चेरुश्शेरि नंपूतिरि मलयालम कवि। ये मलाबार में पैदा हुए थे तथा उदयवर्मन् के दरबार में रहते थे जो 15वीं शताब्दी में एक छोटे से राज्य कोलत्तुनाड पर शासन करते थे। ये कृष्णगाथा के लेखक हैं। कविता में श्रीकृष्ण के विषय की उन कहानियों का वर्णन है जिनका संबंध उनके जन्म से लेकर अंत तक है। महाकाव्य की समस्त 47 कहानियाँ श्रीमद्महाभागवतम् से ली गई है। चेरुश्शेरि ने सभी रसों के विकास में समान रूप से ध्यान दिया है। महाकाव्य अपने माधुर्य एवं प्रसाद गुण के लिए प्रसिद्ध है। श्रीकृष्ण के बाल्यकाल का विस्तृत निरूपण, रासक्रीड़ा एवं ऋतु इत्यादि के वर्णन पूर्णरूपेण लोकप्रिय है। नंपूतिरि होने के कारण विनोद स्वाभाविक था और वह अनेक उद्धरणों में व्यक्त है। कहीं कहीं उनमें मृदु व्यंग्य भी है। चेरुश्शेरि ने अपने पूर्ववर्ती लेखकों द्वारा प्रयुत्त संस्कृत एवं तमिल छंदों का बहिष्कार किया है। और अपने महाकाव्य को गाथावृक्त में लिखा है जिसे "मंजरि" कहते हैं।

कृष्णगाथा प्रथम महाकाव्य है जिसे विशुद्ध एवं सरल मलयालम में लिखा गया है। कवि कविता की भाषा को बोलचाल की भाषा के निकट लाया है। सबसे प्रथम उन्होंने ही यह प्रदर्शित किया कि मलयालम भाषा में मानव भावनाओं की सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों को व्यक्त करने की क्षमता है। उनका काव्य अलंकारों से परिपूर्ण है और वह अपने छंदों के लिए विशेष रूप से प्रशंसा के पात्र हैं।

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