चेरियल स्क्रॉल चित्रकला

चेरियल स्क्रॉल चित्रकला

परिचय चेरियल स्क्रॉल पेंटिंग एक विशेष और ऐतिहासिक कला शैली है जो भारत के तेलंगाना राज्य से जुड़ी हुई है, जिसे यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में मान्यता दी गई है। यह कला शैली एक परंपरागत विधि है जो कहानियां सुनाने के लिए सदियों से स्थानीय समुदायों में प्रचलित है और भारतीय सांस्कृतिक विरासत की महत्वपूर्ण पहचान को प्रस्तुत करती है।

इतिहास

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि चेरियल स्क्रॉल पेंटिंग का इतिहास प्राचीन समय से जुड़ा हुआ है, जो मध्यकालीन दक्षिण भारतीय संस्कृति की सांस्कृतिक उन्नति को दर्शाता है। इस कला शैली की उत्पत्ति काकतीय राजवंश (11वीं-14वीं शताब्दी) के दौरान हुई थी, जब कला और संस्कृति का अभूतपूर्व विकास हुआ था।

उत्पत्ति और विकास

कलाकारी की उत्पत्ति और विकासकुंबकोणीयकलाकारोंनेइस कला को एक अनोखी प्रकार का रूप दिया। मुख्य रूप से, इन कलाकारों नेसफर जिनका धार्मिक यात्रा की प्रथा से संबंध था, इस कला को उनके घरेलू कैरीयर के रूप में संजीव किया, जिन्होंने गांव-गांव में घुमकर अपने किस्से सुनाए और चित्रों के जरिए लोगों को मनोरंजन और शिक्षा दी। तत्व और विशेषताएं चित्र कलाकी तकनीकी विशेषताएं चित्रकला की सामग्री

फैब्रिक: स्टेनिड चित्रकला के लिए विशेष प्रकार की फैब्रिक तैयार की जाती है। इसे मुख्य रूप से अंगूर के छिलके, धान के आटे और मिट्टी के मिश्रण से बनाया जाता है। रंग: प्राकृतिक रंगों का उपयोग एक महत्वपूर्ण वैशिष्ट्य है:

द संगारंगी रंग: गेरू या लाल मिट्टी से वर्द्धरंग: पत्तों और उगाई हुई फसलों से निकाला जाता हैं पिएलो रंग: हल्दी या पीले फूलों से आसमानी रंग: इंडिगो पौधे से काला रंग: जलाए गए नारियल के खोल से

चित्रण तकनीक कॉम्पार्टमेंटलाइजेशन: छवियों को विभिन्न सेगमेंट्स में वितरित किया जाता है, जहाँ प्रत्येक सेगमेंट एक विशेष घटना या कहानी को प्रस्तुत करता है। विस्तृत अलंकरण: पात्रों के वस्त्र, गहने और पृष्ठभूमि में अत्यधिक विस्तृत वर्णन दिखाए जाते हैं। सरल रेखाएँ: कलाकार सीधी और स्पष्ट रेखाओं का उपयोग करते हैं।

विषय-वस्तु चेरियल स्क्रॉल चित्रकला का प्रमुख विषय:

पौराणिक कथाएँ (रामायण, महाभारत) सांगीतिक कथाएँ ऐतिहासिक घटनाएँ धार्मिक तीर्थयात्राएं रोजमर्रा के जीवन की दृश्य

सांस्कृतिक महत्व कहानी सुनाने की परंपरा चेरियल स्क्रॉल चित्रकला एक जीवंत कथा-रचना माध्यम था। पारंपरिक कहानीकार (किस्सा खान) इन चित्रों का उपयोग करके:

व्यावहारिक मनोरंजन प्रदान करते नैतिक शिक्षा प्रदान करते समाजिक मूल्यों को प्रस्तुत करते ऐतिहासिक घटनाओं की संरक्षा करते

सामाजिक महत्व समुदाय में एकता और संस्कृति की रक्षा शिक्षा का महत्वपूर्ण तरीका मौखिक परंपराओं का दस्तावेजीकरण

रक्षाप्राय स्थिति चुनौतियाँ

मॉडर्नाइजेशन: डिजिटल मनोरंजन और संचार जरियों से पारंपरिक कला शैलियों में कमी आर्थिक असुरक्षा: कलाकारों को पर्याप्त आय मिलना नहीं युवा पीढ़ी का इंटरेस्ट: पारंपरिक कला में कम रुचि

रक्षाप्रयास

भारत सरकार द्वारा जीआई (भौगोलिक संकेत) टैग राष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान कला केंद्रों और संग्रहालयों में प्रदर्शन कला प्रशिक्षण कार्यक्रम

प्रसिद्ध कलाकार वर्तमान पीढ़ी के महत्वपूर्ण कलाकार

श्री मल्लेश्वर राव

पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त चेरियल कला के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण योगदान कई अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनों में भागीदारी


श्रीमती सुधा राव

महिला कलाकारों के लिए एक आइकन युवा पीढ़ी को कला सिखाने में सक्रिय

अंतर्राष्ट्रीय मान्यता यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की मान्यता (2018), अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालयों में प्रदर्शन

निष्कर्ष

चेरियल स्क्रॉल चित्रकला एक जीवंत सांस्कृतिक अभिव्यक्ति है जो भारत की समृद्ध कहानी-कहन परंपरा को दर्शाती है. यह सिर्फ एक कला रूप नहीं है। यह कला एक विरासत है और एक जीवंत संस्कृति का प्रतीक है जो निरंतर विकसित हो रही है और संरक्षित हो रही है।

सामग्री राव, एस. (2010). "भारतीय लोक कला: एक व्यापक अध्ययन" नारायण, आर. (2015). "तेलंगाना की सांस्कृतिक विरासत" मिश्रा, पी. (2018). "चेरियल स्क्रॉल: एक जीवंत कला रूप" श्रीनिवास, के. (2020). "दक्षिण भारत की पारंपरिक कला शैलियाँ" कुमार, वी. (2022). "अमूर्त सांस्कृतिक विरासत: एक समग्र अध्ययन"