहकों की ज़रूरतों से निपटने में मदद करता है[8]। इसके साथ, राज्य और अंतरराष्ट्रीय निकायों से वित्तीय सहायता ने कारीगरों को पारंपरिक तकनीकों को संरक्षित करते हुए नवाचार करने में मदद की है। आधुनिक मशीनरी से लैस एक लाहकला शिल्प परिसर की स्थापना ने भी उत्पादन को सुगम बनाया है।

विनिर्माण प्रक्रिया

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चन्नापटना खिलौनों का निर्माण

इसी तरह से एक लकड़ी के टुकड़े को चन्नापटना खिलौनों में बदला जाता है[9]

  1. लकड़ी को चुनना: सबसे पहले आले मारा लकड़ी का एक टुकड़ा चुना जाता है जो १ से ३ महीने पुराना होता है ताकि यह टिकाऊ और काम करने योग्य हो
  2. काटना और नक्काशी: फिर लकड़ी को नक्काशीदार और आकार देने के लिए खराद का उपयोग किया जाता है। कारीगर मैनुअल और इलेक्ट्रॉनिक दोनों प्रकार के खराद का उपयोग करते हैं।
  3. रंग डालना: फिर कारीगर अपने हाथों से खिलौनों पर रंग लगाता है। कारीगर फलों के रंगों और मसालों जैसे जैविक रंगों का उपयोग करते हैं।
  4. लाह डालना: इसके बाद कारीगर इस पर लाख की परत लगाता है जिससे यह चमकदार हो जाता है

निष्कर्ष

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चन्नापटना खिलौने केवल खेलने की चीजें नहीं हैं; वे सदियों से विकसित हुई एक भारतीय सांस्कृति का एक बहुत बड़ा हिस्सा है। टीपू सुल्तान के संरक्षण में उनकी उत्पत्ति से लेकर उनके आधुनिक समय के पुनस्थान के लिया प्रयासों तक, ये लकड़ी के खिलौने भारत की कलात्मक भावना और शिल्प कला का प्रमाण है। जैसे-जैसे वे अपने पारंपरिक सार को बनाए रखते हुए समकालीन मांगों के अनुकूल होते रहते हैं, चन्नापटना खिलौने बचपन की यादों और सांस्कृतिक पहचान का एक पसंदीदा हिस्सा है।  

  1. Tandon, Aditi (2024-01-18). "Channapatna's traditional artisans toy with modernity". Mongabay-India (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  2. digitalgi_user (2024-07-24). "Channapatna Toys and Dolls". Digital GI (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  3. Tandon, Aditi (2024-01-18). "Channapatna's traditional artisans toy with modernity". Mongabay-India (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  4. "Channapatna Toys". Vajiram & Ravi (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  5. "Channapatna Toys and Tipu Sultan's Persian Connection". Sahapedia (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  6. Subramanian, Archana (2022-01-24). "Toy story". The Hindu (अंग्रेज़ी में). आइ॰एस॰एस॰एन॰ 0971-751X. अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  7. Admin, Craftdeals in (2023-01-01). "History Of Channapatna Toys". Craftdeals.in (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  8. "Cauvery Handicrafts (KSHDCL)". www.cauveryhandicrafts.net. अभिगमन तिथि 2024-12-15.
  9. Neha (2022-08-31). "A visit to Channapatna Toys Factory - natural, wooden, safe, beautiful - proudly Indian toys". The Revolving Compass (अंग्रेज़ी में). अभिगमन तिथि 2024-12-15.