चौदहवाँ लुई (5 सितम्बर 1638 – 1 सितम्बर 1715, फ़्रांसिसी भाषा:Louis Dieudonné) फ़्रांस का राजा था जिसने 1643 से आजीवन फ्रांस पर शासन किया। उसका शासन 72 वर्ष एवं 110 दिनों का था जो यूरोप के इतिहास में किसी भी राजा के शासनकाल से बड़ा है।

चौदहवाँ लुई
1701 का चित्र
फ्रांस और नवरे के राजा
शासनावधि14 मई 1643 – 1 सितंबर 1715
राज्याभिषेक7 जून 1654
रिम्स कैथेड्रल
पूर्ववर्तीफ्रांस के लुई तेरहवें
उत्तरवर्तीफ्रांस के लुई पंद्रहवें
रीजेंटस्पेन की ऐन
जन्म5 सितंबर 1638
सेंट-जर्मेन-एन-ले, फ्रांस का राज्य
निधन1 सितम्बर 1715(1715-09-01) (उम्र 76 वर्ष)
वर्साय, फ्रांस का राज्य
समाधि
पत्नीस्पेन की मारिया थेरेसा

विवाह 1660; मृत्यु 1683

फ्रांकोइस डी औबिग्ने, मेनटेनन की मार्कीज़ (गुप्त)

विवाह 1683
संतानलुई, ग्रैंड दौफिन

फ्रांस की मैरी-थेरेसी

फिलिप-चार्ल्स, अंजु के ड्यूक
घरानाकैपेटियन राजवंश
पिताफ्रांस के लुई तेरहवें
मातास्पेन की ऐन
धर्मरोमन कैथोलिक
हस्ताक्षरचौदहवाँ लुई के हस्ताक्षर

लुई ने अपने मुख्यमंत्री कार्डिनल माजरीन की मृत्यु के बाद 1661 में फ्रांस पे अपने व्यक्तिगत शासन की शुरुआत की। राजाओं के दैवीय अधिकार की अवधारणा का पालन करते हुए, लुई ने राजधानी से शासित एक केंद्रीकृत राज्य बनाने के अपने पूर्ववर्तियों के कार्य को जारी रखा। लुई के लंबे शासनकाल के दौरान, फ्रांस प्रमुख यूरोपीय शक्ति के रूप में उभरा और नियमित रूप से अपनी सैन्य ताकत का उपयोग किया।

प्रारंभिक वर्ष

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चौदहवें लुई का जन्म 5 सितंबर 1638 को फ़्रांस के राजा, लुई तेहरवें और उनकी पत्नी एवं रानी ऑस्ट्रिया की एनी के यहाँ हुआ था। उन्हें फ्रांसीसी उत्तराधिकारियों के पारंपरिक शीर्षक 'डॉफिन' से नवाजा गया था।[1] उनके जन्म के समय, उनके माता-पिता की शादी को 23 साल हो गए थे। उनकी माँ ने 1619 और 1631 के बीच चार मृत शिशु को जन्म दिया था। अग्रणी समकालीनों ने उन्हें एक दिव्य उपहार और उनके जन्म को भगवान का चमत्कार माना।

अपनी मृत्यु को भांपते हुए, लुई तेहरवें ने 1643 के वसंत में अपने मामलों को क्रमबद्ध करने का फैसला किया। परंपरा की अवहेलना में राजा ने फैसला किया कि एक रीजेंसी काउंसिल उनके बेटे की ओर से शासन करेगी। हालाँकि, उसने परिषद के प्रमुख के रूप में रानी एनी को नियुक्त करने की रियायत दी। लुई का अपनी मां के साथ संबंध उस समय के लिए असामान्य रूप से स्नेहपूर्ण था। यह उनकी मां थी जिन्होंने लुई को अपने राजशाही शासन की पूर्ण और दिव्य शक्ति में विश्वास दिलाया था।[2]

15 मई 1643 को तेरहवें लुई का देहांत हो गया। अब उसका पुत्र लुई चौदहवाँ राजसिंहासन पर बैठा। उस समय उसकी आयु केवल पाँच वर्ष की थी। रिशल्यू के उपरांत राज्य की बागडोर कार्डिनल मेज़रिन के हाथ में आ गई थी। मेज़रिन ने रिशल्यू की ही नीति को पूर्णत: स्थायी रखा। चौदहवें लुई के राज्यारोहण के समय फ्रांस की सेनाएँ तीस वर्षीय युद्ध में जर्मनी में लड़ने में व्यस्त थीं। फिर भी फ्रांस में विद्रोहियों का सफलतापूर्वक दमन किया गया। चतुर्थ हेनरी व रिशल्यू दोनों ने फ्रांस में स्वेच्छाचारी राजसत्ता जमाने का यथेष्ट प्रयत्न किया था 1661 में मेजरिन की मृत्यु के उपरांत चौदहवें लुई ने इस बात की घोषणा की कि वह स्वयं राज करेगा और मंत्रियों की सहायता की उसे कोई आवश्यकता नहीं है। लुई का कहना था, 'मैं ही राष्ट्र हूँ।' लुई के समय में फ्रांस के सर्वसाधारण को इस बात पर विश्वास दिलाया गया कि मनुष्य जाति के लाभ के लिए ही भगवान राजा को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजता है।

