चोट
जीवित शरीर को किसी भी तरीके का नुकसान चोट कहलाता है।
आई पी सी (IPC) के सेक्शन 44 में कहा गया है कि, "किसी भी व्यक्ति को शरीर, मन, प्रतिष्ठा या संपत्ति में किसी भी वजह से अवैध रूप से किया गया नुकसान चोट कहलाता है।"
प्रमुख आघात में लंबे समय तक विकलांगता या मौत का कारण बनने की क्षमता होती है।
चोट के प्रकार
संपादित करेंमुख्य रूप से चोट दो प्रकार कि होती हैं।
कुंद बल चोट(blunt force injury)
संपादित करेंवह चोट जो कुंद बल लगाने से की जाए कुंद बल चोट कहलाती है।
नुकीली बल चोट(sharp force injury)
संपादित करेंवह चोट जो किसी नुकीले पदार्थ जैसे कि चाक़ू के इस्तेमाल से लगे उसे नुकीली बल चोट कहा जाता है।
कुंद बल चोट(blunt force injury)
संपादित करें- घर्षण(Abrasion)
रपट बल, संपीड़न या दबाव के कारण सतही त्वचा को चोट लगना घर्षण कहलाता है। उदहारण: खरोंच।
- नील(Contusion)
जब टूटी हुई रक्त वाहिकाओं के कारण त्वचा या नरम ऊतक में खून बह जाता है तब शरीर के उस भाग पर नील आ जाता है।
- पंगु बनना(Laceration)
जब कुंद बल चोट के कारण ऊतक(tissue) कट जाते हैं तो उसे पंगु बनना कहते है। यह चोट दिखने में ऐसी लगती है जैसे किसी नुकीली वस्तु से मारी गयी हो। ==
नुकीली बल चोट(sharp force injury)
संपादित करेंनुकीली वस्तू द्वारा लगाई गयी चोट नुकीली बक चोट कहलाती है।
- छिन्न घाव(Incised wound)
जब नुकीला पदार्थ शरीर के अंदर घुस कर, शरीर में एक तरफा छेद कर देता है तब उसे छिन्न घाव कहते हैं। हथियार की धार कि तुलना में इस प्रकार के घाव का आकार हमेशा बड़ा होता है। यह घाव तकला के आकार का होता है। यह घाव पंगु जैसा दीखता है।
- पंक्चर घाव(Punctured wound)
जब नुकीला हथियार शरीर में एक तरफा घाव कर देता है तब वह पंक्चर घाव कहलाता है। जहां से हथियार शरीर के अन्दर गया है उस जगह पर घाव की लम्बाई, हथियार की चोड़ाई के बराबर होती है।
- छिद्रित घाव(perforated wound)
जब हथियार शरीर के आर पार जाके शरीर कों छिद्रित कर देता है उस प्रकार का घाव छिद्रित घाव कहलाता है। इस प्रकार के घाव में शरीर में हमे दो घाव दिखाई देते हैं। एक घाव वह जहां से हथियार शरीर के अन्दर गया, तथा एक घाव वह जहां से हथियार शरीर से बहार निकला। प्रवेश घाव बहारी घाव कि तुलना में बड़ा दिखाई देता है।
चोट को प्रभावित करने वाले कारक
संपादित करें- उम्र
- सेक्स(sex)
- मांसपेशियों की व्यवस्था
- बीमारी
सन्दर्भ
संपादित करेंMathiharan, K. and Patnik, A.K., Modi’s medical jurisprudence and toxicology, 23rd edition (2006), Lexis Nexis, New Delhi