चीन-फ्रांसीसी युद्ध (पारंपरिक चीनी: 中法戰爭), जिसे टोंकिन युद्ध और टोंक्विन युद्ध के रूप में भी जाना जाता है[1], चीन और फ्रांस के बीच अगस्त 1884 से अप्रैल 1885 तक लड़ा जाने वाला एक सीमित संघर्ष था। इसमें युद्ध की कोई घोषणा नहीं की गई थी और सैन्य रूप से इसका कोई भी स्पष्ट परिणाम नहीं था। चीनी सेनाओं ने अपने अन्य उन्नीसवीं सदी के युद्धों की तुलना में इस युद्ध में बेहतर प्रदर्शन किया था और युद्ध भूमि से फ्रांसीसी सेनाओं को वापसी के लिए बाध्ये किया। हालाँकि इस युद्ध का एक परिणाम यह हुआ कि फ्रांस ने टोंकिन (उत्तरी वियतनाम) से चीन के नियंत्रण को समाप्त कर दिया। साथ ही इस युद्ध ने चीनी सरकार पर महारानी डोवेगर सिक्सी के प्रभुत्व को मजबूत किया, लेकिन पेरिस में प्रधान मंत्री जूल्स फेरी की सरकार को गिरा दिया। युद्ध का अंत टिएंटसिन की संधि से हुआ। दोनों ही पक्ष इस संधि से काफी संतुष्ट थे।[2] लॉयड ईस्टमैन के अनुसार, "किसी भी देश को इस युद्ध में ज़्यादा राजनयिक लाभ नहीं मिला।"[3]

परिणाम संपादित करें

इस युद्ध ने पहले ही फ्रांस के प्रधान मंत्री फेरी के करियर को नष्ट कर दिया था, और उनके उत्तराधिकारी हेनरी ब्रिसन ने भी दिसंबर 1885 के प्रतिकूल 'टोंकिन डिबेट' के मद्देनजर इस्तीफा दे दिया क्यूंकि इस विवाद में क्लेमेंस्यू और अन्य साम्राज्वादी विरोधियों ने टोनकिन से फ्रांसीसी वापसी हासिल करने में सफलता प्राप्त कर ली थी।[4]

चीन में इस युद्ध ने एक मजबूत राष्ट्रवादी आंदोलन के उदय को तेज कर दिया, और यह क्विंग साम्राज्य के पतन में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। 23 अगस्त 1884 को फ़ुज़ियान बेड़े का नुकसान विशेष रूप से क्विंग साम्राज्य और चीन के लिए अपमानजनक माना जाता था। इस घटना ने चीनी सेनाओं और क्विंग राष्ट्रीय रक्षा प्रणाली में खामियों का भी प्रदर्शन किया। इतिहासकारों ने अनुसार 19वीं शताब्दी में क्विंग राजवंश की विदेशी साम्राज्यवाद के सामने कमजोरी का मुख्य कारण समुद्री नौसैनिक की कमजोरी था।

सन्दर्भ संपादित करें

  1. See, for example, Anonymous, "Named To Be Rear Admiral: Eventful and Varied Career of 'Sailor Joe' Skerrett," The New York Times, April 19, 1894.
  2. Twitchett, Cambridge History of China, xi. 251; Chere, 188–90.
  3. Eastman, p 201.
  4. Huard, 1,113–74; Thomazi, Conquête, 277–82