चौदहवें लुई के तत्कालीन वित्तमंत्री कोलबेर ने देश की आर्थिक उन्नति की जिसके परिणामस्वरूप युद्ध के साधन उपलब्ध हुए। लुई (1661 से 1713 तक), फ्रांस की सीमाएँ बनाने के लिए यूरोप में युद्ध करता रहा। इनके डेवोल्यूशन (Devolution) का युद्ध (1667-1668), डचश् युद्ध (1672-1678), ऑग्सबर्ग की लीग का युद्ध (1689-1697) और स्पेन के उत्तराधिकार का युद्ध (1701-1713) प्रसिद्ध हैं। अंत में इन युद्धों से फ्रांस की आर्थिक दशा बहुत बिगड़ गई।[3]

ऐसा होते हुए भी चौदहवें लुई के समय में फ्रांस का सांस्कृतिक अभ्युदय कुछ आश्चर्यजनक गति से हुआ। उसके समय के कला कौशल और सांस्कृतिक श्रेष्ठता का सिक्का यूरोप के हृदय पर अब भी जमा हुआ है। पेरिस से बारह मील दूर वर्साय में उसने अपने रहने के लिए एक राजप्रासाद बनवाया था। प्रासाद की लागत उस समय लगभग इक्कीस करोड़ रुपए था। वर्साय भर में बाग, बगीचे, झरने, छोटे तथा बड़े प्रासाद ही दिखाई देते थे।

कला क्षेत्र में भी फ्रांस को अपूर्व मर्यादा प्राप्त हुई। कार्ने (Corneille, 1606-1684) और मौल्येअर (1622-1673) प्रसिद्ध नाटककार थे। मडाम डी सेवीनये (Sevigne) (1626-1693), ला फॉनटेन (1621-1695) और रेसीन (1639-1699) के लेखों और शब्दों के प्रयोग ने फ्रेंच भाषा को समस्त यूरोप में सर्वप्रिय बना दिया था। इंग्लैंड के खाने के सूचीपत्र (menu) आज तक फ्रेंच में छपते हैं। फ्रांस को यह गौरव चौदहवें लुई के समय से ही प्राप्त हुआ।

शिल्प विद्या, मूर्तिकला, चित्रकला तथा संगीत में फ्रांस के कलाकारों ने यूरोप की कलाशैली पर बहुत प्रभाव डाला। फ्रांस की राजनीतिक श्रेष्ठता के कारण फ्रांस की कला को और भी प्रतिष्ठा मिली। इस सांस्कृतिक उन्नति के कारण उसका राज्यकाल फ्रांस का स्वर्णयुग बन गया। उसका राज्यकाल यूरोपीय इतिहास में 'चौदहवें लुई का युग' कहलाता है।

एक स्वस्थ और पौरुष राजा की छवि के बावजूद इस बात का सबूत मौजूद है कि लुई का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। उन्हें कई बीमारियां थीं: उदाहरण के लिए, मधुमेह के लक्षण। लुई जितना प्रतापी राजा था, उतना ही दु:खद उसका अंत हुआ। अपने अंतिम दिनों में बूढ़ा और क्षीण लुई, स्पष्ट देख रहा था, कि उसके युद्धों के परिणामस्वरूप हुई क्षति के कारण उसकी प्रजा दु:खी है, कृषक भूखे हैं और मध्यवर्ग के लोग निर्धन होते चले जा रहे हैं। लुई का केवल एक पुत्र था। सम्राट ने उसे शिक्षा देने का भरसक प्रयत्न किया परंतु वह अनपढ़ ही रहा। 1 सितम्बर, 1715 को चौदहवें लुई का गेंग्रीन से देहांत हुआ।

उत्तारधिकर

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लुई ने अपने अधिकांश परिवार से अधिक जीवन व्यतीत किया। उनके अंतिम जीवित बेटे डॉफीन का 1711 में निधन हो गया। एक साल बाद डॉफिन के तीन बेटों में सबसे बड़ा और फिर लुई का उत्तराधिकारी, ड्यूक ऑफ बरगंडी ने अंतिम साँसें लीं। बरगंडी के बड़े बेटे, लुई, ड्यूक ऑफ ब्रिटनी, कुछ हफ्तों बाद उन दोनों के साथ शामिल हो गया। इस प्रकार, लुई का वारिस बरगंडी का पांच वर्षीय पुत्र यानी उनका परपोता था। उसका नाम लुई, ड्यूक ऑफ़ अंजू था।

  1. Bluche 1990, पृ॰ 11.
  2. Petitfils 2002, पृष्ठ 30–40
  3. Lynn 1999, पृष्ठ 46.

सन्दर्भसूची

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  • Lynn, John (1999). The Wars of Louis XIV, 1667–1714 (Modern Wars in Perspective). Longman. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0582056299.
  • Petitfils, Jean-Christian (2002). Louis XIV (फ़्रेंच में). Paris: Perrin. OCLC 423881843.
  • Bluche, François (1990). Louis XIV. Greengrass, Mark द्वारा अनूदित. New York City: Franklin Watts. पृ॰ 11. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-531-15112-9.