चौरागढ़ का किला, मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर शहर के निकट स्थित है। गौड़ शासक संग्राम शाह ने इस किले को 15वीं शताब्दी में बनवाया था। यह किला गाडरवारा रेलवे स्टेशन से लगभग 19 किलोमीटर दूर है। वर्तमान में प्रशासन की उपेक्षा के कारण किला क्षतिग्रस्त अवस्था में पहुंच गया है। किले के निकट ही नोनिया में 6 विशाल प्रतिमाएं देखी जा सकती हैं। कभी राजगौड़ वंश की समृद्धि,शक्ति और वैभव का प्रतीक रहा चौगान या चौरागढ़ का किला अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है।

जिला मुख्यालय से करीब 50 किमी दूर सघन वनों के बीच ऊंचे पहाड़ पर बना यह किला पुरातत्व विभाग के अधीन एक संरक्षित किला है पर न तो इसका संरक्षण किया जा रहा है और न ही फिलहाल विभाग की ओर से कोई कार्ययोजना प्रकाश मेें आई है। करीब ५ किमी के क्षेत्र में विस्तृत चौगान के किला के अधिकांश हिस्से समय की मार से मिट्टी में मिल गए हैं और कुछ ही हिस्से खंडहरों के रूप में इसकी ऐतिहासिकता की कहानी सुनाते प्रतीत होते हैं। राज दरबार सहित रनिवास और अन्य राजप्रासाद ध्वंसावशेषों के रूप में नजर आते हैं।

५४ गढ़ों का कोषालय था यह किला इतिहास के मुताबिक इस राजवंश के उदय का श्रेय यादव राव यदुराव को दिया जाता है । जिन्होंने चौदहवीं शताब्दी के अंतिम वर्षो में गढ़ा कटंगा में राजगौड़ वंश की नींव डाली । इसी राजवंश के प्रसिद्ध शासक संग्राम शाह 1400-1541 ने 52 गढ़ स्थापित कर अपने साम्राज्य को सुदृढ़ बनाया था। नरसिंहपुर जिले में चौरागढ़ या चौगान किला का निर्माण भी उन्होंने ही कराया था जो रानी दुर्गावती के पुत्र वीरनारायण की वीरता का मूक साक्षी है । कहा जाता है कि यह किला राजगौड़ों के 52 गढ़ों का कोषालय था। जिसकी वजह से दुश्मन राजाओं की नजर इस पर रहती थी।

धोखे से किया था राजकुमार का वध संग्राम शाह के उत्तराधिकारियों में दलपति शाह ने सात वर्ष शांति पूर्वक शासन किया । उसके पश्चात उसकी वीरांगना रानी दुर्गावती ने राज्य संभाला और अदम्य साहस एवं वीरता पूर्वक 16 वर्ष तक 1540 से 1564 तक शासन किया । सन् 1564 में अकबर के सिपहसलार आतफ खां से युद्ध करते हुये रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। चौरागढ़ एक सुदृढ़ पहाड़ी किले के रूप में था जहां पहुंच कर आतफ खां ने राजकुमार वीरनारायण को घेर लिया और अंतत: कुटिल चालों से उनका वध कर दिया । गढ़ा कटंगा राज्य पर 1564 में मुगलों का अधिकार हो गया। गौंड़, मुगल, और इनके पश्चात यह क्षेत्र मराठों के शासन काल में प्रशासनिक और सैनिक अधिकारियों तथा अनुवांशिक सरदारों में बंटा रहा । जिनके प्रभाव और शक्ति के अनुसार इलाकों की सीमायें समय समय पर बदलती रहीं। जिले के चांवरपाठा, बारहा, साईंखेड़ा,शाहपुर,सिंहपुर,श्रीनगर और तेन्दूखेड़ा इस समूचे काल में परगनों के मुख्यालय के रूप में प्रसिद्ध रहे ।