चमू कृष्ण शास्त्री, संस्कृत भारती के सहसंस्थापक हैं। उन्होंने समस्त विश्व में संस्कृतभाषा के पुनर्जागरण के लिये संस्कृत भारती संस्था की स्थापना की। भारत सरकार ने उन्हें जनवरी २०१७ में पद्मश्री से सम्मानित किया।

चमु कृष्ण शास्त्री
जन्म 23 जनवरी 1956 (1956-01-23) (आयु 68)
केदिला, ब्न्तवाल तालुक, दक्षिण कन्नड जिला, कर्नाटक
राष्ट्रीयता भारतीय
नागरिकता भरतीय
शिक्षा की जगह राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ, तिरुपति
पेशा संस्कृत भषा के प्रचारक-प्रसारक
कार्यकाल 1981–अब तक
पदवी
प्रसिद्धि का कारण संस्कृत पुनुत्थान
बोर्ड सदस्यता
जीवनसाथी सरिता शास्त्री[1]
बच्चे चमु शिव शास्त्री[2]
पुरस्कार पद्मश्री (2017)

श्रीचमूकृष्णशास्त्री वैश्विक समुदाय में भारत की सांस्कृतिक राशि की प्रतीक संस्कृत भाषा के माध्यम से भारतीय सभ्यता को पुनः प्रतिष्ठित करनेवाले एक उत्साही शिक्षाविद् है। इन का स्पष्ट मानना है कि संस्कृत विश्व में सामाजिक समन्वय स्थापित करने की अद्भुत कुंजिका है। संस्कृत शिक्षण को जीवन्त सम्प्रेषण की भाषा का रूप देने वाले श्री चमूकृष्णशास्त्री ने लगभग तीन दशक पूर्व अपने कुछ साथियों के साथ संस्कृत को दैनिक व्यवहार की भाषा के रूप में ढालने का स्वप्न देखा था। और, इसी स्वप्न को आकार देने हेतु ‘संस्कृतभारती’ संस्था का गठन किया था। आज यह संस्था विश्व व्यापी संस्था के रूप में विश्व को संस्कृत साहित्य में व्याप्त उदात्त वैचारिक जल से सिंचित कर रही है। इस की शाखाएं अमरीका, कनाडा, यू.के., आस्ट्रेलिया एवं पूर्वी एशिया तक व्याप्त हैं।

श्री चमूकृष्णशास्त्री ने संस्कृतभारती में सम्भाषणात्मक संस्कृत से सम्बद्ध दश दिवसीय संस्कृत शिबिरों को प्रारम्भ कर संस्कृत शिबिरों को एक नई दिशा प्रदान की। ये संस्कृत शिबिर अब तक प्रायः ९० लाख लोगों को संस्कृत सम्भाषण में दक्ष कर चुके हैं। इन के प्रयासों ने अनेकों विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों में सम्भाषणात्मक संस्कृत-शिक्षण सम्बन्धी पाठ्यक्रमों को प्रारम्भ करने की प्रेरणा प्रदान की है। ‘संस्कृत-गृह’ एवं ‘मातृभाषा के रूप में संस्कृतभाषी बच्चों’ सम्बन्धी योजना इनकी अनूठी योजना है। इनके प्रयासों से देश के विभिन्न राज्यों में शताधिक कार्यकर्ता संस्कृत प्रचार-प्रसार के कार्य में अहर्निश संलग्न हैं। संस्कृतभारती के विभिन्न पाठ्यक्रमों के द्वारा सहस्राधिक लोग संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन में संलग्न हैं। अमरीका में ‘विदेशीभाषा के रूप में चलनेवाला संस्कृत का पाठ्यक्रम’ इन्हीं के प्रयासों का परिणाम है।भारत की भाषा।

इन्होंने संस्कृत सम्बन्धी संस्कृत में १३ पुस्तकों की रचना की है। इनके द्वारा प्रारम्भ की गई ‘सरस्वतीयोजना’ के अन्तर्गत अनेकों देशी एवं विदेशी भाषाओं की पुस्तकें संस्कृत में अनूदित की गईं। युवापीढ़ी को लेखन के प्रति प्रेरित करने हेतु इनके द्वारा आयोजित किया गया ‘विश्वसंस्कृतपुस्तकमेला’ एवं ‘संस्कृतसाहित्योत्सव’ अपने-आप में एक अनूठे एवं अतिउत्साह पूर्ण प्रयास थे।

संस्कृत क्षेत्र में कृत विभिन्न कार्यों के कारण ये ‘राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान’ सहित अनेकों विश्वविद्यालयों की विभिन्न समितियों के सदस्य हैं। भारत सरकार द्वारा गठित संस्कृत सम्बन्धी समिति के द्वारा तैयार किए गए ‘Road Map for the Development of Sanskrit- Ten Tear Perspective Plan’ (2016)[3] के ये अभिन्न सदस्य रहे हैं।

श्री चमू कृष्ण शास्त्री संस्कृत में मन्त्रमुग्ध, प्रेरित एवं उत्तेजित करने वाले वक्ता व लेखक हैं। वे श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धान्तों के अनुपालन में विश्वास करने वाले निष्कामी कार्यकर्ता हैं। श्री चमु कृष्ण शास्त्री एक प्रेरणादायी व्यक्तित्व के प्रतीक हैं।

  • ज्ञाने धर्मः उत प्रयोगे
  • लाभः उत हानिः
  • निमित्तमात्रम्
  • निमित्तमात्रम् (हिन्दी)
  • परिष्कारः
  • परिवर्तनम्
  • सावधानाः स्याम
  • संस्कृतभारती
  • संस्कृतम् swat विश्लेषणम्
  • संस्करणम्
  • सप्तदशी
  • उत्तिष्ठ ! मा स्वप्त !!
  • वैचारिकम्
  1. Subrahmanya, Sudhee (10 February 2017). "With a vision for Sanskrit". The Hindu. अभिगमन तिथि 21 December 2018.
  2. सन्दर्भ त्रुटि: <ref> का गलत प्रयोग; classiccase नाम के संदर्भ में जानकारी नहीं है।
  3. "संग्रहीत प्रति" (PDF). मूल (PDF) से 3 दिसंबर 2016 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 29 जनवरी 2017.

बाहरी कड़ियाँ

संपादित करें